सनातन धर्म में किसी भी मांगलिक कार्यों और पूजा-पाठ में नारियल चढ़ाने का विशेष महत्व है। कलश स्थापना से लेकर, विवाह, उपनयन संस्कार और यहां तक कि बेटी के विदाई के दौरान भी नारियल को महत्वपूर्ण माना गया है।
अगर हम कोई नई गाड़ी या घर लेते हैं, तो पूजा करने के दौरान नारियल फोड़ते हैं और उसके जल से नई गाड़ी को घर के मुख्य द्वार पर छिड़का जाता है। आपको बता दें, नारियल को संस्कृत शब्द श्रीफल है और श्रीफल माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। जिस प्रकार बिना लक्ष्मी के कोई भी पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है, ठीक वैसे ही बिना श्रीफल के पूजा-पाठ संपूर्ण नहीं होती है। सभी शुभ कार्यों में श्रीफल चढ़ाया जाता है, ताकि उस काम में किसी भी प्रकार की कोई बाधा न आए और सभी कार्य शुभता के साथ पूरा हो सके।
अब ऐसे में नारियल को श्रीफल क्यों कहा जाता है। इसे लेकर शास्त्र में क्या उल्लेख है। इसके बारे में हमने ज्योतिषाचार्य त्रिपाठी जी से पूछा। आइए इस लेख में इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
मत्स्य पुराण के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि माता लक्ष्मी को नारियल बेहद प्रिय है और जब भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी पृथ्वी पर आए थे तो उन्होंने सबसे पहले नारियल का पेड़ साथ मिलकर लगाया था। इसलिए माता लक्ष्मी को प्रिय होने के कारण नारियल को श्रीफल भी कहा जाता है। जब भी लक्ष्मी-नारायण की पूजा होती है, तो उसमें श्रीफल होने बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।
कूर्म पुराण के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि किसी भी यज्ञ और हवन में नारियल महत्वपूर्ण मानी जाती है और जब भी पूजा करने के बाद हवन करते हैं, तो उसमें श्रीफल को जलाकर ही पूर्णाहुति की जाती है और तभी पूजा सफल और सिद्ध मानी जाती है।
पद्म पुराण के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि अगर आपकी कोई मनोकामना है, जिसे आप सिद्ध करना चाहते हैं, तो देवी-देवताओं का नारियलके पानी से अभिषेक जरूर करना चाहिए। इससे शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है।
श्रीफल को लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि श्रीफल में देवी लक्ष्मी का वास होता है। इसलिए, घर में श्रीफल रखने से धन-धान्य की वृद्धि होती है। श्रीफल को नजर दोष से बचाव के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रह दोष है, तो श्रीफल की पूजा करने से उत्तम परिणाम मिल सकते हैं।
नारियल के सफेद वाले भाग में चंद्रदेव का वास होता है और चंद्रमा मन का कारक माने जाते हैं। इसलिए अगर आप किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, तो अपने आराध्य के सामने नारियल जरूर अर्पित करें और उनसे में कामना करें।
आप आप नारियल या श्रीफल की पूजा करना चाहते हैं, तो मंगलवार और शुक्रवार का दिन सबसे शुभ माना गया है। इस दिन पूजा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती है और कुंडली में स्थित ग्रह दोष से भी छुटकारा मिल सकता है।
ज्योतिष शास्त्रों में चंद्रमा को शांति, सौम्यता, मानसिक संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, चंद्र देव की पूजा भक्तों के जीवन में शांति, समृद्धि और सौभाग्य लाता है।
भारतीय संस्कृति में अमावस्या तिथि का हमेशा से विशेष महत्व रहा है। खासकर वैशाख मास की अमावस्या, जिसे 'वैशाख अमावस्या' कहा जाता है। यह तिथि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ मानी जाती है।
परशुराम जयंती, भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आता है, जिसे अक्षय तृतीया भी कहा जाता है और अक्षय तृतीया के साथ इसका संयोग इस दिन को और भी शुभ बनाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह की अमावस्या तिथि का विशेष धार्मिक महत्व है। यह तिथि पितरों की शांति के लिए विशेष मानी जाती है और इस दिन स्नान, दान, जप, और तर्पण करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।