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गणेश चतुर्थी मतलब देश-भर में भगवान गणपति की विधि विधान से पूजा-अर्चना और उपासना के दिनों की शुरुआत। उत्सव धर्मी हम सब मिलकर इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश को घर लाते है और उनकी पूजा-अर्चना करते हुए उनकी स्थापना करते हैं। शहर-शहर गांव-गांव में इस विशेष पर्व की धूम रहती है। लेकिन गणेश चतुर्थी के साथ एक विचित्र तथ्य यह भी जुड़ा हुआ है कि चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन करना निषेध है। कहा जाता है कि इस दिन चंद्र दर्शन से व्यक्ति पर झूठे आरोप या कलंक लगने की संभावना रहती है। इसलिए इस दिन को कलंक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। और ये भी कहा जाता है कि चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करना चाहिए। यदि किसी ने कलंक चतुर्थी को चन्द्रमा को देख लिया है तो दोष निवारण के लिए स्यमन्तक मणि की कथा सुनना चाहिए। भक्त वत्सल के इस लेख में हम आपको बताते हैं कि आखिर कलंक चतुर्थी की पौराणिक कथा क्या है?
दरअसल द्वापरयुग में जब श्री कृष्ण पृथ्वी पर रहते थे, तो द्वारका में एक सत्राजित नाम का राजा हुआ करता था। सत्राजित ने सूर्य देवता की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया था। उसकी तपस्या से सूर्य खुश होकर सूर्य देव ने उसे अत्यंत प्रकाशवान और प्रतिदिन आठ भार सुवर्ण मतलब सोना देने वाली एक 'स्यमन्तक' नामक मणि दी थी। वो द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण से मन ही मन बैर भाव रखता था और उसे हमेशा इस बात का भय रहता था कि भगवान उसकी मणि उससे छीन सकते हैं।
इस संदेह के चलते उसने सुरक्षा की दृष्टि से वो चमत्कारी 'स्यमन्तक' मणि अपने भाई प्रसेन को पहना दी। एक दिन प्रसेन वन में शिकार करने गया। वहां एक भयानक और शक्तिशाली सिंह का शिकार करने के प्रयास में वो सिंह द्वारा मार दिया गया। इसके बाद 'स्यमन्तक' मणि उस सिंह ने ले ली और बाद में जामवंत जी ने सिंह से उस मणि को छीन लिया।
इधर सत्राजित ने अपनी शंका के आधार पर अपने भाई की मौत और स्यमन्तक मणि की चोरी का कलंक भगवान श्रीकृष्ण पर लगाया। जब भगवान श्रीकृष्ण को इस बात का पता चला कि उन पर इस तरह का झूठा आरोप लगाकर उन्हें कलंकित किया जा रहा है तो उन्होंने मणि खोजकर सत्राजित को देने और खुद का निर्दोष साबित करने का प्रण कर लिया ।
श्री कृष्ण ने खोज की और पता लगाया कि मणि जामवंत जी के पास है, तो वह जामवंत जी की गुफा में चले गए। वहां दोनों के बीच 21 दिनों तक घमासान युद्ध हुआ जिसमें अंततः भगवान की जीत हुई। श्रीकृष्ण ने उनसे स्यमन्तक मणि प्राप्त कर ली और जामवंत जी की पुत्री जामवंती से विवाह भी किया। भगवान ने मणि लाकर सत्राजित को दे दी। इस पर वो भगवान के सामने बड़ा लज्जित हुआ और उसने मणि भगवान को ही भेंट कर करते हुए क्षमा याचना की। भगवान ने उसे माफ कर दिया और श्रीकृष्ण पर लगा कलंक दूर हो गया। तभी से यह भी मान्यता है कि यदि कलंक चतुर्थी को गलती से चन्द्रमा के दर्शन कर भी लिए हैं तो यह कथा सुनकर कलंक से मुक्ति मिलती है।
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