माना जाता है कि भगवान चित्रगुप्त का जन्म ब्रह्मा जी के चित्त से हुआ है। इन्हें देवताओं के मुख्य लेखपाल और यम के सहायक के रूप में पूजा जाता है। हिंदू धर्म में चित्रगुप्त भगवान प्रमुख कार्य मनुष्यों के अच्छे और बुरे कर्मों का लेखा-जोखा रखना है। जिससे कर्मों के आधार पर मृत्यु के बाद न्याय का निर्धारण किया जाता है। भाई दूज पर यम ने अपनी बहन यमुना को यह वरदान दिया था कि जो भाई इस दिन अपनी बहन से तिलक लगवाकर भोजन ग्रहण करेगा उसे मृत्यु का भय नहीं रहेगा।
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार भगवान चित्रगुप्त का जन्म ब्रह्मा जी के चित्त से हुआ है। उनके नाम में ही उनका कार्य छुपा है। 'चित्र' का अर्थ है विचार और 'गुप्त' का अर्थ है गुप्त या छिपा हुआ। चित्रगुप्त जी का कार्य मनुष्य के हर कर्म का लेखा-जोखा रखना है। वे हर व्यक्ति के जीवन के अच्छे और बुरे कर्मों को लिखित रूप में संजोते हैं ताकि मृत्यु के पश्चात उन्हें कर्मों के आधार पर न्याय मिल सके। इस दृष्टिकोण से चित्रगुप्त जी का कार्य धर्म और न्याय का प्रतीक है।
भाई दूज विशेष रूप से भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। पौराणिक कथा के अनुसार यमराज ने अपनी बहन यमुना को यह वरदान दिया था कि जो भाई इस दिन बहन के हाथों तिलक लगवाकर भोजन करेगा उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। चूंकि भगवान चित्रगुप्त यम के सहायक हैं इसलिए भाई दूज पर उनकी पूजा का भी विशेष महत्व है। इस दिन कायस्थ समुदाय के लोग विशेष रूप से चित्रगुप्त जी का पूजन करते हैं। साथ ही कलम और दवात का भी पूजन करते हैं। माना जाता है कि इससे बुद्धि, लेखन शक्ति और वाणी का आशीर्वाद मिलता है।
कायस्थ परिवारों में भगवान चित्रगुप्त की पूजा की परंपरा बहुत पुरानी है। चित्रगुप्त पूजा में कलम-दवात, कागज और कुछ लिखने की सामग्री को पूजा स्थल पर रखा जाता है। चित्रगुप्त जी की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक जलाया जाता है और मंत्रों के साथ पूजा की जाती है। भक्त भगवान चित्रगुप्त से अपने अच्छे कर्मों में वृद्धि और न्यायपूर्ण जीवन का आशीर्वाद मांगते हैं।
चित्रगुप्त जी के प्रति श्रद्धा का भाव भाई दूज पर विशेष रूप से देखा जाता है। उनके लेखन, सत्यता और न्याय के प्रतीक के रूप में कायस्थ समुदाय उन्हें पूजता है। भाई दूज पर की जाने वाली उनकी पूजा भक्तों को न्यायपूर्ण जीवन और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
हिंदू धर्म में 16 संस्कारों का विशेष महत्व है और उनमें नौवां संस्कार है कर्णवेध। यह संस्कार बच्चे के कान छिदवाने का समय होता है जो सामान्यतः 1 से 5 वर्ष की उम्र में किया जाता है।
उपनयन संस्कार, जिसे जनेऊ संस्कार के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है। यह संस्कार पुरुषों में जनेऊ धारण करने की पारंपरिक प्रथा को दर्शाता है, जो सदियों से चली आ रही है। उपनयन शब्द का अर्थ है "अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना"।
बच्चे के जन्म के बाद हिंदू परंपरा में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान किया जाता है जिसे मुंडन संस्कार कहा जाता है। यह अनुष्ठान न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि यह व्यक्ति की आत्मा की शुद्धि और नई शुरुआत का प्रतीक भी है।
माघ महीने का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है खासकर जब बात विवाह की आती है। इस महीने में गंगा स्नान और भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। साथ ही दान-पुण्य और मांगलिक कार्यों के लिए यह महीना अत्यंत शुभ माना जाता है।