नए साल पर इस विधि से करें गणेश जी की पूजा

साल के पहले दिन इस विधि से करें गणेश जी की पूजा, पूरे वर्ष बरसेगी कृपा


 नए साल का पहला दिन बुधवार को पड़ रहा है, जो भगवान गणेश को समर्पित है। नए साल के दिन गणेश जी की पूजा करने से आपके सभी उद्देश्य पूरे हो सकते हैं और एक सुखमय, समृद्ध और खुशहाल वर्ष की शुरुआत हो सकती है। 1 जनवरी 2025 को आरोग्य व्रत का शुभ अवसर बन रहा है। 


इस दिन विधि-विधान से आरोग्य व्रत करने से पूरे वर्ष स्वास्थ्य बना रहेगा। बता दें कि वर्ष 2025 की शुरुआत 1 जनवरी, बुधवार को पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से हो रही है। वैदिक पंचांग के अनुसार, शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके भगवान गणेश के मंत्रों, स्तोत्रों का पाठ और आरोग्य व्रत का संकल्प लेने से शारीरिक रोग, दुख और कष्ट दूर होंगे। 



गणेश जी की पूजा विधि 


बुधवार को सुबह जल्दी उठें स्नान करके साफ कपड़े पहनें। बुधवार के दिन हरे रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना गया है। ऐसा करने से बुध मजबूत होता है और उनका मान-सम्मान और धन संकट दूर होता है। अपने घर के उत्तर भाग या पूर्वोत्तर भाग में भी गणेश जी की प्रतिमा या मूर्ति रख सकते हैं और दक्षिण पूर्व में दीपक जलाएं। गणपति बप्पा की मूर्ति के बगल में ऋद्धि-सिद्धि रखें, इनकी जगह आप उनके स्वरूप में सुपारी भी रख सकते हैं। 


इसके बाद शुद्ध आसन पर बैठकर सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि गणेश भगवान को समर्पित करे। इसके साथ ही पूजा में भगवान श्री गणेश को दूर्वा की 5, 11 या फिर 21 गांठे चढ़ायें। दूर्वा हमेशा उनके सिर पर रखें, कभी चरणों में अर्पित ना करें। दूर्वा को चढ़ाते समय इस मंत्र का जप करे - इदं दुर्वादलं ऊं गं गणपतये नमः” ऐसा करने से गणेश जी जल्दी प्रसन्न होते हैं। 



इन चीजों का लगाएं भोग


ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश को गणेश जी लड्डू प्रिय है। ऐसे में उन्हें मोतीचूर के लड्डू का भोग लगाएं। इसके अलावा फल, खीर और मिठाई का भी भोग लगा सकते हैं। मान्यता है कि इन चीजों का भोग लगाने से प्रभु प्रसन्न होते हैं।


बुधवार के दिन गणेश पूजा के दौरान श्री गणेश चालीसा का पाठ और आरती जरूर करें। 



गणेश चालीसा


॥ दोहा ॥


जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल ।

विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ॥


॥ चौपाई ॥


जय जय जय गणपति गणराजू ।

मंगल भरण करण शुभः काजू ॥


जै गजबदन सदन सुखदाता ।

विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥


वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।

तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥


राजत मणि मुक्तन उर माला ।

स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥


पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।

मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥


सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।

चरण पादुका मुनि मन राजित ॥


धनि शिव सुवन षडानन भ्राता ।

गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥


ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे ।

मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥


कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।

अति शुची पावन मंगलकारी ॥


एक समय गिरिराज कुमारी ।

पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥ 


भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।

तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥


अतिथि जानी के गौरी सुखारी ।

बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥


अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा ।

मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥


मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला ।

बिना गर्भ धारण यहि काला ॥


गणनायक गुण ज्ञान निधाना ।

पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥


अस कही अन्तर्धान रूप हवै ।

पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥


बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना ।

लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥


सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।

नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥


शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं ।

सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥


लखि अति आनन्द मंगल साजा ।

देखन भी आये शनि राजा ॥ 


निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।

बालक, देखन चाहत नाहीं ॥


गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।

उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥


कहत लगे शनि, मन सकुचाई ।

का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥


नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।

शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥


पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा ।

बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥


गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी ।

सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥


हाहाकार मच्यौ कैलाशा ।

शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥


तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।

काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥


बालक के धड़ ऊपर धारयो ।

प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥


नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।

प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ 


बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।

पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥


चले षडानन, भरमि भुलाई ।

रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥


चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।

तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥


धनि गणेश कही शिव हिये हरषे ।

नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥


तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई ।

शेष सहसमुख सके न गाई ॥


मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।

करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥


भजत रामसुन्दर प्रभुदासा ।

जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥


अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।

अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ 


॥ दोहा ॥


श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान ।


नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ॥


सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश ।


पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश ॥



गणेश जी की आरती 


जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥


एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।

माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥


जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥


पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।

लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा॥


जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥


अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।

बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥


जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥


सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥


जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥


दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।

कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥


जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा


डिसक्लेमर

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