मूर्ति स्वयंभू शारदा, मैहर आन विराज ।
माला, पुस्तक, धारिणी, वीणा कर में साज ॥
जगमग जगमग जोत जली है,
राम आरती होन लगी है..
ॐ जय गौमाता, मैया जय जय गौमाता,
जो कोई तुमको सेवत, त्रिभुवन सुख पाता।।
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधं,
त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥1॥