क्या है विवाह संस्कार

मानव जीवन का 14वां संस्कार है विवाह, जानें इसे क्यों माना जाता है नयी शुरुआत 


सनातन हिंदू धर्म में, विवाह संस्कार को जीवन के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक माना जाता है। विवाह संस्कार के माध्यम से वर-वधू का संबंध पवित्र बंधन में बंधता है। 

इतना ही नहीं, यह वर वधु के साथ परिवारों को भी आपस में जोड़ता है। वर्तमान समय में विवाह के विभिन्न स्वरूप देखने को मिलते हैं। इसमें आडंबर और दिखावे को तरजीह दी जाती है। हालांकि, प्राचीन समय से विवाह एक पवित्र संस्कार के रूप में जाना जाता रहा है। तो आइए, इस आर्टिकल में विवाह संस्कार, इसके महत्व और पौराणिक मान्यता को विस्तार पूर्वक जानते हैं। 


क्या होता है विवाह संस्कार? 


विवाह संस्कार हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है। यह सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक जीवन को जोड़ने का कार्य करता है। यह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं होता।  बल्कि, दो परिवारों और संस्कृतियों का संगम भी होता है। यह संस्कार वर-वधू के जीवन को नया अर्थ और उद्देश्य प्रदान करता है। साथ ही उन्हें सामाजिक और आध्यात्मिक जिम्मेदारियों का पालन करने के लिए भी प्रेरित करता है।


जानिए विवाह संस्कार का महत्व


हिंदू धर्म में विवाह संस्कार केवल एक रस्म नहीं, बल्कि एक पूर्ण व्यवस्था है। यह संस्कार व्यक्ति को सामाजिक और धार्मिक जीवन के प्रति उसकी जिम्मेदारियों का एहसास कराता है। विवाह संस्कार के माध्यम से गृहस्थाश्रम की शुरुआत होती है। गृहस्थाश्रम मानव जीवन के चार आश्रमों में से दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण आश्रम है। इसके अलावा इससे पितृ ऋण से भी मुक्ति मिलती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, व्यक्ति तीन प्रकार के ऋणों का ऋणी होता है। जिसमें, देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण शामिल होते हैं। पितृ ऋण से मुक्ति के लिए विवाह को अनिवार्य माना जाता है। वहीं, यह धार्मिक और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। क्योंकि, विवाह संस्कार परिवारों और समुदायों को जोड़ने का भी कार्य करता है।


विवाह संस्कार की विधि 


विवाह संस्कार में कई रीतियों और परंपराओं का पालन किया जाता है। इन रीतियों में धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मंत्रोच्चारण, वर-वधू के बीच प्रतिज्ञाएं और अग्नि के समक्ष सात फेरे लेना शामिल होता है। हालांकि, अक्सर विवाह संस्कार की प्रक्रिया कुंडली मिलान से ही शुरू होती है। यह सुनिश्चित करता है कि वर-वधू का रिश्ता सफल और सुखमय हो। इसके बाद विवाह के लिए शुभ मुहूर्त का चयन किया जाता है। इसके बाद, शुभ मुहूर्त के समय वर-वधू एक-दूसरे को वरमाला पहनाते हैं। और अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेते हैं। इन फेरों के माध्यम से वे जीवनभर एक-दूसरे के साथ रहने की प्रतिज्ञा करते हैं। अंत में विवाह संस्कार की सबसे पवित्र रस्म निभाई जाती है। इसमें, वर वधू की मांग में सिंदूर भरता है और गले में मंगलसूत्र डालता है।


विवाह संस्कार की पौराणिक मान्यता


  • विवाह संस्कार के माध्यम से व्यक्ति की 21 पीढ़ियों को पाप से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में लिखा है कि “विवाह केवल भोग-विलास का साधन नहीं है। बल्कि, यह अंत:शुद्धि और भगवत प्रेम का माध्यम है।” 
  • पौराणिक ग्रंथों में विवाह संस्कार का धार्मिक महत्व बताया गया है। ऋग्वेद और अथर्ववेद में भी विवाह के काव्यात्मक वर्णन मिलते हैं।
  • हिंदू धर्म में विवाह को सात जन्मों का पवित्र बंधन माना गया है।
  • इतना ही नहीं, विवाह संस्कार व्यक्ति के अंदर शुद्धता और भगवान के प्रति प्रेम को विकसित करता है।
  • साथ ही विवाह के बाद वर-वधू मिलकर परिवार का निर्माण करते हैं। जो समाज की बुनियादी इकाई है। इस संस्कार से व्यक्ति को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भी बोध होता है।

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