अन्वाधान के दिन क्यों होती है भगवान विष्णु की पूजा? जानें महत्व और विधि
भारत में अन्वाधान का अपना एक अलग स्थान है। अन्वाधान कृषि चक्र और आध्यात्मिक उन्नति से जुड़ा पर्व है। इन्हें जीवन को पोषित करने वाली दिव्य शक्तियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु मनाया जाता है। आधुनिक समय में यह अनुष्ठान मुख्य रूप से वैष्णव संप्रदाय द्वारा मनाए जाते हैं। अन्वाधान और इष्टि वैदिक युग की प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं को दर्शाते हैं। इन परंपराओं का पालन हजारों वर्षों से किया जा रहा है। जो आज भी भारत के कई क्षेत्रों में जीवित हैं। तो आइए इस आलेख में विस्तार से
अन्वाधान के महत्व और विधि के बारे में जानते हैं।
क्यों होती है अन्वाधान में विष्णु जी की पूजा?
अन्वाधान मुख्य रूप से वैष्णव संप्रदाय के लोग करते हैं। वैष्णव संप्रदाय हिंदू धर्म का एक प्रमुख भाग है, जो भगवान विष्णु को सर्वोच्च देवता मानता है। भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में पूजा जाता है। इस संप्रदाय में भगवान विष्णु के दस अवतारों, जिन्हें दशावतार कहा जाता है उनकी विशेष मान्यता है। बता दें कि वर्ष 2024 में अन्वाधान का आयोजन 30 दिसंबर 2024, सोमवार (कृष्ण अमावस्या) के दिन होगा।
क्या है अन्वाधान?
अन्वाधान एक पवित्र वैदिक अनुष्ठान है जो मुख्य रूप से यज्ञ की अग्नि में आहुति देने से जुड़ा हुआ है। संस्कृत के "अनु" (बाद में) और "आधान" (रखना या भेंट देना) शब्दों से मिलकर बना यह शब्द "पुनः आहुति देना" के अर्थ को दर्शाता है। सरल शब्दों में, अन्वाधान का मतलब यज्ञ की अग्नि को पुनः प्रज्वलित करना और उसे लगातार बनाए रखना है। इस प्रक्रिया में, यज्ञ की अग्नि में अनाज और अन्य सामग्री की आहुति दी जाती है। यह अग्निहोत्र या यज्ञ समारोह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस अनुष्ठान के माध्यम से अग्नि देवता और अन्य देवताओं को धन्यवाद दिया जाता है और समृद्धि, स्वास्थ्य, तथा आध्यात्मिक उन्नति की प्रार्थना की जाती है।
अन्वाधान 2024 व्रत और पूजा विधि
अन्वाधान के दिन, भक्त एक दिन का उपवास रखते हैं। जो सूर्योदय से शुरू होकर चंद्रमा के दर्शन तक रहता है। लोग हवन के बाद अपना उपवास समाप्त करते हैं।
दरअसल, वैष्णव सम्प्रदाय के लोगों द्वारा अग्निहोत्र या हवन पूरा होने के बाद, अन्वधान किया जाता है। जिसका सीधा अर्थ है अग्निहोत्र के लिए जलाई गई पवित्र अग्नि में आहुति देना।
इस दिन भक्तगण, भगवान विष्णु से अपनी सभी आकांक्षाओं और इच्छाओं की पूर्ति हेतु अनुष्ठान करते हैं।
कृषि और अन्वाधान का संबंध
अन्वाधान केवल यज्ञ की अग्नि को प्रज्वलित करने तक सीमित नहीं है। यह प्रतीकात्मक रूप से भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा को पुनर्जीवित करने का प्रतिनिधित्व करता है। इस अनुष्ठान का गहरा संबंध कृषि चक्र से है। अनाज और भोजन की आहुति कृषि फसल के प्रति कृतज्ञता और भविष्य में अच्छी फसल की आशा को दर्शाती है। यह भारतीय समाज में प्रकृति और मानव के बीच संबंधों की गहराई को भी दर्शाता है।
........................................................................................................