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Budhwar Vrat Vidhi: सनातन धर्म में प्रत्येक दिन का अपना एक खास और अलग महत्व होता है। ऐसा कहा जाता है कि सप्ताह का हर एक दिन किसी न किसी देवी या देवता को समर्पित होता है। श्रद्धालु अपने भगवान को खुश करने के लिए उस दिन उस देवी या देवता का व्रत करते हैं। साथ ही उसी दिन उद्यापन भी करते हैं। श्रद्धालुओं को ध्यान देना आवश्यक है कि आप जिस भी देवी-देवता का पूजा कर रहे हैं, उनकी पूजा पूरे विधि-विधान के साथ करें। साथ ही जब उद्यापन कर रहे हैं तो वह भी विधि-विधान के साथ करें।
मान्यताओं के अनुसार सप्ताह का तीसरा दिन यानी बुधवार भगवान श्रीगणेश को समर्पित होता है। साथ ही इस दिन बुध देव की भी विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। आइए, इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि बुधवार के दिन भगवान श्रीगणेश और बुध देव की पूजा-अर्चना कैसे करें। साथ ही यह भी बताएंगे कि बुधवार व्रत कैसे करें, व्रत का उद्यापन कैसे करें, इसके लिए किन पूजा सामग्रियों की जरूरत होगी और पूजा विधि क्या है।
सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि अगर हम बुधवार का व्रत शुरू कर रहे हैं या बुधवार व्रत का उद्यापन कर रहे हैं तो हमें किन पूजा सामग्रियों की जरूरत होगी। पूजा-अर्चना के लिए हमें गणेश जी की प्रतिमा, लाल या पीला वस्त्र, लकड़ी की चौकी या पटरा, भगवान के लिए वस्त्र, घी, दीपक, शमी पत्ता, गंगाजल, पंचामृत, सुपारी, पान पत्ते, जनेऊ, चंदन, अक्षत, धूप, फल, फूल, लड्डू आदि की जरूरत होगी।
किसी भी व्रत को शुरू करने से पहले हम यह देखना जरूरी होता है कि हम व्रत किस दिन से शुरू करें। पंडितों के अनुसार श्रद्धालु बुधवार का व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष से शुरू कर सकते हैं। साथ ही हमें यह भी निश्चय करना होता है कि कितने दिनों का व्रत करें। आपको बता दें कि आप बुधवार व्रत 7, 11, या फिर 21 बुधवार का व्रत कर सकते हैं। जब व्रत पूरी हो जाए तो उसके बाद आप उसका पूरे विधि-विधान के साथ उद्यापन कर सकते हैं।
पंडितों के अनुसार बुधवार के दिन सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त में जग जाएं और उसके बाद नित्य कर्मों के निवृत होकर स्नान कर लें। स्नान करने के बाद ध्यान रहे कि आप हरे रंग का वस्त्र धारण करें। इसके बाद मंदिर या फिर आपके घर में जहां भी प्रतिदिन पूजा होती है वहां साफ-सफाई कर और गंगाजल छिड़क कर शुद्ध कर दें। तत् पश्चात् वहां एक लकड़ी की चौकी स्थापित करें और उसके ऊपर भगवान गणेश की प्रतिमा को रखें। प्रतिमा स्थापित करने के बाद पूर्व दिशा की ओर अपना मुँह कर पूजा के लिए बैठ जाएं।
पूर्व दिशा की ओर आसन पर बैठकर हाथ में गंगाजल लें और सर्वप्रथम आसन और स्वयं की शुद्धि करें। इसके बाद भगवान गणेश के सामने घी का दीपक जलाएं और उन्हें पुष्प अर्पित करें। साथ ही धूप, दीप, कपूर और चंदन से भगवान की अराधना करें। पूजा के दौरान भगवान गणेश को आप दूर्वा भी अर्पित कर सकते हैं और ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीगणेश को दूर्वा अतिप्रिय है। दूर्वा अर्पित करने के पश्चात मोदक या लड्डुओं का भोग लगाएं। पूजा करने के बाद आप ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करें। इसके बाद बुधवार व्रत की कथा पढ़ें और तत्पश्चात भगवान श्रीगणेश की आरती करें।
भगवान की आरती करने के बाद अपने स्थान पर खड़े हो कर बाएं से दाएं की ओर घूमकर प्रदक्षिणा करें। इसके बाद श्रद्धालुओं को ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए और दक्षिणा देना चाहिए। इसके बाद परिजनों के साथ स्वयं भोजन ग्रहण करें और उसके बाद व्रत का उद्यापन करें।
ॐ गं गणपतये नमःॐ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।ॐ ऐं ह्वीं क्लीं चामुण्डायै विच्चेॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥भगवान गणेश की जय, पार्वती के लल्ला की जय
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