अनंत चतुर्दशी पर क्यों होती है भगवान विष्णु की पूजा, शुभ मुहूर्त और महत्व के साथ जानिए संपूर्ण पूजा विधि

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी पर अनंत चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इसे अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है। अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है।  इस चतुर्दशी के नाम में आने वाले "अनंत" शब्द का अर्थ है "बिना अंत का", "अखंड" या "अनंत" जो भगवान विष्णु की अनंत कृपा का उदाहरण है जबकि "चतुर्दशी" शब्द का अर्थ है "चौदहवां दिन"। भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ अनंत चतुर्दशी भगवान श्री गणेश के विसर्जन का भी दिन है। भक्तवत्सल के इस लेख में जानेंगे अनंत चतुर्दशी पर पूजा का शुभ मुहूर्त, इस त्योहार का महत्व और संपूर्ण पूजा विधि के साथ इसकी पौराणिक कथा के बारे में भी……


अनंत चतुर्दशी 2024 कब मनाई जाएगी? 


वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि यानि अनंत चतुर्दशी का शुभारंभ 16 सितंबर, 2024 को दोपहर 03 बजकर 10 मिनट पर हो रहा है. वहीं यह तिथि 17 सितंबर को सुबह 11 बजकर 44 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार अनंत चतुर्दशी मंगलवार 17 सितंबर को मनाई जाएगी। इस दौरान पूजा का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है- 


17 सितंबर अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त - सुबह 06 बजकर 07 मिनट से सुबह 11 बजकर 44 मिनट तक है. इस हिसाब से गणेश पूजा के लिए आपको 5 घंटे 37 मिनट का शुभ समय प्राप्त होगा। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा भी होती है।


अनंत चतुर्दशी 2024 पर बन रहा रवि योग 


इस साल अनंत चतुर्दशी के दिन रवि योग बन रहा है। रवि योग सुबह 6 बजकर 7 मिनट से दोपहर 1 बजकर 53 मिनट तक रहेगा। रवि योग में ही अनंत चतुर्दशी की पूजा होगी। रवि योग में पूजा करने से सभी प्रकार के दोष मिट जाते हैं क्योंकि इसमें सूर्य का प्रभाव अधिक होता है। इसे एक शुभ योग माना जाता है। 


गणेश विसर्जन के लिए शुभ मुहूर्त 


प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) -  17 सितंबर को सुबह 9 बजकर 11 मिनट से दोपहर 1 बजकर 47 मिनट

अपराह्न मुहूर्त (शुभ) -  17 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 19 मिनट से शाम 4 बजकर 51 मिनट तक

सायाह्न मुहूर्त (लाभ) - 17 सितंबर को  शाम  7 बजकर 51 मिनट से रात 9 बजकर 19 मिनट तक

रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) - 17 सितंबर को रात 10 बजकर 47 मिनट से मध्यरात्रि (18 सितंबर) 3 बजकर 12 मिनट तक 


अनंत चतुर्दशी का महत्व


अनंत चतुर्दशी का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। दरअसल अनंत भगवान विष्णु का एक लोकप्रिय नाम है। आमतौर पर अनंत चतुर्दशी की पूर्व संध्या पर पुरुष अपने सभी पिछले पापों से छुटकारा पाने के लिए और अपने बच्चों और परिवार की भलाई के लिए अनंत चतुर्दशी का व्रत रखते हैं। भगवान विष्णु का दिव्य आशीर्वाद पाने और अपनी खोई हुई समृद्धि और धन की प्राप्ति के लिए उपवास का लगातार 14 वर्षों तक पालन किया जाता है।



अनंत चतुर्दशी पूजा विधि 


1. सुबह जल्दी उठकर  स्नान करें।

2. पूजा स्थल को साफ करें और भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

3. भगवान विष्णु को पीले वस्त्र पहनाएं और उनके सामने धूप, दीप और अगरबत्ती जलाएं।

4. अनंत की पूजा करें, जो भगवान विष्णु का एक रूप है।

5. भगवान विष्णु को भोग लगाएं, जैसे कि फल, फूल और मिठाई।

6. अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत और उपवास रखें।

7. पूजन के बाद भगवान के 14 गठानों वाले अनंत को अपने बाजू पर बांध लें।

7. रात्रि में भगवान विष्णु की पूजा करें और उनके सामने दीप जलाएं।

8. अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।

9. दान और पुण्य करें, जैसे कि गरीबों को भोजन कराना और दान देना।


इसके अलावा अनंत चतुर्दशी पर भगवान श्री हरि के मंत्रों का जाप करना चाहिए


यूपी-बिहार में ऐसे होती है अनंत चतुर्दशी की पूजा 


पूर्वी यूपी और बिहार के कुछ हिस्सों में अनंत चतुर्दशी का त्योहार भगवान विष्णु और दूध सागर (क्षीरसागर) के अनंत रूप से जुड़ा हुआ है। इस त्योहार से जुड़ी बहुत सी रस्में और रिवाज हैं।


- सबसे पहले, भक्त एक लकड़ी का तखत लेते हैं, जिस पर वे सिंदूर के साथ चैदह तिलक लगाते हैं।

- उसके बाद 14 पूए (मीठी गेहूं की रोटी जो कि डीप फ्राई की जाती है) और चौदह पूरियां (गेहूं की ब्रेड जो डीप फ्राई की जाती है) इन तिलकों पर रखी जाती है।

- इसके बाद भक्त पंचामृत बनाते देते हैं, जो ‘दूध सागर’ (क्षीरसागर) का प्रतीक है।

- एक पवित्र धागा जिसमें 14 गांठें होती हैं जो भगवान अनंत को ककड़ी पर बांधा जाता है और फिर पांच बार ‘दूध के महासागर’ में घुमाया जाता है।

- श्रद्धालु एक व्रत का पालन करते हैं और फिर हल्दी और कुमकुम से रंगे हुए पवित्र धागे को अपनी बांह पर (पुरूषों के दाएं हाथ और स्त्रियों के बाएं हाथ में) अनंत सूत्र के रूप में बांधते हैं। 14 दिनों की अवधि के बाद, पवित्र धागा हटा दिया जाता है।


आप अपनी परंपरा के अनुसार अनंत चतुर्दशी की पूजा कर सकते हैं। 


अनंत चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथा 


हिंदू पौराणिक कथाओं और हिंदू शास्त्रों के अनुसार, पांडवों ने कौरवों के साथ खेले गए जुए के खेल में अपना सारा धन और वैभव खो दिया। जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें बारह वर्षों के वनवास और एक वर्ष के अज्ञात वास के लिए जाना पड़ा। पांच पांडव भाईयों में सबसे बड़े भाई राजा युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से इस कठिन समय से बाहर आने का उपाय पूछा। तब भगवान कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर से कहा कि वे भगवान अनंत की पूजा करें और व्रत का पालन करें क्योंकि इससे ही उनकी खोई हुई संपत्ति, वैभव और राज्य वापस मिलेंगे। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के साथ ऋषि कौंडिन्य और सुशीला की एक कहानी साझा की। जो अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा में आप पढ़ सकते हैं।

 

अनंत चतुर्दशी व्रत के बारें में पूरी जानकारी भक्तवत्सल के इस आर्टिकल में पढ़ें। इसमें आप व्रत कथा को विस्तार से पढ़ सकते हैं। 


हाइपरलिंक - अनंत चतुर्दशी व्रत कथा


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जब निर्वस्त्र होकर नहा रहीं गोपियों को नटखट कन्हैया ने पढ़ाया मर्यादा का पाठ

भगवान विष्णु ने रामावतार लेकर जगत को मर्यादा सिखाई और वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। वहीं कृष्णावतार में भगवान ने ज्यादातर मौकों पर मर्यादा के विरुद्ध जाकर अपने अधिकारों की रक्षा और सच को सच कहने साहस हम सभी को दिखाया।

काशी के कोतवाल काल भैरव

काशी के राजा भगवान विश्वनाथ और कोतवाल भगवान काल भैरव की जोड़ी हिंदू पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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