भीष्म अष्टमी के अचूक उपाय

भीष्म अष्टमी पर कर सकते ये उपाय, पितृ के दोष से मिल सकती है मुक्ति


हर साल माघ महीने में भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। इसे एकोदिष्ट श्राद्ध भी कहा जाता है। एकोदिष्ट श्राद्ध कोई भी व्यक्ति कर सकता है। एकोदिष्ट श्राद्ध करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस वर्ष भीष्म अष्टमी 5 फरवरी 2025 को मनाई जाएगी। अगर जातक भीष्म अष्टमी के दिन पितृ से जुड़े कुछ उपाय कर लेते हैं तो संतान सुख की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं कि इस दिन क्या उपाय करने चाहिए?



भीष्म अष्टमी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त


  • भीष्म अष्टमी तिथि: बुधवार, 5 फरवरी 2025
  • तिथि प्रारंभ: 5 फरवरी 2025, दोपहर 02:30 बजे
  • तिथि समाप्ति: 6 फरवरी 2025, दोपहर 12:35 बजे
  • पूजन का शुभ समय: 5 फरवरी 2025, प्रातः 11:26 बजे से दोपहर 01:38 बजे तक


ये करें उपाय:


  • पितृ दोष से मुक्ति के लिए: भीष्म अष्टमी के दिन दोपहर के बाद पितरों का तर्पण करें और भीष्म के नाम से पिंडदान करें।
  • संतान प्राप्ति के लिए: इस दिन विधिपूर्वक तर्पण और पिंडदान करने से संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है।
  • पिंडदान और भक्ति दोनों आवश्यक: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, केवल पिंडदान और श्राद्ध पर्याप्त नहीं है। भगवान शिव के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से भगवान विष्णु की भक्ति करता है, तो वह अपने पितरों का उद्धार कर सकता है।


केवल पिंडदान या श्राद्ध जैसे कर्मकांड पर्याप्त नहीं


पौराणिक कथाओं के अनुसार, पिंडदान और गया में श्राद्ध आदि कर्मकांड पितरों की मुक्ति के पारंपरिक साधन माने जाते हैं। लेकिन भगवान शिव का यह संदेश बताता है कि कलियुग में पितरों के उद्धार के लिए केवल पिंडदान या श्राद्ध जैसे कर्मकांड पर्याप्त नहीं हैं। शिवजी कहते हैं, “बहुत से पिंड देने और गया में श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं है यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से भगवान विष्णु का भजन करता है तो उसके प्रभाव से ही मनुष्य अपने पितरों का नरक से उद्धार कर सकता है।”


भगवान शिव का यह संदेश न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मानव जीवन में भक्ति के महत्व को भी दर्शाता है। पिंडदान, श्राद्ध, और कर्मकांड अपनी जगह पर महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सच्ची भक्ति और भगवान विष्णु के प्रति समर्पण से पितरों का उद्धार सहज और अति फलदायी हो सकता है। इस प्रकार, शिवजी ने स्पष्ट किया कि कलियुग में हरिभजन ही सर्वोत्तम मार्ग है, जो व्यक्ति और उसके पितरों दोनों के जीवन को उन्नत कर सकता है।


........................................................................................................
श्री प्रेतराज चालीसा (Shree Pretraj Chalisa)

गणपति की कर वंदना, गुरू चरनन चितलाये।
प्रेतराज जी का लिखूं, चालीसा हरषाय।

सवारी महाकाल की आई(Sawari Mahakal Ki Aayi)

आओ प्यारे भक्तों,
भोले बाबा को मनाएं हम,

चन्द्रघंटा माँ से अर्जी मेरी (Chandraghanta Maa Se Arji Meri)

चन्द्रघंटा माँ से अर्जी मेरी,
मैं दास बनूँ तेरा,

मैं हूँ दासी तेरी दातिए (Main Hoon Daasi Teri Datiye)

मैं हूँ दासी तेरी दातिए,
सुन ले विनती मेरी दातिए,

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।