आपने अक्सर सुना होगा कि ग्रहण के दौरान खाना अशुभ होता है और लोग तुलसी के पत्ते का उपयोग क्यों करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण एक अशुभ घटना मानी जाती है। इस दौरान भोजन करने से व्यक्ति के किए गए सभी पुण्य नष्ट हो जाते हैं। तुलसी को पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि तुलसी के पत्ते खाने में डालने से भोजन के दूषित होने से बचा जा सकता है। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार, चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना है जिसमें पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य एक सीध में आ जाते हैं। इस दौरान पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है जिससे चंद्रमा का कुछ हिस्सा या पूरा हिस्सा अंधेरा हो जाता है। विज्ञान के अनुसार, ग्रहण के दौरान खाना खाने या कोई काम करने से व्यक्ति को कोई वास्तविक नुकसान नहीं होता है। यह सिर्फ एक प्राकृतिक घटना है। शास्त्रों के अनुसार, गर्भवती महिलाओं को चंद्र ग्रहण के दौरान विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। उन्हें किसी भी नुकीली वस्तु का उपयोग नहीं करना चाहिए और घर के अंदर ही रहना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ग्रहण के दौरान निकलने वाली किरणें गर्भस्थ शिशु के लिए हानिकारक हो सकती हैं। चंद्र ग्रहण के दौरान खाना-पीना वर्जित होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान बना भोजन विषैला हो जाता है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, हमारे शरीर की ऊर्जा चक्र चंद्रमा के चक्रों से जुड़े होते हैं। इसीलिए, भोजन पचाने में भी चंद्रमा का प्रभाव होता है। कुछ लोग मानते हैं कि पूर्णिमा के दिन भोजन करने से वह धीरे पचता है क्योंकि हमारे शरीर की ऊर्जा उस दिन कम सक्रिय होती है। यही कारण है कि ग्रहण के दिन कच्चा खाना खाने से मना किया जाता है।
आपको बता दें, चंद्र ग्रहण के दौरान ऊर्जा में एक बड़ा बदलाव होता है। यह ऊर्जा पृथ्वी की सतह पर मौजूद हर चीज को प्रभावित कर सकती है। चंद्रमा को हमारे मन और भावनाओं का कारक माना जाता है। चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्रमा की ऊर्जा में परिवर्तन होने के कारण, हमारा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी शुभ प्रभाव नहीं पड़ता है। इतना ही नहीं, चंद्र ग्रहण के दौरान ऊर्जा का प्रवाह बदल जाता है जो हमारे जीवन को प्रभावित करता है।
चंद्र ग्रहण के दौरान मंत्रों का जाप करना बेहद शुभ माना जाता है। इससे व्यक्ति पर किसी प्रकार के अशुभ प्रभाव नहीं पड़ते हैं।
हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, सुखद वैवाहिक जीवन और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए किया जाता है।
वट सावित्री का व्रत पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए किया जाने वाला एक पवित्र व्रत है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है।
वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं द्वारा रखा जाने वाला एक विशेष व्रत है, जो पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य के लिए किया जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है, तथा 2025 में यह व्रत सोमवार, 26 मई को मनाया जाएगा।
वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए किया जाने वाला महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत जितना श्रद्धा और नियमों से जुड़ा है, उतना ही इसका सही तरीके से पालन करना भी आवश्यक है। इस साल वट सावित्री व्रत 26 मई, सोमवार को मनाया जाएगा।