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छत्तीसगढ़ के सबसे प्राचीन मंदिरो में से एक है जांजगीर चांपा जिले के चन्द्रपुर की छोटी सी पहाड़ी के ऊपर विराजित है मां चंद्रहासिनी। देवी मां चंद्रहासिनी को समर्पित मंदिर महानदी नदी के तट पर स्थित है। छत्तीसगढ़ राज्य के जांजगीर जिले में स्थित, चंद्रहासिनी देवी मंदिर राज्या या राजगढ़ के आसपास के स्थानों की खोज करने वाले पर्यटकों के लिए एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है। यहां आने वाले दैनिक अनुष्ठानों के अलावा, मंदिर विशेष रुप से उन पूजाओं के लिए जाना जाता है जो नवरात्रि के दिनों में यहां आयोजित की जाती है। नवरात्रि के नौ दिनों में यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक होती है।
चंद्रमा के आकार की विशेषताओं की वजह से उन्हें चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि चंद्रसेनी देवी ने सरगुजा को छोड़ दिया और उदयपुर और रायगढ़ होते हुए महानदी के किनारे चंद्रपुर की यात्री की। महानदी कि पवित्र शीतल धारा से प्रभावित होकर माता रानी विश्राम करने लगी। इसके बाद उन्हें नींद आ गई। सालों व्यतीत हो जाने के बाद उनकी नींद नहीं खुली। एक बार संबलपुर के राजा की सवारी यहां से गुजरी। चंद्रसेनी देवी पर उनके गलती से पैर लग जाने से चोट लग गई, जिससे वे जाग गई। फिर एक दिन देवी ने उन्हें सपने में दर्शन दिए और उन्हें एक मंदिर बनाने और वहां एक मूर्ति स्थापित करने के लिए कहा। हर साल चैत्र नवरात्रि के मौके पर सिद्ध शक्तिपीठ मां चंद्रहासिनी देवी चंद्रपुर में महाआरती के साथ 108 दीपों की पूजा की जाती है।
मान्यता के अनुसार देवी के आदेश को मानते हुए राजा चंद्रहास ने महानदी के तट पर पहाड़ी के ऊपर मां चंद्रहासिनी के मंदिर का निर्माण कराया, इसके साथ ही उन्होंने मां चंद्रहासिनी की छोटी बहन मां नाथलदाई के मंदिर का निर्माण नदी के बीच टापू पर करवाया। मां नाथलदाई का मंदिर नदी के बीच टापू पर बना है, लेकिन चाहे नदी में कितनी भी बाढ़ हो मां का मंदिर कभी नहीं डूबता है।
मंदिर के प्रांगण में अर्धनारीश्वर, महाबलशाली पवन पुत्र, कृष्ण लीला, चिरहरण, महिषासुर वध, चार धाम, नवग्रह, सर्वधर्म सभा, शेषनाग बिस्तर और अन्य देवी देवताओं की भव्य मूर्तियां दिखाई देती है। इसके अलावा शीश महल, कारा मंडल, मंदिर के मैदान पर एक चलती हुई झांकी महाभारत काल को जीवंत तरीके से दर्शाती है। जिससे लोगों को महाभारत के पात्रों औक कथानक के बार मेम जानकारी मिलती है।
नवरात्रि पर्व के दौरान 108 दीपों के साथ महाआरती में शामिल होने वाले भक्त मां के अनुपम आशीर्वाद का हिस्सा बनते हैं। नवरात्रि के दौरान भक्त नंगे पांव मां के दरबार में पहुंचते हैं और कर नापकर मां कि विशेष कृपा अर्जित करते हैं।
कहा जाता है कि मनोकामना पूरी होने पर भक्त यहां शुद्ध देशी घी से बने 51 किलो का लड्डू चढ़ाते हैं। बाद में इस लड्डू को प्रसाद के तौर पर मंदिर में आए भक्तों को बांट दिया जाता है।
हवाई मार्ग - यहां का निकटतम हवाईअड्डा भिलाई या रायपुर है। रायुपर से जांजगीर पहुंचने के लिए आप टैक्सी या बस का उपयोग कर सकते हैं।
रेल मार्ग - जांजगीर का निकटतम रेलवे स्टेशन जांजगीर -चाम्पा रेलवे स्टेशन हैं, जो यहां से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है। आप स्टेशन से टैक्सी या बस लेकर मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग - अगर आप शहर में है तो आप टैक्सी या ऑटो-रिक्शा लेकर सीधे मंदिर जा सकते हैं। मंदिर शहर से लगभग 15 से 20 किलोमीटर पर है। छत्तीसगढ़ राज्य परिवहन की बसे भी यहां नियमित रुप से चलती है।
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