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चैत्र नवरात्रि सातवें दिन की पूजा विधि

चैत्र नवरात्रि सातवें दिन की पूजा विधि

Navratri 7th Day Puja Vidhi: चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की ऐसे करें पूजा, इससे मिलेगा माता का विशेष आशीर्वाद

चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है, जो अपने भक्तों को डर और संकट से मुक्ति दिलाती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कालरात्रि का अर्थ होता है, काल यानी मृत्यु और भय को भी अपने वश में करने वाला, जिन्हें हम मां कालरात्रि के नाम से जानते हैं। मां कालरात्रि की पूजा से भय खत्म होता है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

मां कालरात्रि की पूजा में रातरानी फूल का है विशेष महत्व 

मां कालरात्रि की पूजा में इन सभी सामग्रियों का विशेष रूप से उपयोग करें, इससे भय और कष्ट की समाप्ति होती है।

  • गंगाजल
  • रोली, अक्षत, लाल चंदन और सिंदूर 
  • अरहुल और गुलाब के फूल
  • गुड़ या गुड़ की बनी मिठाइयां
  • रातरानी की फूल, सुगंधित धूप, दीपक और कपूर

मां कालरात्रि की पूजा में करें गुड़ का दान

  • ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें और लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
  • मां कालरात्रि की फोटो या मूर्ति पर गंगाजल छिड़ककर अभिषेक करें।
  • मां को रोली लाल चंदन और सिंदूर का टीका लगाएं।
  • फिर अक्षत, अरहुल का फूल और लाल गुलाब को उनके चरणों में अर्पित करें।
  • मां कालरात्रि को गुड़ या गुड़ की बनी मिठाइयां, मालपुआ और खीर का भोग लगायें।
  • घी का दीपक जलाकर पूजा स्थल पर रखें और पूरे घर में धूप दिखाएं, जिससे घर का वातावरण शुद्ध होता है और मां प्रसन्न होती है।
  • मां कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए 108 बार इस मंत्र का विशेष रूप से जाप करें: “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नमः"
  • आखिर में माँ की आरती करें और गरीबों को गुड़ का दान करें, इससे आपको विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। 

मां कालरात्रि की पूजा से भक्त होते हैं तनाव मुक्त

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां कालरात्रि की पूजा से अनेक लाभ होता हैं। मां कालरात्रि अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। साथ ही उन्हें भय और बुरी शक्तियों से भी बचाती हैं। चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की विधिवत रूप से पूजा करें। इससे सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है, तथा तनाव से मुक्ति मिलती है और मानसिक स्थिरता बनी रहती है। 


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बिल्वाष्टकम् (Bilvashtakam)

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधं, त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥1॥

शिव चालीसा

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

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