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भाई दूज का महत्व

भाई दूज का महत्व

बहनों का अनोखा अनुष्ठान है भाई दूज, श्राप से मिट जाता है मृत्यु का भय


भाई दूज भारतीय परंपराओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए मनाती हैं। लेकिन बिहार और कुछ अन्य क्षेत्रों में इस पर्व को मनाने की विधि बेहद अलग और अनोखी है। यहां न केवल तिलक और मिठाइयों का आदान-प्रदान होता है, बल्कि बहनें अपने भाइयों को श्राप भी देती हैं और एक विशेष पूजा विधि का पालन करती हैं, जिसे बजरी कूटने या गोधन पूजा कहा जाता है। आइए विस्तार से समझते हैं इस अनोखी परंपरा की मान्यता और अनुष्ठान।


भाई को श्राप देने की है रस्म


भाई दूज के दिन बिहार में बहनें अपने भाइयों के प्रति प्यार और श्रद्धा व्यक्त करने के लिए कुछ विचित्र अनुष्ठानों का पालन करती हैं। इस परंपरा में भाई को तिलक लगाने और मिठाई खिलाने के साथ-साथ बहनें उन्हें श्राप भी देती हैं।


जानिए श्राप देने का महत्व


यह माना जाता है कि जब बहन अपने भाई को मौत का श्राप देती है तो ये उनकी सुरक्षा का प्रतीक बन जाता है। प्रचलित मान्यता के अनुसार इन श्रापों से भाई के मन से मृत्यु का भय खत्म हो जाता है। यमराज (मृत्यु के देवता) और उनकी बहन यमी (जो यमुना नदी के रूप में पूजी जाती हैं) के संदर्भ में यह परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि बहन के श्राप से यमराज का प्रभाव कम हो जाता है जिससे भाई की आयु लंबी होती है।


जीभ में कांटा चुभाने की रस्म


श्राप देने के बाद बहनें इस अनुष्ठान के पश्चाताप स्वरूप अपनी जीभ पर कांटे चुभाती हैं। यह कांटे रेंगनी (एक कांटेदार झाड़ी) से बनाए जाते हैं। यह क्रिया बहन की गलती के प्रायश्चित का प्रतीक है जिसमें वह भगवान यम से अपने शब्दों के लिए माफी मांगती है और अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करती है।


मूसल से कुचलते हैं मूर्तियां   


भाई दूज के इस अनुष्ठान का एक और महत्वपूर्ण भाग है गोधन कुटाई। इस प्रक्रिया में बहनें मूसल (लकड़ी का एक बड़े हथियार) से भगवान यम, यमी, सांप और बिच्छुओं की प्रतीकात्मक मूर्तियों को कुचल देती हैं। बहन से पूछा जाता है कि वह इन मूर्तियों को क्यों तोड़ रही है तो वह जवाब देती है, "मैं अपने भाई के दुश्मनों को कुचल रही हूं।" यह अनुष्ठान प्रतीकात्मक रूप से भाई के जीवन से हर प्रकार के संकट और मृत्यु के भय को दूर करने का प्रयास है।


पुरुषों को देखना निषेध


इस पूजा और अनुष्ठान का एक रोचक पहलू यह भी है कि पुरुष इन अनुष्ठानों को देख नहीं सकते। इसे पूरी तरह महिलाओं का अनुष्ठान माना गया है जिसमें केवल बहनें ही सक्रिय रूप से भाग लेती हैं।


क्या है इसके पीछे छिपी प्राचीन कहानी? 


कहा जाता है कि राजा पृथु के पुत्र की शादी का आयोजन था। राजा ने इस शुभ अवसर पर अपनी विवाहिता पुत्री को भी आमंत्रित किया। दोनों भाई-बहन के बीच बेहद स्नेह था। जब बहन अपने भाई की शादी में शामिल होने के लिए जा रही थी तब उसने रास्ते में एक कुम्हार दंपति की बातचीत सुनी। कुम्हार और उसकी पत्नी आपस में बात कर रहे थे कि "राजा की बेटी ने अपने भाई को कभी गाली नहीं दी है इसलिए उसका भाई बारात के दिन मर जाएगा।"

यह सुनते ही बहन चिंतित हो गई और उसने अपने भाई के घर पहुंचते ही उसे गालियां देनी शुरू कर दीं। यह सोचकर कि यदि उसने अपने भाई को श्राप दे दिया तो उस पर किसी भी अनहोनी का असर नहीं होगा। इस घटना के बाद से बहनों द्वारा भाई को गाली देने और श्राप देने की परंपरा का जन्म हुआ।


क्या है बजरी खिलाने की रस्म? 


भाई दूज के दिन बहनें अपने भाइयों को बजरी (एक विशेष प्रकार का अनाज) खिलाती हैं। मान्यता है कि यह अनाज खाने से भाई मजबूत और साहसी बनता है। बजरी खिलाने के पीछे यह भी विश्वास है कि इससे भाई का शरीर स्वस्थ रहता है और वह हर प्रकार की मुसीबतों का सामना कर पाता है। श्राप और गालियों के पीछे छिपी भावना यह है कि भाई को किसी भी प्रकार का डर न सताए। मान्यता है कि इससे जीवन को मोह और मृत्यु का भय तक समाप्त हो जाता है। 


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