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अनंग त्रयोदशी व्रत में भगवान शिव-पार्वती तथा कामदेव और रति का पूजन किया जाता है। यह दिन प्रेमी जोड़ों के लिए बहुत खास माना गया है। क्योंकि, इस दिन व्रत रखने से जीवन में प्रेम की प्रगाढ़ता बढ़ती है। इसके साथ-साथ यह संतान प्राप्ति का वरदान देने वाला भी व्रत माना जाता है। यह व्रत वर्ष में दो बार किया जाता है, पहली बार चैत्र मास में और दूसरी बार मार्गशीर्ष अगहन मास में। इस बार अनंग त्रयोदशी और प्रदोष व्रत साथ ही है। ये दोनों पर्व शिव योग और सिद्ध योग के सुंदर संयोग में मनाए जाएंगे।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को अनंग त्रयोदशी कहते हैं। इस दिन शिव पूजन करने से वे भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। एक बार जब भगवान शिव सती वियोग से दुखी होकर ध्यान मग्न हो गए थे और तीनों लोकों में राक्षस तारकासुर का अत्याचार बढ़ गया था, तब देवताओं ने शिव जी का ध्यान भंग करने के लिए कामदेव और रति की मदद ली थी। तब कामदेव और रति ने शिव जी का ध्यान भंग कर दिया था, जिससे नाराज होकर शिव जी ने अपने तीसरे नेत्र की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया।
यह देखकर रति बेहद विलाप करने लगीं तब देवताओं ने शिव जी को सारा वृत्तांत सुनाया, जब शिव जी का क्रोध थोड़ा कम हुआ तो उन्होंने रति से कहा कि कामदेव इस समय अनंग हैं यानी वे बिना अंगों वाले और बिना शरीर के हैं। ज्ञात हो कि अंग रहित को अनंग कहा जाता है अर्थात् निराकार रूप वाले। इसलिए, भगवान कामदेव को अनंग के नाम से भी जाना जाता है।
तत्पश्चात द्वापर युग में कामदेव ने भगवान श्री कृष्ण के घर उनके पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेकर पुनः अपना शरीर पाया था। इस घटना के बाद से ही अनंग त्रयोदशी मनाई जाने लगी तथा इस दिन शिव-पार्वती जी के साथ कामदेव और रति की पूजा होने लगी। ऐसी मान्यता है कि संतान की चाह रखने वाले पति-पत्नी को अनंग त्रयोदशी के दिन व्रत रखने से कामदेव की कृपा प्राप्त होती है। इससे संतान प्राप्ति के भी प्रबल योग बनते हैं।
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