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भारत की चारों दिशाओं यानि पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण में चार धाम बसे हुए हैं। देश के अलग-अलग कोनों में मौजूद चार धामों को आदि शंकराचार्य ने परिभाषित किया है, जिसके अनुसार प्रत्येक धाम एक विशेष युग का प्रतिनिधित्व करता है , बद्रीनाथ सत्य युग का,, रामेश्वरम त्रेता युग का, द्वारका द्वापर युग का और पुरी कलियुग का प्रतिनिधित्व करता है। हिन्दू धर्म में चार धाम के दर्शन करने का बहुत महत्व बताया गया है। इस आर्टिकल में आज हम आपको उत्तर भारत में स्थित बद्रीनाथ धाम के बारें में सारी जानकारी देंगे। बता दें कि बद्रीनाथ मंदिर जिसे बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है, उत्तराखंड राज्य की प्राणदायनी अलकनंदा नदी के किनारे बसा हुआ है। ये पंच बदरी में से एक बद्री भी है। उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार और पंच प्रयाग का पौराणिक दृष्टि से तथा हिंदू धर्म में काफी महत्व बताया गया है।
बद्रीनाथ धाम के बारे में कहावत है कि 'जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी' यानी जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे पुनः माता के गर्भ में नहीं आना पड़ता है। बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में और 6 माह जागृत अवस्था में रहते हैं। यहां बद्रीनाथ की चतुर्भुज ध्यानमुद्रा की मूर्ति है जिसका निर्माण शालिग्राम शिला से हुआ है। यहां भगवान के नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है।
बद्रीनाथ धाम दो पर्वतों के बीच बसा हुआ है। इसे नर-नारायण पर्वत कहा जाता है। मान्यता है कि यहां पर भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी। नर अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्री कृष्ण हुए थे। इस धाम को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां जाने से व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मंदिर का इतिहास
बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु का विशाल मंदिर है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण 9वीं शताब्दी में भारतीय संत आदि शंकराचार्य द्वारा किया गया था। वह 814 ई. से 820 ई. तक बद्रीनाथ मंदिर में रहे और उन्होंने केरल के एक नंबूदिरी ब्राह्मण को यहां का मुख्य पुजारी बनने के लिए कहा। आज भी परंपरा जारी है। बद्रीनाथ के पुजारी को रावल कहा जाता है। जब तक कोई रावल के पद पर रहता हैं तो उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। रावल के लिए स्त्रीयों का स्पर्श भी पाप माना जाता है।
बद्रीनाथ धाम में क्या प्रसाद और कौन सा फूल चढ़ाएं?
बद्रीनाथ धाम में तुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। साथ ही यहां केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिरों में ब्रह्म कमल ही प्रतिमाओं पर चढ़ाए जाते हैं।
बद्रीनाथ धाम की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा
बद्रीनाथ धाम की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएं और किवंदतियां प्रचलित है। ऐसे ही एक पौराणिक लोक कथा के अनुसार, बद्रीनाथ और इसके आस-पास का पूरा क्षेत्र एक समय पर शिव भूमि (केदारखण्ड) के रूप के नाम से जाना जाता था। जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह बारह धाराओं में बंट गई, और इस स्थान से होकर बहने वाली धारा अलकनन्दा के नाम से विख्यात हुई। मान्यता है कि एक समय भगवान विष्णु अपने ध्यान और विश्राम करने के लिए अच्छी जगह की तलाश कर रहे थे। तब उन्हें अलकनन्दा के समीप का स्थान बेहद पसंद आया। उस वक्त इस स्थान पर भगवान शिव और पार्वती निवास करते थे। ऐसे में भगवान विष्णु ने एक युक्ति सोची, उन्होंने नीलकंठ पर्वत के समीप बाल रूप में अवतार लिया, और रोने लगे। उनके रोने की आवाज सुन कर माता पार्वती की ममता जाग उठी। माता पार्वती उस शिशु को उठाने लगी तभी शिव ने रोका और कहा कि उस शिशु को मत छुओ। पार्वती ने पूछा क्यों? शिव बोले यह कोई अच्छा शिशु नहीं है। सोचो यह यहां अचानक कैसे और कहां से आ गया? दूर तक कोई इसके माता-पिता नजर नहीं आते। यह कोई बच्चा नहीं बल्कि किसी की माया है। लेकिन माता पार्वती नहीं मानी और वह बच्चे को उठाकर घर के अंदर ले गई। पार्वती ने बच्चे को चुप कराया और उसे दूध पिलाया। फिर वह बच्चे को वहीं सुलाकर शिव के साथ नजदीक के एक गर्म झरने जिसे आज हम तप्त कुंड कहते हैं, में स्नान करने के लिए चली गईं। जब वे दोनों वापस लौटे तो उन्होंने देखा की घर का दरवाजा अंदर से बंद था। पार्वती ने शिव से कहा कि अब हम क्या करें? शिव ने कहा कि यह तुम्हारा बालक है। में कुछ नहीं कर सकता। अच्छा होगा कि हम कोई नया ठिकाना ढूंढ लें, क्योंकि अब दरवाज नहीं खुलने वाला है और मैं बलपूर्वक इस दरवाजे को नहीं खोलूंगा। कहते हैं कि शिव और पार्वती वह स्थान छोड़कर केदारनाथ चले गए और वह बालक जो भगवान विष्णु थे वहीं जमे रहे। इस तरह भगवान विष्णु ने जबरन बद्रीनाथ को अपना विश्राम स्थान बना लिया। बद्रीनाथ मन्दिर का उल्लेख विष्णु पुराण, महाभारत तथा स्कन्द पुराण समेत कई प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है।
भगवान विष्णु का नाम बद्रीनाथ कैसे पड़ा?
दरअसल, भगवान विष्णु को बद्रीनाथ कहे जाने के पीछे भी एक कथा है, जिसके अनुसार जब भगवान विष्णु ध्यानयोग में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु और वे जहां तपस्या कर रहे थे वह जगह बर्फ में पूरी तरह डूबने लगी। यह देखकर माता लक्ष्मी व्याकुल हो उठी। और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गईं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी बर्फ से ढकी हुई हैं। माता लक्ष्मी के तप को देख कर भगवान विष्णु ने कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर ही तप किया है तो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जाएगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है इसलिए आज से मुझे बदरी के नाथ अर्थात बदरीनाथ के नाम से जाना जाएगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बद्रीनाथ पड़ा। बद्रीनाथ का नाम इसलिए भी बद्रीनाथ है क्योंकि यहां प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली जंगली बेरी को बद्री कहते हैं। इसी कारण इस थाम का नाम बद्री पड़ा। यहां भगवान विष्णु का विशाल मंदिर है और यह संपूर्ण क्षेत्र प्रकृति की गोद में स्थित है।
बद्रीनाथ मंदिर में दर्शन और आरती का समय
बद्रीनाथ धाम मंदिर के कपाट सुबह 4:30 बजे खुलते हैं।
मंगला आरती- प्रातः 4:30 से 5:00 बजे के बीच होती है।
भक्तों के लिए सामान्य दर्शन मंगला आरती के बाद शुरू होते हैं और दोपहर तक चलते हैं।
राजभोग आरती- यह मध्याह्न आरती लगभग 11:30 बजे की जाती है।
दोपहर में बंद रहते हैं मंदिर के कपाट
मंदिर की साफ-सफाई और तैयारियों के लिए दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं।
सायं दर्शन:
मंदिर दोपहर 3 बजे पुनः खुलता है।
संध्या आरती- शाम 6:30 बजे से 7:00 बजे तक की जाती है।
शाम की आरती के बाद, आप रात 9 बजे तक दर्शन कर सकते हैं, क्योंकि रात 9 बजे मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
बद्रीनाथ धाम की यात्रा करने के लिए अनुकुल समय
हिमालय की वादियों में बसे होने के कारण बद्रीनाथ धाम का मौसम लगभग पूरे साल ठंडा रहता है। ठंड के मौसम में ज्यादा बर्फबारी के कारण यह मंदिर साल में 6 महीने के लिए बंद हो जाता है। बता दें कि बद्रीनाथ धाम की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय मई से जून और सितंबर से अक्टूबर के बीच होता है। मानसून में बद्रीनाथ में भारी बारिश और तापमान में गिरावट देखी जाती है, इसलिए गर्मी का मौसम इस जगह की यात्रा के लिए परफेक्ट समय है। जिस मौसम में आप यहां यात्रा करने जा रहे हैं, बस इस बात का ध्यान रखें कि आप उस हिसाब के कपड़े जरूर लेकर जाएं।
बद्रीनाथ धाम कैसे पहुंचे?
आपको जानकारी के लिए बता दें कि कि मंदिर हिमालय में स्थित है, और ठंड में भारी बर्फबारी के कारण यह मंदिर साल में 6 महीने के लिए बंद रहता है। मंदिर अप्रैल-मई से अक्टूबर-नवंबर तक तीर्थयात्रियों के लिए खुला रहता है। यदि आप बद्रीनाथ धाम की यात्रा करना चाहते हैं तो आपको देवभूमि उत्तराखंड आना होगा। आप फ्लाइट, ट्रेन, बस या प्राइवेट कार से उत्तराखंड की यात्रा कर सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले आप दिल्ली आ सकते हैं, देश की राजधानी होने के कारण यह कई प्रमुख जगहों से सीधे कनेक्टेड है। आप अपने होमटाउन से दिल्ली तक की यात्रा करें और इसके बाद फ्लाइट, ट्रेन या बस लेकर बद्रीनाथ धाम पहुच सकते हैं। दिल्ली से बद्रीनाथ मंदिर की दूरी लगभग 542.6 km है।
हवाई मार्ग से: यदि आप फ्लाइट से बद्रीनाथ मंदिर की यात्रा करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको जॉली ग्रांट एयरपोर्ट पर उतरना होगा। यह बद्रीनाथ का निकटतम हवाई अड्डा है जो 314 किमी की दूरी पर स्थित है। जॉली ग्रांट एयरपोर्ट दिल्ली से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और बद्रीनाथ से इस हवाई अड्डे तक गाड़ी चलाने योग्य सड़कें भी अच्छे से जुड़ी हुई है। जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से बद्रीनाथ के लिए टैक्सी उपलब्ध हैं, या आप बाहर जाकर बस भी ले सकते हैं।
रेल द्वारा: बद्रीनाथ का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन की दूरी बद्रीनाथ से 295 किमी है। यह भारत के कई रेलवे स्टेशन से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ऋषिकेश, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, चमोली, जोशीमठ से बद्रीनाथ के लिए टैक्सी और बसें उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग द्वारा: आप अपनी प्राइवेट कार से भी यात्रा कर सकते हैं, साथ ही हरिद्वार, देहरादून और ऋषिकेश जैसे आस-पास के शहरों से बद्रीनाथ के लिए नियमित बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं। बद्रीनाथ पहुंचने के लिए आप इन शहरों के बस स्टेंड से बस ले सकते हैं।
केदारनाथ धाम से बद्रीनाथ मंदिर की यात्रा कैसे करें?
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार बद्रीनाथ की यात्रा तब ही सफल मानी जाती है , जब कि आपने केदारनाथ के दर्शन भी कर लिए हों। केदारनाथ से बद्रीनाथ के बीच की दूरी लगभग 245 किलोमीटर है। केदारनाथ मंदिर के दर्शन करने के बाद आपको पहले गौरीकुंड आना होगा। केदारनाथ से गौरीकुंड के लिए 18 किलोमीटर का ट्रैक करना पड़ेगा। यहां से पांच किलोमीटर की दूरी पर सोनप्रयाग स्थित है, और सोनप्रयाग से बद्रीनाथ के लिए लगभग 221 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ेगा। इस दूरी को तय करने में आपको 7 से 8 घंटे का समय लग सकता है।
बद्रीनाथ धाम के आस-पास इन hotels और धर्मशालाओं में कर सकते है स्टे
बद्रीनाथ धाम पहाड़ों में बसा हुआ है। इसलिए यहां ठंड ज्यादा होती हैं। यदि आप ठंड से बचना चाहते है, तो जोशीमठ में भी रूक सकते हैं। मंदिर के आस-पास कई बजट फ्रेंडली hotels और धर्मशालाएं हैं, जहां आप स्टे कर सकते हैं। नीचे दी गई hotels और धर्मशालाएं बजट फ्रेंडली हैं साथ ही उनकी बद्रीनाथ मंदिर से दूरी भी हम आपको बता रहें हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार इन hotels में स्टे कर सकते हैं। इसके साथ ही बद्रीनाथ धाम के आस-पास कैंप भी होते हैं। जहां आप आराम कर सकते हैं।
होटल्स:
Amritara The Avadh (0.5km)
Hotel Panchvati Inn (0.3km)
New Hotel Snow Crest (0.7)
The Tattva (22.7km)
Sarovar Portico (0.9km)
Hotel Narayan Palace (0.6km)
धर्मशालाएं:
Jain Dharamshala (1.1km)
Shree Swaminarayan Mandir Badrinath (0.7km)
Bharat Sevashram Sangha (0.7 km)
Manav Kalyan Ashram, Badrinath (0.5km)
Ishwar Bhawan (400m)
बद्रीनाथ धाम के अलावा भी आप कई जगह एक्सप्लोर कर सकते हैं
बद्रीनाथ मंदिर में दर्शन करने के अलावा आप यहां तप्त कुंड, ब्रह्मा कपाल, नीलकंठ शिखर, माता मूर्ति मंदिर, चरणपादुका, शेषनेत्र, वसुधारा वॉटरफॉल,व्यास गुफा,सरस्वती मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं। ये सभी जगह एक दूसरे से कुछ किमी की दूरी पर ही स्थित हैं, और जहां आप आसानी से पहुंच सकते हैं। अगर आप बद्रीनाथ धाम जा रहे हैं तो इन फेमस जगहों को भी जरूर एक्सप्लोर करें।
नोट- बद्रीनाथ समुद्र तल से 3,300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां परोसा जाने वाला भोजन उत्तर भारतीय व्यंजन और लोकप्रिय चीनी व्यंजन के साथ मौजूद हैं। जगह के धार्मिक महत्व के कारण बद्रीनाथ में मांसाहारी भोजन और शराब सख्त वर्जित है।
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