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महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर हम भगवान शिव की महिमा और उनकी प्रिय चीजों के बारे में बात करने जा रहे हैं। भगवान शिव को आशुतोष कहा जाता है, जिसका अर्थ है तुरंत और तत्काल प्रसन्न होने वाले देवता। वे अपने भक्तों की पूजा और आराधना से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी सभी कामनाएं पूरी करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष चीजों का अर्पण करना बहुत महत्वपूर्ण है। ये चीजें भगवान शिव को बहुत प्रिय हैं और उनका अर्पण करने से वे तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं। आइए जानते हैं भगवान शिव को प्रिय 11 ऐसी सामग्री, जो अर्पित करने से भोलेनाथ हर कामना पूरी करते हैं, साथ ही जानेंगे इनका धार्मिक महत्व।
1) जल
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, भगवान शिव जल के स्वरूप हैं। शिव पर जल चढ़ाने का महत्व समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा हुआ है। जब भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को पी लिया था, तो उनका कंठ नीला पड़ गया था। इस विष की ऊष्णता को शांत करने और भगवान शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया था। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व है। जल चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों को शीतलता और शांति की अनुभूति होती है। यह जल अर्पण भगवान शिव की महिमा और उनके प्रति भक्ति को दर्शाता है।
2) बिल्वपत्र
भगवान शिव की पूजा में बिल्वपत्र का विशेष महत्व है। यह पत्र भगवान शिव के तीन नेत्रों का प्रतीक है, जो ज्ञान, कर्म और भक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए तीन पत्तियों वाला बिल्वपत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। भगवान आशुतोष की पूजा में अभिषेक और बिल्वपत्र का प्रथम स्थान है। प्राचीन ऋषियों ने कहा है कि बिल्वपत्र भगवान शिव को चढ़ाने से 1 करोड़ कन्याओं के कन्यादान का फल प्राप्त होता है। यह दर्शाता है कि बिल्वपत्र का महत्व कितना अधिक है और भगवान शिव की पूजा में इसका क्या स्थान है।
3) आंकड़ा
शास्त्रीय वचनों के अनुसार, भगवान शिव की पूजा में एक आंकड़े का फूल अर्पित करने से सोने के दान के समान फल प्राप्त होता है। यह आंकड़े के फूल की महत्ता को दर्शाता है और भगवान शिव की पूजा में इसका विशेष स्थान है।
4) धतूरा
भगवान शिव की पूजा में धतूरा का विशेष महत्व है, जिसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों कारण हैं। भगवान शिव कैलाश पर्वत पर रहते हैं, जो एक अत्यंत ठंडा क्षेत्र है। ऐसे में शरीर को ऊष्मा प्रदान करने वाले आहार और औषधियों की आवश्यकता होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से धतूरा सीमित मात्रा में लिया जाए तो यह औषधि का काम करता है और शरीर को अंदर से गर्म रखता है। धार्मिक दृष्टि से देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि जब भगवान शिव ने सागर मंथन से निकले हलाहल विष को पी लिया, तो वे व्याकुल होने लगे। तब अश्विनी कुमारों ने भांग, धतूरा, बेल आदि औषधियों से भगवान शिव की व्याकुलता दूर की। उस समय से ही भगवान शिव को धतूरा प्रिय है। भगवान शिव की पूजा में धतूरा चढ़ाने के साथ-साथ हमें अपने मन और विचारों की कड़वाहट को भी अर्पित करना चाहिए। इससे हमारे मन में शुद्धता और पवित्रता आती है, जो भगवान शिव की पूजा का मुख्य उद्देश्य है।
5) भांग
भगवान शिव की पूजा में भांग का विशेष महत्व है, जो उनकी ध्यानमग्न अवस्था से जुड़ा हुआ है। भांग का सेवन ध्यान केंद्रित करने में मददगार होता है, जिससे भगवान शिव परमानंद में रहते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले विष को भगवान शिव ने संसार की सुरक्षा के लिए अपने गले में उतार लिया। इसके बाद उन्हें औषधि स्वरूप भांग दी गई। भगवान शिव ने न केवल विष को आत्मसात किया, बल्कि हर कड़वाहट और नकारात्मकता को भी अपने भीतर ग्रहण कर लिया। भगवान शिव की यह अद्वितीय क्षमता उन्हें विशेष बनाती है। वे संसार में व्याप्त हर बुराई और नकारात्मकता को अपने भीतर ग्रहण कर लेते हैं और अपने भक्तों की विष से रक्षा करते हैं। यही कारण है कि भगवान शिव को भांग प्रिय है, जो उनकी अद्वितीय क्षमता और उनके भक्तों के प्रति उनकी कृपा का प्रतीक है।
6) कर्पूर
भगवान शिव की पूजा में कर्पूर का विशेष महत्व है, जो उनके प्रिय मंत्र "कर्पूरगौरं करूणावतारं" में भी उल्लेखित है। यह मंत्र भगवान शिव की कर्पूर के समान उज्जवल और पवित्र प्रकृति को दर्शाता है। कर्पूर की सुगंध न केवल वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाती है, बल्कि यह भगवान शिव को भी प्रिय है। उनकी पूजा में कर्पूर का उपयोग करने से पूजा की शुद्धता और पवित्रता बढ़ जाती है। इसलिए कर्पूर शिव पूजन में अनिवार्य है और इसका उपयोग करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
7) दूध
श्रावण मास में दूध का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है, जबकि अन्य समय में यह स्वास्थ्यवर्धक होता है। इसीलिए प्राचीन ऋषियों ने श्रावण मास में दूध का सेवन न करने का नियम बनाया और इसके बजाय भगवान शिव को अर्पित करने का विधान शुरू किया। इस प्रकार श्रावण मास में दूध को भगवान शिव को अर्पित करने से न केवल स्वास्थ्य की रक्षा होती है, बल्कि भगवान शिव की कृपा भी प्राप्त होती है। यह एक अद्वितीय तरीका है, जिसमें हम अपने स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए भगवान शिव की पूजा भी कर सकते हैं।
8) चावल
चावल को अक्षत के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है "जो टूटा न हो"। इसका सफेद रंग पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है। पूजन में अक्षत का उपयोग अनिवार्य है और इसका महत्व इतना अधिक है कि शिव पूजा में अक्षत के बिना पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। पूजन के दौरान अक्षत को अन्य पूजन सामग्रियों जैसे कि गुलाल, हल्दी, अबीर और कुमकुम के बाद चढ़ाया जाता है। यदि कोई पूजन सामग्री अनुपलब्ध हो, तो अक्षत को उसके स्थान पर चढ़ाया जा सकता है। यह अक्षत के महत्व को दर्शाता है और इसकी अनिवार्यता को पूजन में प्रदर्शित करता है।
9) चंदन
चंदन का संबंध शीतलता और पवित्रता से है, जो भगवान शिव की पूजा में विशेष महत्व रखता है। भगवान शिव अपने मस्तक पर चंदन का त्रिपुंड लगाते हैं, जो उनकी शीतलता और पवित्रता का प्रतीक है। चंदन का प्रयोग हवन में भी किया जाता है, जिससे वातावरण शुद्ध और पवित्र होता है। इसकी खुशबू से वातावरण खिल जाता है और एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। भगवान शिव को चंदन चढ़ाने से न केवल उनकी पूजा पूर्ण होती है, बल्कि इससे समाज में मान-सम्मान और यश भी बढ़ता है। यह चंदन के महत्व को दर्शाता है और इसकी पवित्रता को पूजन में प्रदर्शित करता है।
10) भस्म
भगवान शिव के शरीर पर भस्म लगाने के पीछे एक गहरा अर्थ छिपा है, जो पवित्रता और आत्म-सम्मान की भावना से जुड़ा है। यह भस्म एक मृत व्यक्ति की जली हुई चिता से प्राप्त होती है, जिसे भगवान शिव अपने तन पर लगाकर उस पवित्रता को सम्मान देते हैं। भगवान शिव का मानना है कि जब एक व्यक्ति की मृत्यु होती है और उसके शरीर को जलाया जाता है, तो उसमें से बची हुई राख में उसके जीवन का कोई कण शेष नहीं रहता। ना उसके दुख, ना सुख, ना कोई बुराई और ना ही उसकी कोई अच्छाई बचती है।
यह राख पवित्र है, जिसमें किसी प्रकार का गुण-अवगुण नहीं है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव की पत्नी सती ने स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया, तो भगवान शिव ने उनकी भस्म को अपनी पत्नी की आखिरी निशानी मानते हुए तन पर लगा लिया। इससे भगवान शिव ने सती की भस्म को अपने साथ जोड़ लिया, जिससे वह हमेशा उनके साथ रहे।
11) रुद्राक्ष
भगवान शिव ने रुद्राक्ष की उत्पत्ति की कथा पार्वती जी को सुनाई है। एक समय, भगवान शिव ने एक हजार वर्ष तक समाधि लगाई। जब उनकी समाधि पूर्ण हुई, तो उनका मन बाहरी जगत में आया। जगत के कल्याण की कामना करने वाले महादेव ने अपनी आंखें बंद कीं और उनके नेत्रों से जल के बिंदु पृथ्वी पर गिरे। इन जल बिंदुओं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और वे भगवान शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए समग्र देश में फैल गए। इन वृक्षों पर जो फल लगे, वे ही रुद्राक्ष हैं। यह रुद्राक्ष भगवान शिव की कृपा का प्रतीक है और उनके भक्तों के लिए एक पवित्र और शक्तिशाली वस्तु है।
महाशिवरात्रि के दिन इन 11 सामग्रियों का अर्पण करने से भगवान शिव तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त की सभी कामनाएं पूरी करते हैं। इसलिए महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने के लिए इन 11 सामग्रियों का अर्पण करना बहुत महत्वपूर्ण है। जल से भगवान शिव का अभिषेक करने से पापों का नाश होता है, बिल्वपत्र से भगवान शिव की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और आंकड़ा से भगवान शिव की पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसी तरह धतूरा से भगवान शिव की पूजा करने से रोगों का नाश होता है, भांग से भगवान शिव की पूजा करने से मानसिक शांति की प्राप्ति होती है और कर्पूर से भगवान शिव की पूजा करने से आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है।
दूध से भगवान शिव की पूजा करने से स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है, चावल से भगवान शिव की पूजा करने से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है और चंदन से भगवान शिव की पूजा करने से शांति और सुख की प्राप्ति होती है। भस्म से भगवान शिव की पूजा करने से आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है और रुद्राक्ष से भगवान शिव की पूजा करने से आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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