श्रीकृष्ण लीला: कान्हा के मुख में मां यशोदा को दिखा ब्रह्माण्ड, चक्कर खाकर जमीन पर गिरी मैया

भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं की कहानियां इतनी सुंदर, अद्भुत और रोचक है कि इन्हें सबसे ज्यादा आकर्षक कथाएं कहना गलत नहीं होगा। वो कभी मटकी तोड़कर माखन चुराने थे तो कभी स्नान करती गोपियों से वस्त्र चुराकर पेड़ पर चढ़ जाते थे। बांके बिहारी को इन्हीं लीलाओं के कारण भी अनेकों नाम मिले। 


भक्त वत्सल की जन्माष्टमी स्पेशल सीरीज ‘श्रीकृष्ण लीला’ के चौदहवें एपिसोड में आज हम आपको श्रीकृष्ण की एक अद्भुत लीला के बारे में बताने जा रहे हैं, जिससे मैया यशोदा भी आश्चर्यचकित हो गई। 


हुआ यूं था कि एक बार कन्हैया यमुना किनारे बैठकर कुरेद-कुरेद कर मिट्टी खा रहे थे। इस समय मैया यशोदा कुछ काम में व्यस्त थी। लेकिन जैसे ही वो कन्हैया को खोजते-खोजते नदी पर आईं तो देखती हैं कि कान्हा का पूरा मुंह मिट्टी से भरा है। यशोदा मैया तुरंत कान्हा के पास पहुंची और कान्हा को डांटते हुए बोलीं- लल्ला तूने माटी खाई? 


मैया यशोदा ने कान्हा के मुख में देखा ब्रह्मांड


मुख माटी से भरा होने के बाद भी कान्हा ने गर्दन हिलाकर मैया को नहीं का जवाब दिया। तब मैया यशोदा ने कहा कि आप झूठ बोल रहे हैं। कहती हैं खोलो अपना मुंह मैं देखती हूं कि तूने सच में माटी खाई की नहीं। तब कान्हा ने जैसे ही अपना मुख खोला, मैया यशोदा को कन्हैया के मुंह में सारे ब्रह्मांड के दर्शन हो गए। 


डर के मारे जमीन पर गिर पड़ी मां यशोदा


मैया ने देखा कि कान्हा के छोटे से मुंह में तल, तलातल, रसातल, भूलोक, भुवर्लोक, आकाश, पाताल, अंतरिक्ष, दिशाएं, द्वीप, पर्वत, समुद्र समेत पूरे ब्रह्मांड के साथ ही खुद मैया और नंद बाबा भी मौजूद हैं। यह देखकर यशोदा मां डर गईं और उन्हें चक्कर आ गए। वो जमीन पर गिर पड़ी। लेकिन कन्हैया ने अपनी योगमाया से मैया की मूर्छा दूर कर दी और वो सब कुछ भुलाकर फिर कान्हा को माटी नहीं खाने की नसीहत देते हुए डांटने लगीं। 


श्रीकृष्ण को लगता है माटी का भोग


मथुरा जनपद के महावन क्षेत्र में यमुना नदी के पास स्थित श्रीकृष्ण मंदिर में भगवान को माटी का भोग लगता है। इसी घाट पर भगवान ने मैया यशोदा को मुख में ब्रह्मांड दिखाया था। इस वजह से इसे ‘ब्रह्मांड घाट’ कहा जाता है। यहां स्थित मंदिर में भगवान ‘ब्रह्मांड में हरी’ के नाम से पूजे जाते हैं। यहां श्रीकृष्ण की बाल लीला के कारण उन्हें माखन-मिश्री के अलावा माटी का भोग लगाने का प्रचलन है। इस प्रसाद को तैयार करने के लिए जो पेड़े बनाए जाते हैं वो यमुना की मिट्टी से बनते हैं।


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