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भगवान गणेश की महिमा और भक्तों पर कृपा बरसाने की कई कथाएं हैं। ऐसी ही एक कथा मालिन की भी है। उसकी सासू मां उसे घर से निकाल देती है। फिर वो और उसका बेटे गणेश मंदिर में सेवा करने लगते हैं। कुछ समय बाद गणेश जी की कृपा से उनका जीवन सुखमय हो जाता है।
भक्त वत्सल की गणेश चतुर्थी स्पेशल सीरीज ‘गणेश महिमा’ में आज हम आपको गणपति बप्पा की भक्तों से प्रेम और उनकी महिमा की कहानियों में अगली कथा मालिन की सुनाने जा रहे हैं।
मालिन नाम की विधवा एक नगर में रहती थी। उसका एक चार साल का पुत्र भी था। उसकी सास बहुत ही निर्दयी महिला थी जो उसे हर तरह से प्रताड़ित करती रहती। वह उसे अपने बेटे की मौत का जिम्मेदार बताती है और घर से निकाल देती है। घर से निकाले जाने के बाद दोनों मां-बेटे रोते हुए नगर से दूर जंगल में जा पहुंचते हैं। वहां वो एक बड़े पेड़ के नीचे रात गुजारने के लिए रुक जाते हैं। दोनों ही भूखे-प्यासे थे लेकिन जैसे-तैसे रात गुजाते हैं।
अगली सुबह मां ने देखा कि पेड़ के पास एक गणेश जी का मंदिर है। जहां सुबह बहुत से लोग गणेश जी के दर्शन करने आए हैं। लोग दर्शन करके भगवान गणेश जी को प्रसाद चढ़ा रहे थे। यह रोजाना का क्रम था। मंदिर के प्रसाद से दोनों मां-बेटे का पेट भरने लगा। प्रसाद खाकर मां-बेटे का गुजारा अच्छे से हो रहा था। ऐसे में दोनों वहीं मंदिर की सेवा में लग गए। दोनों दिनभर गणेश जी की पूजा-पाठ करते और प्रसाद पाकर खुश हो जाते।
एक दिन उन्होंने जंगल से फूल लाकर बेचने के बारे में सोचा। बेटा रोज जंगल से फूल लाता और मां उसकी माला बनाकर बेचती। फिर धीरे-धीरे उन्होंने मंदिर के पास पूजा सामग्री और प्रसाद की दुकान लगा ली। अब उनकी अच्छी-खासी कमाई होने लगी। दुकान चल पड़ी तो उन्होंने एक मकान भी बना लिया। एक दिन मंदिर में नगर के राजा की लड़की पूजा करने आई और मालिन के बेटे को देखकर उस पर मोहित हो गई। वो लड़के से विवाह करना चाहती थी। यह बात उसने महल पहुंचकर अपनी भाभी से कही।
भाभी ने उसे समझाया कि एक मालिन का बेटा और एक राजकुमारी का क्या मेल। यह ठीक नहीं है। लेकिन राजकुमारी युवक से प्रेम करती थी और उसी से शादी करने पर अड़ी रही। उसने प्रतिज्ञा लें ली कि विवाह करूंगी तो उसी से करूंगी। तब उसकी भाभी ने सारी बात राजा को बता दी। राजा विवाह के लिए तैयार हो गए। बड़े धूमधाम से दोनों का विवाह हुआ। विवाह के बाद मालिन ने बेटे-बहू सहित गणेश जी के मंदिर में पूजा-पाठ की। फिर तो यह बात जंगल की आग की तरह आसपास के नगरों में फैल गई।
सभी को लगने लगा कि जंगल में विराजमान गणेश जी की पूजा करने से सब दुख-कष्ट दूर हो जाते हैं। यह बात सुनकर मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या और बढ़ गई जिससे मालिन और उसका परिवार और धनवान हो गया। उधर उसकी सास की भूखों मरने की नौबत आ गई। उसने जब गणेश मंदिर की महिमा सुनी तो एक दिन वह भी रोती-रोती उसी गणेश मंदिर जा पहुंची।
वहां मालिन के बेटे ने उसे नहीं पहचाना। लेकिन दया करते हुए उसे काम पर रख लिया। लेकिन जब मालिन ने उसे देखा तो तुरंत पहचान लिया। वो सास से बोली- माजी आप यहां कैसे। सास ने पोते की तरफ इशारा करके कहा- यह मेरे सेठ है और इन्होंने मुझे नौकरी पर रखा है। तभी बहू बोली- यह आपका वही चार साल का पोता है। सारे गिले-शिकवे भुलाकर मालिन ने सास को अपने साथ रख लिया और गणेश जी की कृपा से पूरा परिवार प्रसन्नता से वहीं रहने लगा। कहने को यह एक साधारण कहानी प्रतीत होती है लेकिन यह गणेश जी की महिमा और भक्त वत्सलता का एक मार्मिक उदाहरण है। जो हमें सदैव भक्ति मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
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