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खल्लारी माता मंदिर, छत्तीसगढ़ (Khallari Mata Temple, Chhattisgarh)

दर्शन समय

5 AM - 11 PM

कन्या स्वरूप में हाटबाजार पहुंची देवी, बंजारे को दिया श्राप, फिर जाकर हुआ खल्लारी देवी मंदिर का निर्माण 


भारत में ऐसे कई स्थान और मंदिर है जिनका नाता आज भी रामायण और महाभारत से जुड़ा हुआ है। इन्हीं में से एक मंदिर है छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में स्थित खल्लारी माता का मंदिर। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां पर महाबली भीम और राक्षसी हिडिंबा की विवाह संपन्न हुआ था। इसके बाद यहां पर माता खल्लारी का मंदिर बनाया गया। आइए जानते है इस मंदिर से जुड़ी खास बातें।


खलवाटिका के नाम से जाना जाता है खल्लारी धाम


राजधानी रायपुर से महज 70 किमी की दूरी पर महासमुंद जिले में खल्लारी माता का मंदिर स्थित है। मंदिर के लिए घने जंगलों से होकर गुजरना पड़ता है। ये मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर है। प्राचीन काल में इस स्थान को खलवाटिका के नाम से जाना जाता था। माता के दर्शन के लिए भक्तों को करीब 850 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। खल्लारी माता मंदिर परिसर और कोडार डैम का नजारा बहुत ही खूबसूरत नजर आता है। ये स्थान बांध के पास है जो पर्यटक यहां आकर इस जगह का लुत्फ उठाते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि माता उनकी रक्षक है।


भीम के कारण जगह का नाम पड़ा भीमखोज 


ऐसी किवदंती है कि महाभारत काल में इस स्थान पर हिडिंब नाम का राक्षस रहता था। वनवास में महाबली भीम इस स्थान से गुजरने के दौरान विश्राम कर रहे थे, तभी हिडिंब की बहन हिडिंबा भीम की बलिष्ठ काया को देखकर उस पर मोहित हो गई। इस बीच हिडिंब राक्षस वहां पहुंच गया और उसने भीम के साथ युद्ध किया। भीम ने हिडिंब का वध कर दिया और माता कुंती के आदेश से राक्षसी हिडिंबा से विवाह किया। माना जाता है कि पांडवों ने इस स्थान पर काफी दिनों तक निवास किया, जिसके साक्ष्य आज भी मिलते हैं। इस स्थान को भीमखोज के नाम से भी जाना जाता है, खल्लारी की पहाड़ियों में ऐसे कई निशान है, जिनको महाबली भी से जोड़कर देखा जाता है। स्थानीय मान्यताओं में चट्टानों पर बने बड़े -बड़े निशानों को भीम के शक्ति प्रदर्शन का सबूत माना जाता है। यहां पर भीम चूल्हा, भीम की नाव स्थान भी मौजूद है।


1985 में पहली बार जलाई गई नवरात्रि पर ज्योत


यहां के स्थानीय लोग बताते है कि पहले घने जंगलों के बीच खल्लारी पहाड़ी पर केवल एक गुफा थी, जिसमें देवी माता की अंगुली का निशान अंकित था। ग्रामीण वन्यप्राणियों का खतरा मोल लेते हुए देवी पूजन के लिए पहाड़ियों पर चढ़ते थे। 1940 के आसपास पहाड़ चढ़ने के लिए सीढ़ियों का निर्माण कराया गया, जिससे श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि हुई और पहली बार 1985 में नवरात्रि में ज्योति कलश प्रज्ज्वलित कर मंदिर निर्माण कराया गया।


बंजारा और माता के कन्या से जुड़ी खल्लारी मंदिर की कथा 


स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन काल में महासमुंद के डेंचा गांव में खल्लारी माता की निवास था। देवी कन्या का रूप धारण करके खल्लारी में लगने वाले हाट बाजार में आती थी। एक बार माता को कन्या के रूप में देखकर एक बंजारा मोहित हो गया और उनका पीछा करते हुए पहाड़ी तक पहुंच गया। इस बात से क्रोधित होकर खल्लारी माता ने बंजारे को श्राप देकर उसे पत्थर में परिवर्तित कर दिया और खुद भी वहां विराजमान हो गई।


खल्लारी माता मंदिर कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग - खल्लारी माता मंदिर के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा रायपुर का है। जो इस मंदिर से 80 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से आप स्थानीय परिवहन सेवा या टैक्सी के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग- खल्लारी माता मंदिर से निकटतम रेलवे स्टेशन महासमुंद रेलवे स्टेशन है। यहां से आप स्थानीय परिवहन सेवाओं या टैक्सी का उपयोग करके आसानी से इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग - इस मंदिर तक पहुंचने वाली सड़के देश के अन्य शहरों से अच्छी तरह से जुड़ी हुई है। आप देश के किसी भी हिस्से से यहां पर आसानी से पहुंच सकते हैं।


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