Kharmas 2024: खरमास में भूलकर भी ना करें ये काम, इस महीने क्या करें क्या ना करें
इस वर्ष सोमवार, 16 दिसंबर 2024 से खरमास का आरंभ हो चुका है। बता दें कि जब भी सूर्यदेव देव गुरु बृहस्पति की राशि राशि धनु या मीन में गोचर करते हैं तो खरमास का आरंभ होता है। खरमास का महीना पूरे 30 दिन का होता है। सूर्य के मकर राशि में जाने पर यानी मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025 को खरमास का महीना समाप्त होगा। खरमास में सूर्यदेव की चाल धीमी हो जाती है। तो आइए, इस आलेख में विस्तार से जानते हैं कि इस दौरान क्या काम करने चाहिए और किन कार्यों से बचना चाहिए।
खरमास में क्या ना करें?
खरमास में भगवान सूर्यदेव की गति धीमी हो जाती है। भगवान सूर्य अपना तेज भी कम कर लेते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, किसी भी मांगलिक कार्य को करने के लिए सूर्य और गुरु दोनों ग्रहों का मजबूत होना बेहद जरूरी है।
- खरमास में कभी भी विवाह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि इस दौरान विवाह करने से व्यक्ति को वैवाहिक सुख की प्राप्ति नहीं हो पाती है। साथ ही इस दौरान किए गए मांगलिक कार्य भी सिद्ध नहीं हो पाते हैं।
- इसी के साथ खरमास के दौरान नए घर में गृह प्रवेश भी नहीं करना चाहिए। यदि ऐसा किया जाता है तो घर परिवार में अशांति बनी रहती है।
- इसके अलावा व्यक्ति को खरमास में जनेऊ, मुंडन इत्यादि मांगलिक कार्य भी नहीं करने चाहिए। इसी के साथ इस महीने में किसी भी नए कार्य की शुरुआत भी नहीं करनी चाहिए।
खरमास में क्या करें?
- खरमास में जितना हो सके साधक भगवान सूर्यदेव की उपासना करें। इससे सूर्यदेव की कृपा प्राप्त होती है।
- इस महीने में जितना हो सके धर्म कर्म और दान पुण्य के कार्य करने चाहिए। इस महीने में किसी तीर्थ स्थान की यात्रा करना बेहद शुभ माना जाता है।
- इस महीने भागवत, रामायण, सत्यनारायण कथा, गीता का पाठ करना भी बेहद शुभ माना जाता है।
क्या है खरमास नाम के पीछे की कथा?
दरअसल, खरमास को “खर मास” कहने के पीछे एक पौराणिक कथा है। खर का अर्थ गंधर्व यानी गधा होता है। वहीं, मास का अर्थ महीना होता है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, सूर्य अपने सात घोड़ों यानी रश्मियों के सहारे इस सृष्टि की यात्रा करते हैं। परिक्रमा के दौरान सूर्य को एक क्षण भी रुकने और धीमा होने का अधिकार नहीं है। लेकिन अनवरत यात्रा के कारण सूर्य के सातों घोडे़ हेमंत ऋतु में थककर एक तालाब के निकट रुक जाते हैं। ताकि, पानी पी सकें। सूर्य को अपना दायित्व बोध याद आ जाता है कि वह रुक नहीं सकते, चाहे घोड़ा थककर भले ही रुक जाए। यात्रा को अनवरत जारी रखने के लिए तथा सृष्टि पर संकट नहीं आए। इस कारण, सूर्यदेव तालाब के समीप खड़े दो गधों को रथ में जोतकर यात्रा को जारी रखते हैं। गधे अपनी मंद गति से पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहते हैं। जिस कारण सूर्य का तेज धरती पर बहुत ही कमजोर हो जाता है। हालांकि, मकर संक्रांति के दिन पुन: सूर्यदेव अपने घोड़ों को रथ में जोतते हैं। तब उनकी यात्रा पुन: रफ्तार पकड़ लेती है। इसके बाद धरती पर सूर्य का तेजोमय प्रकाश बढ़ने लगता है।