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छठ पूजा और मिट्टी के हाथी

छठ पूजा और मिट्टी के हाथी

छठ पूजा में घाट पर क्यों ले जाते हैं मिट्टी के हाथी, जानिए क्या होती है कोसी भराई 


छठ पूजा उत्तर भारत का प्रमुख त्योहार है। जिसमें सूर्य देव और छठी मैया की उपासना की जाती है। इस महापर्व में मिट्टी के हाथी और कोसी भराई की पवित्र परंपरा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि मन्नत पूरी होने पर लोग मिट्टी का हाथी अर्पित कर सूर्य देव और छठी मईया को धन्यवाद देते हैं। गन्ने से बने मंडप (कोसी) में दीपक, कलश और हाथी रखकर पूजा की जाती है। पूजा के बाद हाथी की मूर्ति को नदी में प्रवाहित किया जाता है। 


मिट्टी के हाथी का महत्व


छठ महापर्व में मिट्टी के हाथी चढ़ाने और जल में विसर्जित करने की सदियों पुरानी परंपरा है। धार्मिक मान्यता है कि जो लोग छठी मैया से मन्नत मांगते हैं और उनकी मन्नत पूरी हो जाती है, वे श्रद्धा स्वरूप मिट्टी के हाथी की पूजा करते हैं। इसके बाद इस हाथी को विसर्जित किया जाता है। व्रती हाथी को पहले अर्घ्य के बाद अपने घर के आंगन या छत पर रखते हैं और सुबह के अर्घ्य के समय इसे नदी या तालाब में विसर्जित कर देते हैं।


कैसा होता है मिट्टी के हाथी का स्वरूप


हाथी को मिट्टी से तैयार किया जाता है और इसमें 6, 12, या 24 दीये लगे होते हैं।

हाथी के ऊपर ढक्कन होता है जिसमें लोग तेल भरते हैं और पूजा के समय दीप जलाते हैं।

गन्ने से बने कोसी के बीच इस हाथी को रखा जाता है और इसके साथ फल, ठेकुआ और कलश भी सजाया जाता है।


कोसी भराई की विधि 


छठ पूजा में कोसी भराई की परंपरा भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे विशेष रूप से शुभ और मंगलदायक माना जाता है। यह अनुष्ठान खासतौर से उन परिवारों द्वारा किया जाता है जिनके घर में मांगलिक कार्य हुए होते हैं। जैसे शादी या फिर संतान का जन्म। इसके अलावा जिन लोगों की मन्नतें पूरी होती हैं वे भी कोसी भराई करते हैं। दूसरे अर्घ्य के लिए सुबह यह कोसी घाट पर ले जाई जाती है और वहां विसर्जित कर दी जाती है।


हाथी और कोसी चढ़ाने की परंपरा


लोक मान्यता है कि जो लोग छठी मईया से मन्नत मांगते हैं और उनकी इच्छा पूरी हो जाती है। वे सभी हाथी और कोसी चढ़ाकर कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। यह परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि मन्नत पूरी होने पर देवी-देवताओं को आभार स्वरूप अर्पण करना अनिवार्य होता है।


छठ पूजा में सामग्रियों का महत्व


छठ पूजा की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए सभी पूजन सामग्री प्रकृति और पर्यावरण के अनुकूल होनी चाहिए। इसलिए मिट्टी के हाथी, दीया, कलश और अन्य सामग्रियों का विशेष महत्व है। बाजारों में छठ के समय मिट्टी के हाथी 200 से 800 रुपये तक के दामों में उपलब्ध होते हैं।


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जया एकादशी उपाय

जया एकादशी का दिन बहुत ही पावन माना जाता है। इस साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 08 फरवरी को मनाई जाएगी।

जया एकादशी की कथा

सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है। माघ मास की जया एकादशी जल्द ही आने वाली है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से व्यक्ति को विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

जया एकादशी व्रत नियम

प्रत्येक महीने में एकादशी दो बार आती है—एक बार कृष्ण पक्ष में और दूसरी बार शुक्ल पक्ष में। कृष्ण पक्ष की एकादशी पूर्णिमा के बाद आती है, जबकि शुक्ल पक्ष की एकादशी अमावस्या के बाद आती है।

भीष्म पितामह का अंतिम संस्कार

माघ मास में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी कहते हैं। इसे तिल द्वादशी भी कहते हैं। भीष्म द्वादशी को माघ शुक्ल द्वादशी नाम से भी जाना जाता है।

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