Baglamukhi Jayanti 2025: बगलामुखी जयंती 2025 कब है, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
बगलामुखी जयंती वैशाख शुक्ल अष्टमी को मनाई जाती है, जो देवी बगलामुखी को समर्पित है। वह दस महाविद्याओं में से आठवीं देवी हैं और श्री कुल से संबंधित हैं। देवी बगलामुखी को पीताम्बरा और ब्रह्मास्त्र भी कहा जाता है। उनकी साधना से स्तंभन की सिद्धि प्राप्त होती है और शत्रुओं को नियंत्रित किया जा सकता है। तंत्र मार्ग के साधक वशीकरण और सम्मोहन जैसी विद्याओं के लिए भी उनकी पूजा करते हैं। सामान्य गृहस्थ भी न्यायिक विवादों में विजय और प्रतियोगिताओं में सफलता के लिए देवी बगलामुखी की आराधना कर सकते हैं। देवी बगलामुखी अपने भक्तों के शत्रुओं को स्तम्भित कर देती हैं और उनकी समस्याओं का समाधान करती हैं। ऐसे में आइये जानते हैं बगलामुखी जयंती कब मनाई जाएगी? इस दिन माता की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है? साथ ही जानेंगे पूजा विधि और महत्व के बारे में।
बगलामुखी जयंती 2025 कब है?
पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरूआत 4 मई 2025, रविवार के दिन सुबह 7 बजकर 18 मिनट पर होगी। जो 5 मई 2025, सोमवार के दिन सुबह 7 बजकर 35 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, बगलामुखी जयंती 5 मई को मनाई जाएगी, यानी कि माता बगलामुखी के नाम का जाप या फिर उनकी सूक्ष्म में पूजा इस दिन होगी लेकिन विधिवत पूजा प्रदोष काल यानी कि 4 मई की शाम को की जाएगी।
बगलामुखी जयंती 2025 शुभ मुहूर्त
बगलामुखी जयंती के दिन कई शुभ मुहूर्त हैं जिनमें पूजा और दान-पुण्य किया जा सकता है:
- अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:51 बजे से दोपहर 12:45 बजे तक
- प्रदोष काल: शाम 7:02 बजे से रात 9:13 बजे तक
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:08 बजे से सुबह 4:51 बजे तक
बगलामुखी जयंती पूजा विधि
सामग्री
- पीले वस्त्र
- पीला आसन
- मां बगलामुखी की मूर्ति या चित्र
- पीले फूल
- हल्दी
- पीले फल
- चने की दाल
- मिठाई
- धूप
- दीपक
- कपूर
पूजा विधि
- प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल पर पीला आसन बिछाकर मां बगलामुखी की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें।
- पीले फूल, हल्दी, पीले फल, चने की दाल और मिठाई का प्रयोग करके माता की पूजा करें।
- धूप, दीपक और कपूर दिखाकर माता की पूजा करें।
- माता के मंत्र "ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय, जिह्वां कीलय, बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।" का कम से कम 108 बार जप करें।
- बगलामुखी चालीसा का पाठ और आरती करें।
- यदि संभव हो तो रात में साधना करें, क्योंकि यह समय मां की कृपा पाने के लिए अधिक शुभ और प्रभावशाली माना जाता है।
बगलामुखी जयंती का महत्व
बगलामुखी जयंती देवी बगलामुखी के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाई जाती है, जो दस महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या हैं। माता बगलामुखी शक्ति और विजय की देवी हैं, जिनका स्वरूप शत्रुओं का नाश करने वाला और नकारात्मक शक्तियों को पराजित करने वाला है।
माता बगलामुखी की पूजा के लाभ
बगलामुखी जयंती के दिन माता की पूजा करने से कई लाभ होते हैं:
- बुरी शक्तियों, काली नजर, और नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा मिलता है।
- शत्रुओं द्वारा रची गई षड्यंत्रों से निजात मिलती है और विजय की प्राप्ति होती है।
- विपरीत परिस्थितियों से रक्षा होती है।
- वाक् और बुद्धि पर नियंत्रण प्राप्त होता है।
- शत्रु बाधाओं को दूर करने में मदद मिलती है।
- मानसिक शांति व आध्यात्मिक शक्ति भी माता की पूजा करने से आपको प्राप्त होती है।
- आत्मबल, साहस व आत्मविश्वास की वृद्धि होती है जिससे समाज में आपका मान-सम्मान बढ़ता है।
- बगलामुखी माता की पूजा करने से शत्रु बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को माता बगलामुखी की साधना करने को कहा था, जिससे वे विजय प्राप्त कर सकें और उनके शत्रुओं का अंत हो। पांडवों ने माता बगलामुखी की पूजा की और विजय प्राप्त की।
- माता की पूजा के समय इन विशेष बातों का रखें ध्यान
- पूजा में पीले वस्त्र, पीले फूल, हल्दी, और पीले फल का प्रयोग करना चाहिए।
- माता के मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए।
- पूजा के समय शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए।
- पूजा में नियमितता और श्रद्धा का महत्व है।
- रात में साधना करना अधिक शुभ माना जाता है।
वामन देव की पूजा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। भगवान वामन को श्री हरि का स्वरूप कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधिवत पूजा करने से व्यक्ति को सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
वामन द्वादशी का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। यह पर्व हर साल दो बार मनाया जाता है। एक चैत्र मास की द्वादशी तिथि को और दूसरा भाद्रपद मास की द्वादशी तिथि को।
एकादशी व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। वर्षभर में कुल 24 एकादशियां होती हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना अलग महत्व होता है। चैत्र शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, अप्रैल 2025 में चैत्र और वैशाख माह रहेगा। इस दौरान दो महत्वपूर्ण एकादशी व्रत आएंगे—कामदा एकादशी और वरुथिनी एकादशी।