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भारत के त्योहार और अनुष्ठान वैदिक परंपराओं में गहराई से निहित हैं। इसमें से अन्वधान और इष्टि का विशेष महत्व है। ये अनुष्ठान कृषि चक्रों और आध्यात्मिक कायाकल्प के साथ जुड़े होते हैं। ये जीवन को बनाए रखने वाली दिव्य शक्तियों के प्रति कृतज्ञता के रूप में मनाए जाते हैं। आधुनिक समय में अन्वधान और इष्टि कम ज्ञात होते हुए भी यह वैष्णव संप्रदाय द्वारा मनाया जाता है। ये हजारों वर्ष पहले अपनाई जाने वाली आध्यात्मिक प्रथाओं की झलक प्रस्तुत करते हैं। जो आज भी भारत के विभिन्न क्षेत्रो में जारी है।
अन्वधान एक वैदिक अनुष्ठान है, जो मुख्य रूप से पवित्र अग्नि में अनाज की बलि से जुड़ा हुआ है। 'अन्वधान' शब्द संस्कृत मूल "अनु" यानी बाद में और "आधान" यानी रखना या भेंट करना से लिया गया है। इसका अर्थ है "आरंभिक आहुति देने के बाद आहुति देना या पुनः आहुति देना।" संक्षेप में, अन्वधान का तात्पर्य यज्ञ की पवित्र अग्नि को पुनः ईंधन देने के कार्य से है। जिससे यह सुनिश्चित होता है कि यज्ञ की अग्नि जलती रहे और आहुति का चक्र चलता रहे। यह अनुष्ठान अग्निहोत्र या यज्ञ समारोह के एक भाग के रूप में किया जाता है। इसमें अग्नि देवता एवं अन्य देवताओं को धन्यवाद स्वरूप आहुति दी जाती है। साथ ही समृद्धि, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक ज्ञान के लिए प्रार्थना की जाती है।
बता दें कि अन्वधान केवल भौतिक अग्नि को पुनः प्रज्वलित करने के बारे में नहीं है। बल्कि, प्रतीकात्मक रूप से आध्यात्मिक ऊर्जा और भक्ति के नवीनीकरण का भी प्रतिनिधित्व करता है। अन्वधान अनुष्ठान कृषि चक्र से गहराई से जुड़े हुए हैं। अनाज और भोजन की पेशकश लोगों की फसल के लिए कृतज्ञता और भविष्य में प्रचुरता की उनकी आशा को दर्शाती है।
इष्टि भी महत्वपूर्ण वैदिक अनुष्ठान है, जो प्रायः अन्वधान के साथ या उसके बाद किया जाता है।"इष्टी" शब्द का अर्थ है बलिदान या भेंट। विशेष रूप से किसी यज्ञ के हिस्से के रूप में दी जाने वाली एक विशिष्ट आहुति। यह शब्द स्वयं "ईश" मूल से आया है, जिसका अर्थ है "इच्छा करना"। इसलिए, इष्टि अनुष्ठान अक्सर विशिष्ट इच्छाओं या अनुरोधों की पूर्ति से जुड़े होते हैं। जैसे कि अच्छा स्वास्थ्य, सफलता या समृद्धि। वैदिक परंपरा में, यज्ञ करने वाले व्यक्ति की इच्छाओं या इरादों के आधार पर विभिन्न प्रकार के इष्टि अनुष्ठान किए जाते हैं। प्रत्येक प्रकार की इष्टि का अपना महत्व और प्रक्रिया है। लेकिन, मुख्य विचार एक ही है आशीर्वाद के बदले देवताओं को आहुति देना।
इष्टी विशेष अवसरों, जीवन की घटनाओं या परिवर्तनों को चिह्नित करने के लिए भी की जा सकती है। साथ ही यह मनुष्यों और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली दिव्य शक्तियों के बीच सामंजस्य सुनिश्चित करने में विशेष महत्व रखती है। इस अनुष्ठान में हवन और देवताओं से आशीर्वाद के लिए प्रार्थना शामिल है। साथ ही यह व्यापक यज्ञ परंपरा का हिस्सा भी हैं।
अन्वाधान और इष्टि दोनों हिंदू धर्म के वैष्णव संप्रदाय के लोग मानते हैं। वैष्णव संप्रदाय को वैष्णववाद के नाम से भी जाना जाता है। यह हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है, जो भगवान विष्णु को ही सर्वोच्च शक्ति के रूप में मानता है। भगवान विष्णु उन देवताओं में से एक हैं जो हिंदू त्रिमूर्ति बनाते हैं। वहीं, अन्य दो देवता ब्रह्मा और महेश यानि भगवान शिव और ब्रह्मा हैं। ब्रह्मा को सृष्टिकर्ता, विष्णु को रक्षक और शिव को संहारक माना जाता है। हालांकि, वैष्णवों के लिए उनकी दुनिया विष्णु के इर्द-गिर्द ही घूमती है। इस संप्रदाय में भगवान विष्णु के अलग-अलग अवतारों को दशावतारम के रूप में माना जाता है। वह पहले ही नौ अलग-अलग रूपों में प्रकट हो चुके हैं और अब माना जाता है कि वे कलियुग में कल्कि के रूप में अवतार लेने वाले हैं।
2024 में अब 30 दिसंबर 2024, सोमवार- कृष्ण अमावस्या के दिन अन्वधान मनाई जाएगी। वहीं, इष्टी महोत्सव 31 दिसंबर 2024, मंगलवार- कृष्ण अमावस्या के दिन मनाई जाएगी।
ये समय पारंपरिक वैदिक ज्योतिष और ग्रहों के प्रभावों पर आधारित हैं। अपने क्षेत्र में इन अनुष्ठानों को करने के लिए सबसे शुभ समय सुनिश्चित करने के लिए हमेशा स्थानीय पुजारी या ज्योतिषी से परामर्श करना उचित माना जाता है।
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