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रानीसती चालीसा ( Ranisati Chalisa )

II दोहा II


श्री गुरु पद पंकज नमन, दुषित भाव सुधार I

राणी सती सू विमल यश, बरणौ मति अनुसार II

काम क्रोध मद लोभ में, भरम रह्यो संसार I

शरण गहि करूणा मई, सुख सम्पति संसार II


II चौपाई II


नमो: नमो: श्री सती भवानी, जग विख्यात सभी मन मानी I

नमो: नमो: संकट को हरनी, मनवांछित पूरण सब करनी II (१)

नमो: नमो: जय जय जगदंबा, भक्तन काज न होय विलंबा।

नमो: नमो: जय जय जगतारिणी, सेवक जन के काज सुधारिणी II (२)

दिव्य रूप सिर चूनर सोहे, जगमगात कुन्डल मन मोहे I

मांग सिंदूर सुकाजर टीकी, गजमुक्ता नथ सुंदर नीकी II (३)

गल वैजंती माला विराजे, सोलहूं साज बदन पे साजे I

धन्य भाग गुरसामलजी को, महम डोकवा जन्म सती को II (४)

तन धनदास पति वर पाये, आनंद मंगल होत सवाये I

जालीराम पुत्र वधु होके, वंश पवित्र किया कुल दोके II (५)

पति देव रण मॉय जुझारे, सति रूप हो शत्रु संहारे I

पति संग ले सद् गती पाई , सुर मन हर्ष सुमन बरसाई II (६)

धन्य भाग उस राणा जी को, सुफल हुवा कर दरस सती का I

विक्रम तेरह सौ बावन कूं, मंगसिर बदी नोमी मंगल कूं II (७)

नगर झून्झूनू प्रगटी माता, जग विख्यात सुमंगल दाता I

दूर देश के यात्री आवे, धुप दिप नेवैध्य चढावे II (८)

उछाड़ उछाड़ते है आनंद से, पूजा तन मन धन श्रीफल से I

जात जङूला रात जगावे, बांसल गोत्री सभी मनावे II (९)

पूजन पाठ पठन द्विज करते, वेद ध्वनि मुख से उच्चरते I

नाना भाँति भाँति पकवाना, विप्र जनो को न्यूत जिमाना II (१०)

श्रद्धा भक्ति सहित हरसाते, सेवक मनवांछित फल पाते I

जय जय कार करे नर नारी, श्री राणी सतीजी की बलिहारी II (११)

द्वार कोट नित नौबत बाजे, होत सिंगार साज अति साजे I

रत्न सिंघासन झलके नीको, पलपल छिनछिन ध्यान सती को II (१२)

भाद्र कृष्ण मावस दिन लीला, भरता मेला रंग रंगीला I

भक्त सूजन की सकल भीड़ है, दरशन के हित नही छीड़ है II (१३)

अटल भुवन मे ज्योति तिहारी, तेज पूंज जग मग उजियारी I

आदि शक्ति मे मिली ज्योति है, देश देश मे भवन भौति है II (१४)

नाना विधी से पूजा करते, निश दिन ध्यान तिहारो धरते I

कष्ट निवारिणी दु:ख नासिनी, करूणामयी झुन्झुनू वासिनी II (15)

प्रथम सती नारायणी नामा, द्वादश और हुई इस धामा I

तिहूं लोक मे कीरति छाई, राणी सतीजी की फिरी दुहाई II (१६)

सुबह शाम आरती उतारे, नौबत घंटा ध्वनि टंकारे I

राग छत्तीसों बाजा बाजे, तेरहु मंड सुन्दर अति साजे II (१७)

त्राहि त्राहि मैं शरण आपकी, पुरी मन की आस दास की I

मुझको एक भरोसो तेरो, आन सुधारो मैया कारज मेरो II (१८)

पूजा जप तप नेम न जानू, निर्मल महिमा नित्य बखानू I

भक्तन की आपत्ति हर लिनी, पुत्र पौत्र सम्पत्ति वर दीनी II (१९)

पढे चालीसा जो शतबारा, होय सिद्ध मन माहि विचारा I

टाबरिया ली शरण तिहारी, क्षमा करो सब भूल चूक हमारी II (२०)


II दोहा II


दु:ख आपद विपदा हरण, जन जीवन आधार I

बिगड़ी बात सुधारियो, सब अपराध बिसार II

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श्री हरि स्तोत्रम् (Sri Hari Stotram)

जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालंशरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की रमा नाम एकादशी (Kaartik Maas Kee Krshn Paksh Kee Rama Naam Ekaadashee)

इतनी कथा सुनकर महाराज युधिष्ठिर ने भगवान् से कहा-प्रभो ! अब आप कृपा करके कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के माहात्म्य का वर्णन करिये। पाण्डुनन्दन की ऐसी वाणी सुन भगवान् कृष्ण ने कहा-हे राजन् !

फाल्गुन कृष्ण विजया नाम एकादशी व्रत (Phalgun Krishna Vijaya Naam Ekaadashi Vrat)

इतनी कथा सुन महाराज युधिष्ठिर ने फिर भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा कि अब आप कृपाकर फाल्गुन कृष्ण एकादशी का नाम, व्रत का विधान और माहात्म्य एवं पुण्य फल का वर्णन कीजिये मेरी सुनने की बड़ी इच्छा है।

श्री बृहस्पतिवार/गुरुवार की व्रत कथा (Shri Brispatvaar /Guruvaar Ki Vrat Katha

भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था।