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चैत्र नवरात्रि: मां चंद्रघंटा की कथा

चैत्र नवरात्रि: मां चंद्रघंटा की कथा

Maa Chandraghanta Katha: चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन जानें मां चंद्रघंटा की कथा, इससे आपको साहस और शक्ति प्राप्त होगी   


चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है, जिन्हें साहस, शांति और कल्याण का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां चंद्रघंटा की पूजा से भक्तों को शक्ति और सफलता मिलती है। साथ ही, जीवन में कभी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता है।

चंद्रघंटा जन्म कथा


वर्षों पहले महिषासुर के आतंक से सभी लोगों में भय बढ़ने लगा था, और देवी-देवता को महिषासुर से युद्ध में केवल असफलता मिल रही थी। इससे चिंतित होकर देवी-देवता ने तीन दिव्य शक्तियों अर्थात भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास जाने का निर्णय लिया। उनकी स्थिति के बारे में सुनकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश बहुत क्रोधित हो गए और उनके क्रोध से एक ऊर्जा निकली। उस ऊर्जा से वातावरण में शक्ति का संचार हुआ और फिर वह दिव्य देवी में परिवर्तित हो गयी। 

महिषासुर वध कथा


दुर्गा सप्तशती के चतुर्थ अध्याय में इंद्र और देवताओं ने जो देवी की स्तुति की है उसमें वर्णन मिलता है कि देवी में अद्भुत आकर्षण, शक्ति और आभा थी। उनके जन्म के बाद भगवान शिव ने उन्हें अपना त्रिशूल दिया जो शक्ति, संतुलन और दुष्टों पर विजय का प्रतीक है। फिर भगवान विष्णु ने उन्हें अपना चक्र दिया, जो संपूर्ण सृष्टि के संचालक होने का प्रतीक है। साथ ही,  इंद्र देव ने उन्हें घंटा दिया, जिससे उनके मस्तक पर अर्ध चंद्र का आकार बना और तबसे उन्हें मां चंद्रघंटा के नाम से पूजा जाता है। देवी चंद्रघंटा ने अपने तेजस्वी रूप का विस्तार किया और महिषासुर से युद्ध में उसका वध कर देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिला दी। इसके बाद सभी देवी देवताओं ने मिलकर मन चंद्रघंटा की स्थिति की और उनके गुण गाए।

मां चंद्रघंटा के कथा से मिलने वाला आशीर्वाद


देवी चंद्रघंटा साहस और आत्मविश्वास की प्रतीक मानी जाती है, मां की कृपा से भक्तों का साहस बढ़ता है और उन्हें एक सकारात्मक ऊर्जा महसूस होती है। साथ ही, कठिन परिस्थितियों में धैर्य और मानसिक शांति बनाए रखने का दुर्लभ आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। मां चंद्रघंटा की पूजा और उपासना से जीवन के सभी कार्यों में सफलता मिलती है और आपके सभी कार्य सिद्ध भी होते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों के अनुसार, देवी चंद्रघंटा की पूजा से भय, संकट और बाधाएं सभी नष्ट होती हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।  

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नागा साधु किसकी पूजा करते हैं?

नागा साधु भारत की प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे केवल सनातन धर्म के संरक्षक भी माने जाते हैं। इनका जीवन कठोर तपस्चर्या, शैव परंपराओं और भगवान शिव की भक्ति में बीतता है। नागा साधु धार्मिक अनुष्ठानों के विशेषज्ञ होते हैं। साथ ही हिंदू धर्म की रक्षा में भी ऐतिहासिक योगदान भी देते हैं।

अखाड़ों के नगर प्रवेश की प्रक्रिया क्या है

महाकुंभ को हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक अनुष्ठान कहा गया है। अखाड़े इस धार्मिक अनुष्ठान की रौनक है, जो इसकी शोभा बढ़ाते हैं। इनका नगर प्रवेश हमेशा से एक चर्चा का विषय होता है।

आचमन क्यों करते हैं?

पूजा-पाठ से लेकर विशेष अनुष्ठान एवं हवन इत्यादि सभी तरह की पूजा में आचमन आवश्यक है। आचमन का शाब्दिक अर्थ है ‘मंत्रोच्चारण के साथ जल को ग्रहण करते हुए शरीर, मन और हृदय को शुद्ध करना।’ शास्त्रों में आचमन की विभिन्न विधियों के बारे में बताया गया है। आचमन किए बगैर पूजा अधूरी मानी जाती है।

प्रयागराज के प्रमुख घाट

प्रयागराज को भारत की धार्मिक राजधानी कहा जाता है। यह नगर सदियों से हिंदुओं की आस्था का केंद्र हुआ है। यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का संगम होता है।

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