श्री रविदास चालीसा (Sri Ravidas Chalisa)

श्री रविदास चालीसा की रचना और महत्त्व


संत रविदास बेहद धार्मिक स्वभाव के थे। वे भक्तिकालीन संत और महान समाज सुधारक थे।  संत रविदास जी ने लोगों को बिना भेदभाव के आपस में प्रेम करने की शिक्षा दी और इसी तरह से वे भक्ति के मार्ग पर चलकर संत रविदास कहलाए। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ पूर्णिमा के दिन रविदास जयंती मनाई जाती है। माना जाता है कि इस दिन रविदास चालीसा का पाठ करना बेहद शुभ फयदायी माना गया है। रविदास चालीसा में 40 पंक्तियां है, जिसमें संत रविदास के जीवन और उनके गुणों का वर्णन किया गया है। रविदास चालीस का पाठ करने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है और ह्दय में भक्तिभाव पैदा करते है। रविदास चालीसा के अनुसार नियम सहित जो भी हरिजन इस चालीसा का पाठ करता है, उसकी रक्षा स्वयं भगवान विष्णु करते हैं। रविदास चालीसा का पाठ करने से…  
१) मन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।
२) सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
३) सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है।
|| दोहा ||
बन्दौ वीणा पाणि को , देहु आय मोहिं ज्ञान।
पाय बुद्धि रविदास को , करौं चरित्र बखान।
मातु की महिमा अमित है, लिखि न सकत है दास।
ता ते आयों शरण में, पुरवहुं जन की आस।
|| चौपाई ||
जै होवै रवि दास तुम्हारी , कृपा करहु हरि जन हितकारी ।
राहू भक्त तुम्हारे ताता , कर्मा नाम तुम्हारी माता ।
काशी ढिंग माडुर स्थाना , वर्ण अछुत करत गुजराना ।
द्वादश वर्ष उम्र जब आई, तुम्हरे मन हरि भक्ति समाई।
रामानन्द के शिष्य कहाये, पाय ज्ञान निज नाम बढ़ाये।
शास्त्र तर्क काशी में कीन्हों , ज्ञानिन को उपदेश है दीन्हों ।
गंग मातु के भक्त अपारा , कौड़ी दीन्ह उनहिं उपहारा ।
पंडित जन ताको लै जाई, गंग मातु को दीन्ह चढ़ाई।
हाथ पसारि लीन्ह चैगानी , भक्त की महिमा अमित बखानी ।
चकित भये पंडित काशी के, देखि चरित भव भयनाशी के।
रत्न जटित कंगन तब दीन्हां , रविदास अधिकारी कीन्हां ।
पंडित दीजौ भक्त को मेरे, आदि जन्म के जो हैं चेरे।
पहुंचे पंडित ढिग रविदासा , दै कंगन पुरइ अभिलाषा ।
तब रविदास कही यह बाता , दूसर कंगन लावहु ताता ।
पंडित ज तब कसम उठाई, दूसर दीन्ह न गंगा माई।
तब रविदास ने वचन उचारे, पंडित जन सब भये सुखारे।
जो सर्वदा रहै मन चंगा , तौ घर बसति मातु है गंगा ।
हाथ कठौती में तब डारा , दूसर कंगन एक निकारा ।
चित संकोचित पंडित कीन्हें, अपने अपने मारग ली न्हें।
तब से प्रचलित एक प्रसंगा , मन चंगा तो कठौती में गंगा ।
एक बार फिरि परयो झमेला , मिलि पंडितजन कीन्हो खेला ।
सालिगराम गंग उतरावै, सोई प्रबल भक्त कहलावै।
सब जन गये गंग के तीरा , मूरति तैरावन बिच नीरा ।
डूब गई सबकी मझधारा , सबके मन भयो दुख अपारा ।
पत्थर की मूर्ति रही उतराई, सुर नर मिलि जयकार मचाई।
रहयो नाम रविदास तुम्हारा , मच्यो नगर महं हाहाकारा ।
चीरि देह तुम दुग्ध बहायो , जन्म जनेउ आप दिखाओ।
देखि चकित भये सब नरनारी , विद्वानन सुधि बिसरी सारी ।
ज्ञान तर्क कबिरा संग कीन्हों , चकित उनहुं का तुक करि दीन्हों ।
गुरु गोरखहिं दीन्ह उपदेशा , उन मान्यो तकि संत विशेषा ।
सदना पीर तर्क बहु कीन्हां , तुम ताको उपदेश है दीन्हां ।
मन मह हारयो सदन कसाई, जो दिल्ली में खबरि सुनाई।
मुस्लिम धर्म की सुनि कुबड़ाई, लोधि सिकन्दर गयो गुस्साई।
अपने गृह तब तुमहिं बुलावा , मुस्लिम होन हेतु समुझावा ।
मानी नहिं तुम उसकी बानी , बंदी गृह काटी है रानी ।
कृष्ण दरश पाये रविदासा , सफल भई तुम्हरी सब आशा ।
ताले टूटि खुल्यो है कारा , नाम सिकन्दर के तुम मारा ।
काशी पुर तुम कहं पहुंचाई, दै प्रभुता अरुमान बड़ाई।
मीरा योगावति गुरु कीन्हों , जिनको क्षत्रिय वंश प्रवीनो ।
तिनको दै उपदेश अपारा , कीन्हों भव से तुम निस्तारा ।
।।दोहा।।
ऐसे ही रविदास ने, कीन्हें चरित अपार।
कोई कवि गावै कितै, तहूं न पावै पार।
नियम सहित हरिजन अगर, ध्यान धरै चालीसा ।
ताकी रक्षा करेंगे, जगतपति जगदीशा ।

........................................................................................................
मां पार्वती चालीसा (Maa Parvati Chalisa)

जय गिरी तनये दक्षजे शम्भू प्रिये गुणखानि,
गणपति जननी पार्वती, अम्बे, शक्ति, भवानि ।

कालाष्टमी व्रत 2024

हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव देव की विशेष पूजा की जाती है, जो साधकों को विशेष कार्य में सफलता और सिद्धि प्रदान करते हैं।

आजा माँ आजा माँ एक बार, मेरे घर आजा माँ (Aaja Maa Aaja Maa Ek Baar Mere Ghar Aaja Maa )

आजा माँ आजा माँ एक बार,
मेरे घर आजा माँ,

आउंगी आउंगी मै अगले, बरस फिर आउंगी (Aaungi Aaungi Main Agle Baras Phir Aaungi)

आउंगी आउंगी मैं अगले,
बरस फिर आउंगी,

यह भी जाने