जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों मानते हैं

Jagannath Yatra Katha: क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा? जानिए इसके पीछे की वजह और कथा

सनातन धर्म में हिंदू वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा को रथ महोत्सव और गुंडिचा यात्रा के नाम से भी जाना जाता है। इस बार जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून से शुरू हो रही है। मान्यता है कि इस विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा के साक्षात दर्शन करने से 1000 यज्ञों के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। तो आइए, इस लेख में जानते हैं कि हर साल भव्य जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है।

सुभद्रा से जुड़ी है जगन्नाथ रथ यात्रा की यह कथा


पद्म पुराण के अनुसार, एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर भ्रमण की इच्छा जाहिर की। तब भगवान जगन्नाथ ने सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर भ्रमण कराया। इस दौरान वे अपनी मौसी के घर भी गए, जहां वे सात दिनों तक रुके। मान्यता है कि तभी से हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकालने की परंपरा शुरू हुई। वहीं, शास्त्रों के अनुसार, इस खास अवसर पर भगवान जगन्नाथ की पूजा-अर्चना करने से साधक को विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस उत्सव को धूमधाम से मनाया जाता है।

क्या है जगन्नाथ रथ यात्रा के पीछे की प्रचलित कथाएं?


पहली कथा:


एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब एक बार देवी सुभद्रा को नगर भ्रमण की इच्छा हुई, तब भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर बैठकर नगर भ्रमण के लिए गए। इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी गुंडिचा देवी के घर भी गए और सात दिनों तक वहीं विश्राम किया। तभी से यह यात्रा जगन्नाथ रथ यात्रा का रूप ले चुकी है।

दूसरी कथा:


एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण की रानियां, माता रोहिणी से श्रीकृष्ण की रासलीला की कथाएं सुनाने का आग्रह करती हैं। माता रोहिणी चाहती थीं कि श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा ये कथाएं न सुनें, इसलिए उन्होंने सुभद्रा को उनके भाई बलराम और श्रीकृष्ण के साथ रथ यात्रा के लिए भेज दिया। यात्रा के दौरान नारद जी प्रकट होते हैं और तीनों भाई-बहनों को एक साथ देखकर प्रसन्न हो जाते हैं। नारद जी विनती करते हैं कि भक्तों को हर वर्ष ऐसे ही तीनों भाई-बहनों के दर्शन होते रहें। मान्यता है कि तभी से हर साल रथ यात्रा निकाली जाती है।

तीसरी कथा:


एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार महर्षि वेदव्यास जी ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना की थी कि वे अपने सभी भक्तों को दर्शन दें। इस प्रार्थना के उत्तर में भगवान श्रीकृष्ण ने रथ यात्रा का आयोजन किया। ऐसा भी कहा जाता है कि रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ के अपने भक्तों के साथ आनंद विहार करने का तरीका है। वे रथ पर सवार होकर शहर की गलियों में घूमते हैं और अपने भक्तों को दर्शन देते हैं।

........................................................................................................
राधा से कर दे सगाई(Radha Se Karde Sagai)

प्यारी ओ प्यारी मैया,
ओ प्यारी प्यारी मैया,

मुरली बजा के मोहना (Murli Bajake Mohana Kyon Karliya Kinara)

मुरली बजा के मोहना, क्यों कर लिया किनारा।
अपनों से हाय कैसा, व्यवहार है तुम्हारा॥

सो सतगुरु प्यारा मेरे नाल है - शब्द कीर्तन (So Satguru Pyara Mere Naal Hai)

सो सतगुरु प्यारा मेरे नाल है,
जिथे किथे मैनु लै छडाई

राम को देख कर के जनक नंदिनी, और सखी संवाद (Ram Ko Dekh Ke Janak Nandini Aur Sakhi Samvad)

राम को देख कर के जनक नंदिनी,
बाग में वो खड़ी की खड़ी रह गयी ।

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।