डोल ग्यारस 2024: भगवान श्रीकृष्ण की जलवा पूजन से जुड़ा है ये त्योहार, जानें इस दिन का महत्व और पूजा विधि

डोल ग्यारस एक पारंपरिक हिंदू त्योहार है।  यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान श्री कृष्ण की पूजा और उत्सव के लिए मनाया जाता है।  डोल ग्यारस का अर्थ है "डोल" यानी पालना और "ग्यारस" यानी एकादशी। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा पालने में बैठाकर की जाती है, जो उनके बालपन की याद दिलाती है। डोल ग्यारस का उत्सव भगवान श्री कृष्ण के प्रेम और आनंद का प्रतीक है और यह भक्तों के लिए उनके प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति को व्यक्त करने का एक अवसर है। भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में जानेंगे डोल ग्यारस क महत्व, भगवान कृष्ण की पूजा विधि और डोल ग्यारस से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में. विस्तार से..


डोल ग्यारस का महत्व 


लेख में आगे बढ़ने से पहले डोल ग्यारस के महत्व के बारे में जानना बहुत जरूरी है। दरअसल श्रीकृष्ण जन्म के 16 वें दिन माता यशोदा ने उनका जलवा पूजन किया था। इसी दिन को 'डोल ग्यारस' के रूप में मनाया जाता है। जलवा पूजन के बाद ही संस्कारों की शुरुआत होती है। जलवा पूजन को कुआं पूजन भी कहा जाता है। डोल ग्यारस के अवसर पर सभी कृष्ण मंदिरों में पूजा-अर्चना होती है। इस दिन भगवान कृष्ण के बालरूप बालमुकुंद को एक डोल में विराजमान कर उनको नगर भ्रमण कराया जाता है। इस अवसर पर कई शहरों में मेले, चल समारोह, अखाड़ों का प्रदर्शन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है। इसके साथ ही डोल ग्यारस पर भगवान राधा-कृष्ण के एक से बढ़कर एक झांकियां या सज्जित डोल निकाले जाते हैं। 


डोल ग्यारस 2024 कब है? 


एकादशी तिथि प्रारम्भ- 13 सितम्बर 2024 को रात्रि 10:30 बजे से।

एकादशी तिथि समाप्त- 14 सितम्बर 2024 को रात्रि 08:41 बजे तक।

उदयातिथि के अनुसार- 14 सितंबर 2024 शनिवार को यह व्रत रखा जाएगा।


डोल ग्यारस पूजा विधि 


1. सुबह जल्दी उठें और स्नान करें।

2. भगवान कृष्ण की मूर्ति या चित्र को साफ और स्वच्छ स्थान पर रखें।

3. मूर्ति या चित्र पर गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक करें।

4. भगवान कृष्ण को पीले वस्त्र पहनाएं और उनके गले में एक माला पहनाएं।

5. उनके सामने धूप, दीप और अगरबत्ती जलाएं।

6. भगवान कृष्ण को उनके प्रिय भोग जैसे कि माखन, मिश्री और फल चढ़ाएं।

7. भगवान कृष्ण की आरती और भजन गाएं।

8. भगवान कृष्ण की कथा सुनें और उनके बारे में पढ़ें।

9. पूजा के अंत में प्रसाद वितरित करें।

10. भगवान कृष्ण को प्रणाम करें और उनका आशीर्वाद लें।


इसके अलावा, आप भगवान कृष्ण की पूजा के दौरान इन मंत्रों का जाप कर सकते हैं:


"ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम:"
"ओम क्लीं कृष्णाय नमः"
"ओम श्री कृष्णाय नमः"


कैसे मनाई जाती है डोल ग्यारस ?  


डोल ग्यारस मुख्य रूप से मध्यप्रदेश एवं उत्तरी भारत में मनाया जाने वाला त्योहार है। इस दिन मंदिरों से भगवान कृष्ण की मूर्ती को डोले या डोली में सजाकर नगर भ्रमण एवं नौका बिहार के लिए ले जाया जाता है। कहते है बाल रूप में कृष्ण जी पहली बार इस दिन माता यशोदा और पिता नन्द के साथ नगर भ्रमण के लिए निकले थे। डोल को बहुत सुंदर भव्य रूप में झांकी की तरह सजाया जाता है। फिर एक बड़े जुलुस के साथ पूरे नगर में ढोल नगाड़ों, नाच-गानों के साथ इनकी यात्रा निकलती है। और प्रसाद बांटा जाता है। जिस स्थान में पवित्र नदियां जैसे नर्मदा, गंगा, यमुना आदि रहती है, वहां कृष्ण जी को नाव में बैठाकर घुमाया जाता है। कृष्ण की इस मनोरम दृश्य को देखने के लिए घाट पर लोगों का जमावड़ा लगा रहता है। मध्यप्रदेश के गाँव में इस त्यौहार की बहुत धूम रहती है, घाटों के पास मेले लगाये जाते है, जिसे देखने दूर दूर से लोग जाते है। पूरी नदी में नाव की भीड़ रहती है, सभी लोग नौका बिहार का आनंद लेते है। 3-4 घंटे की झांकी के बाद, कृष्ण जी को वापस मंदिर में लाकर स्थापित कर दिया जाता है। 


डोल ग्यारस कथा 


डोल ग्यारस पर इससे जुड़ी कथा पढ़ने का बहुत अधिक महत्व है। भक्तवत्सल के कथा सेक्शन में जाकर आप इसे पढ़ सकते हैं। 


डोल ग्यारस और परिवर्तनी एकादशी एक ही दिन मनाई जाती है। इसलिए दिन व्रत रखने का महत्व भी एक ही होता है। भक्तवत्सल की वेबसाइट पर परिवर्तनी एकादशी व्रत का आर्टिकल है। आप वहां से व्रत से जुड़ी सभी जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं।  जिसे आप नीचे दी हुई लिंक पर क्लिक कर के पढ़ सकते हैं।

परिवर्तनी एकादशी 2024

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रमतो भमतो जाय, आज माँ नो गरबो(Ramto Bhamto Jay Aaj Maa No Garbo)

रमतो भमतो जाय,
आज माँ नो गरबो रमतो जाय,

मासिक शिवरात्रि: भगवान शिव नमस्काराथा मंत्र

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श्री गायत्री चालीसा (Sri Gayatri Chalisa)

हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड ।
शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ॥

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