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जन्म के बाद से ही श्रीकृष्ण को मारने मथुरा के राजा कंस ने अपने एक से एक बलवान और मायावी राक्षसों को भेजा। जब श्रीकृष्ण सिर्फ छह दिन के थे उस समय उन्हें मारने के लिए कंस ने राक्षसी पूतना को भेजा। उसने ब्रजनारी का रूप धारण किया और अपने स्तनों पर विष लगाकर नन्हे बालक कान्हा को स्तनपान यानी दूध पिलाने आई।
लेकिन पूतना के स्तनों से जब दूध नहीं आया तो नवजात शिशु बने भगवान ने दूध की जगह उसके प्राण पीने शुरू कर दिए। घबरा कर पूतना कान्हा को लेकर आकाश में उड़ गई। लेकिन कान्हा ने प्राण निकलने तक उसे नहीं छोड़ा। जैसे ही उसकी जान निकली वो जमीन पर आ गिरी और कन्हैया उसके विशाल शरीर पर खेलते नजर आए।
भक्त वत्सल की जन्माष्टमी स्पेशल सीरीज ‘श्रीकृष्ण लीला’ के ग्यारहवें एपिसोड में आज हम आपको राक्षसी पूतना की कहानी बताएंगे…
पूतना राक्षसी थी लेकिन दूध पिलाने के कारण भगवान ने उसे मां का दर्जा दिया। ब्रज में आज भी एक रक्षिका के तौर पर पूतना की पूजा होती है। मान्यता है कि छोटे बच्चों की ऊपरी हवा, तंत्र-मंत्र, बुरे सपने और रात में चौंककर उठने की बीमारियों से पूतना बचाती है। गोकुल में जहां पूतना आकाश से गिरी थी वहां वध मंदिर में लोग अपने नवजात बच्चों को माथा टेकने ले जाते हैं।
भगवान विष्णु के वामन अवतार में राजा बलि की पुत्री रत्नमाला ही इस जन्म में पूतना थी। भगवान वामन की सुंदरता को देखकर रत्नमाला ने मन ही मन कामना की थी कि वो ऐसे ही एक पुत्र को स्तनपान करवाना चाहती थी। भगवान ने उसकी मन की इच्छा को जानते हुए उसकी यह मनोकामना पूरा करने का वचन दिया। लेकिन बलि के साथ जो भगवान ने किया उससे रत्नमाला क्रोधित हो उठी। उसने मन ही मन कहा कि अगर ऐसा मेरा पुत्र होता तो मैं इसे विष दे देती। भगवान ने उसकी इस मनोकामना को भी स्वीकार कर लिया।
इसी कारण रत्नमाला अगले जन्म में पूतना बनी जो कंस की सबसे विश्वासपात्र थी और उसे अपना भाई मानती थी। कंस के दुश्मन को खत्म करने के लिए भेष बदलने में माहिर पूतना भगवान कृष्ण को मारने आई। इस दौरान पूतना ने जहरीले स्तनों से भगवान को दूध पिलाया और उसकी दोनों इच्छाएं श्रीकृष्ण ने पूरी कर दी।
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