पिशाच विवाह भारतीय संस्कृति में वर्णित विवाह के 8 प्रकारों में से एक है। इसे मनुस्मृति में सबसे निम्न और तिरस्कृत विवाह माना गया है। यह विवाह उन परिस्थितियों में होता है जब लड़की की सहमति के बिना या धोखे से उसके साथ बलपूर्वक शारीरिक संबंध बनाए जाते हैं और बाद में उससे विवाह किया जाता है। हालांकि, यह विवाह सामाजिक दृष्टि से निंदनीय माना जाता है। लेकिन, इसे उन लड़कियों के लिए एक उपाय के रूप में देखा गया जिनका कौमार्य भंग हो चुका होता है। आइए, इस आलेख में विस्तार से जानते हैं पिशाच विवाह के बारे में।
मनुस्मृति के अनुसार जब कोई व्यक्ति सोई हुई, बेहोश, उन्मत्त, पागल, घबराई हुई, मदिरा सेवन की हुई या असहाय अवस्था में किसी कन्या के साथ बलपूर्वक शारीरिक संबंध बनाता है और बाद में उससे विवाह करता है तो इसे पिशाच विवाह कहा जाता है। यह विवाह पूर्णत: लड़की की सहमति के बिना होता है। इसे सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से घृणित और अमान्य माना गया है।
यद्यपि पिशाच विवाह को तिरस्कृत माना गया है, इसका उद्देश्य कुछ हद तक व्यावहारिक और सामाजिक था। ख़ासकर, उन लड़कियों जिनके साथ बलात्कार या शोषण हुआ उन्हें सामाजिक बहिष्कार से बचाने के लिए इस विवाह को एक उपाय के रूप में मान्यता दी गई। इसके माध्यम से लड़की को सामाजिक स्वीकृति और सम्मान देने का प्रयास किया गया, ताकि वह समाज में सामान्य जीवन जी सके।
पिशाच विवाह को अन्य विवाहों की तुलना में सबसे निम्न स्थान पर रखा गया है। यहां तक कि इसे इसे राक्षस विवाह से भी अलग माना गया है। क्योंकि, राक्षस विवाह में कन्या का अपहरण कर उससे विवाह किया जाता है, लेकिन उसमें बलपूर्वक शारीरिक संबंध नहीं बनाए जाते। जबकि, पिशाच विवाह में बलपूर्वक या धोखे से शारीरिक संबंध बनाया जाता है जो इसे और अधिक घृणित बनाता है।
महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश में पिशाच विवाह को महाभ्रष्ट विवाह कहा गया है। इसे धर्म, नैतिकता और समाज की दृष्टि से अत्यंत ही निंदनीय बताया गया है। आधुनिक समाज में पिशाच विवाह जैसी प्रथाओं को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया गया है। भारतीय कानून में बलात्कार और किसी भी प्रकार के बलपूर्वक संबंध को अपराध माना गया है। ऐसे मामलों में विवाह का कोई औचित्य नहीं है। वर्तमान समाज में इस तरह के विवाह को मान्यता देने के बजाय, पीड़िता को न्याय दिलाने और उसकी गरिमा को बनाए रखने पर जोर दिया जाता है। प्राचीन पर महाभ्रष्ट पिशाच विवाह जैसी कुप्रथाओं को जड़ से समाप्त करने के लिए शिक्षा, जागरूकता दंड और सशक्तिकरण पर लगातार बल दिया जा रहा है।
सनातन धर्म में प्रत्येक दिन का अपना एक खास और अलग महत्व होता है। ऐसा कहा जाता है कि सप्ताह का हर एक दिन किसी न किसी देवी या देवता को समर्पित होता है।
हिंदू धर्म में सप्ताह के हर दिन को किसी न किसी देवी-देवता के नाम समर्पित किया गया है। आपको बता दें कि गुरुवार यानी बृहस्पतिवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है।
हिंदू धर्म में व्रत रखने की परंपरा सदियों से चली आ रही है और सप्ताह के प्रत्येक दिन विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा का अपना खास महत्व है।
अक्सर आपने लोगों को ऐसा कहते सुना होगा कि अगर शनिदेव अपने भक्त से प्रसन्न हो जाए तो वे उसके सारे कष्टों को हर लेते हैं। साथ ही उनके सभी बिगड़े हुए काम बनने लग जाते हैं।