हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह की अमावस्या तिथि का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता है। यह दिन पितरों की शांति और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए उत्तम माना जाता है। जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है या जीवन में लगातार बाधाएं आ रही होती हैं, उनके लिए यह दिन विशेष फलदायक हो सकता है। वर्ष 2025 में आषाढ़ अमावस्या 25 जून, बुधवार को मनाई जाएगी।
धार्मिक ग्रंथों और पुराणों के अनुसार, पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु, ब्रह्मा और शिव तीनों का वास होता है। अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की पूजा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे साधक को आशीर्वाद देते हैं। आषाढ़ अमावस्या पर विशेष रूप से पीपल के पेड़ को जल चढ़ाएं, कच्चा दूध अर्पित करें और दीपक जलाएं। सात बार वृक्ष की परिक्रमा करें और पितरों से क्षमा याचना करें। साथ ही, पौधारोपण करने से पितृ दोष का निवारण संभव माना गया है।
पितृ दोष एक ज्योतिषीय स्थिति होती है जो व्यक्ति की कुंडली में उनके पूर्वजों के अपूर्ण कर्मों या तर्पण न होने के कारण उत्पन्न होती है। इसका प्रभाव जीवन में आर्थिक संकट, पारिवारिक कलह, संतान सुख में बाधा और मानसिक तनाव के रूप में दिखाई देता है। इसलिए शास्त्रों में आषाढ़ अमावस्या जैसे विशेष दिनों पर पितृ पूजन और तर्पण करने की सलाह दी जाती है।
युधिष्ठिर ने कहा-हे भगवन् ! आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम और क्या माहात्म्य है और उस दिन किस देवता की पूजा किस विधि से करनी चाहिए? कृपया यह बतलाइये।
इस एकादशी का नाम विष्णुशयनी भी है। इसी दिन विष्णुजी का व्रत एवं चातुर्मास्य व्रत प्रारम्भ करना विष्णु पुराण से प्रकट होता है।
युधिष्ठिर ने कहा-हे भगवन्! श्रावण मास के कृष्णपक्ष की एकदशी का क्या नाम और क्या माहात्म्य है सो मुझसे कहने की कृपा करें।
युधिष्ठिर ने कहा-हे केशव ! श्रावण मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का क्या नाम और क्या माहात्म्य है कृपया आर कहिये श्री कृष्णचन्द्र जी ने कहा-हे राजन् ! ध्यान पूर्वक इसकी भी कथा सुनो।