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हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन भक्त भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत पापों का नाश करने और मोक्ष प्राप्त करने में भी सहायक माना जाता है। आइए जानें कि फाल्गुन माह का पहला प्रदोष व्रत कब है, पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है, भगवान शिव की पूजा किस विधि से करें, पूजा के दौरान कौन से मंत्रों का जाप फलदायी माना जाता है और पूजा का क्या महत्व है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 25 फरवरी को दोपहर 12 बजकर 47 मिनट पर होगा। यह तिथि 26 फरवरी को प्रातः 11 बजकर 8 मिनट तक रहेगी। इस प्रकार फाल्गुन का पहला प्रदोष व्रत, जिसे भौम प्रदोष व्रत भी कहा जाता है, 25 फरवरी को रखा जाएगा।
इस वर्ष प्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त सायं 6 बजकर 28 मिनट से रात्रि 8 बजकर 57 मिनट तक रहेगा। इस काल में भगवान शिव की आराधना विशेष फलदायी मानी जाती है।
प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 05:10 से 06:00 बजे तक होता है। यह समय स्नान, दान और दैनिक पूजा जैसे धार्मिक कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
फाल्गुन माह के पहले प्रदोष व्रत के दिन एक विशेष संयोग, त्रिपुष्कर योग बन रहा है। यह योग प्रातः 6 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। त्रिपुष्कर योग का विशेष महत्व है और इस दौरान किए गए कार्य तिगुना फल प्रदान करते हैं।
फाल्गुन माह के पहले प्रदोष व्रत पर भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन निम्नलिखित मंत्रों का जाप करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं:
यह व्रत प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। प्रदोष व्रत का अर्थ है संध्या काल का व्रत। यह व्रत सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व से सूर्यास्त के 45 मिनट पश्चात् तक किया जाता है। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। प्रदोष व्रत से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है। इस व्रत से रोगों से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य उत्तम रहता है। प्रदोष व्रत महिलाओं के लिए विशेष रूप से फलदायी होता है, इससे उन्हें सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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