हिंदू धर्म में वाराणसी को धर्म की नगरी कहा जाता है। जो सबसे पवित्र स्थानों में एक माना जाता है। वाराणसी का पुराना नाम काशी है। काशी को प्रकाश का स्थान भी कहा जाता है। यहां भगवान शिव का मंदिर है। जिसे काशी विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है और यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। काशी में ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने के लिए लाखों भक्त आते हैं। काशी अपनी संस्कृति विरासत के लिए जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति काशी आकर गंगा स्नान करता है और भगवान भोलेनाथ के दर्शन करता है। उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए काशी को मोक्ष का द्वार भी कहा जाता है। अब ऐसे में आखिर क्यों काशी में मृत्यु को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य त्रिपाठी जी से जानते हैं।
स्कंद पुराण के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि काशी में जिस भी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो देवता उस आत्मा की प्रशंसा करते हैं। आपको बता दें, इंद्रदेव जो स्वर्ग लोक के राजा हैं, जो उसे आत्मा को सहस्त्र आंखों से देखने के लिए व्याकुल रहते हैं और सूर्यदेव अपनी हजार किरणों के साथ उस आत्मा का स्वागत करते हैं।
काशी खंड के हिसाब से मणिकर्णिका घाट की चिताएं कभी नहीं बुझती हैं। कहते हैं कि जब किसी की मृत्यु होती है, तो भगवान शिव उनके कान में तारक मंत्र सुनाते हैं, जो सीधे मोक्ष की ओर प्रस्थान करता है। यहां तक कि अगर कोई व्यक्ति जीवन में कितना ही क्यों न पाप किया हो, अगर उसकी मृत्यु काशी में होती है, तो उसे मोक्ष प्राप्त होता है।
पुराणों के अनुसार, काशी भगवान शिव के त्रिशूल की नोक पर बसी है। यहां भक्तों का कहना है कि भगवान शिव काशी के कण-कण में बसे हैं। जीवन का प्रारंभ और अंत में काशी में ही है। ऐसा कहा जाता है कि काशी नगरी में जो भक्त प्राण त्यागता है, उसका मरना मंगल माना जाता है। काशी का आभूषण चिताभस्म है। यहां साधु-संतों के साथ-साथ अघोरियों का निवास बड़ी संख्या में है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव माता पार्वती से विवाह करने के बाद कैलाश पर्वत रहने लगे। तब माता पार्वती इस बात से नाराज रहने लगीं थीं। उन्होंने अपने मन की इच्छा भगवान शिव को बताई। तब अपनी प्रिय की बात सुनकर भगवान शिव कैलाश छोड़ दिए। कैलाश पर्वत को छोड़कर शिव और शक्ति काशी नगरी में आकर रहने लगे। इस तरह से काशी नगरी में आने के बाद भगवान शिव यहां ज्योतिर्लिंग रूप में स्थापित हो गए। इसलिए काशी को शिव-शक्ति का आत्मा भी कहा जाता है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है। ऐसा माना जाता है कि सैकड़ों जन्मों के पुण्य के ही फल से भक्त को विश्वनाथ जी के दर्शन का अवसर प्राप्त होता है।
दिवाली का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। साल 2024 में दिवाली 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
दिवाली के शुभ अवसर पर मां लक्ष्मी के साथ ही भगवान गणेश जी की पूजा भी की जाती है। गणेश जी को ज्ञान, बुद्धि और समृद्धि का देवता माना जाता है, जबकि मां लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी हैं।
दिवाली पर हम अपने घर में देवी लक्ष्मी के आगमन और उनकी पूजा की पूरी तैयारियां करते हैं। लेकिन मान्यताओं के अनुसार पूजा तभी सफल मानी जाती है जब दिवाली के दिन माता लक्ष्मी के साथ गणेश और भगवान कुबेर का विधिवत पूजन किया जाता है।
दिवाली के पावन पर्व पर विशेष रूप से माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा होती है। इस दिन माता रानी को कई तरह के पकवान चढ़ाए जाते हैं।