नवीनतम लेख
कन्हैया की बाल लीलाओं का ब्रजवासियों ने जितना आनंद लिया उतना शायद कोई कभी न ले सकेगा। हालांकि ये लीला माता यशोदा के लिए हमेशा मुसीबतों का सबब रही।
भक्त वत्सल की जन्माष्टमी स्पेशल सीरीज ‘श्रीकृष्ण लीला’ के पंद्रहवें एपिसोड में आज हम आपको कन्हैया की एक शरारती कहानी के बारे में बताएंगे, जिसकी वजह से मैया ने उन्हें बांध दिया था….
एक दिन माता यशोदा दही मथ रही थीं। तभी भगवान कृष्ण को भूख लगी और वो दूध पीने के लिए रोने लगे। तब माता यशोदा ने कृष्ण को अपनी गोद में सुलाया और प्रेम से भगवान को दूध पिलाने लगी। तभी मैया को चूल्हे पर रखा दूध का बर्तन याद आया। मैया ने तुरंत कान्हा को गोद से उतार दिया और दूध को देखने के लिए दौड़ गई। इस पर बाल गोपाल को गुस्सा आ गया और मैया के आने से पहले उन्होंने क्रोधित होकर दही के मटकों को पत्थर से फोड़ दिया। कान्हा इसके बाद एक कमरे में छुपकर ताजा मक्खन खाने लगे। जब मैया यशोदा वापस आई तो कृष्ण गायब थे और आंगन में चारों ओर दही फैला पड़ा था।
मैया समझ गई कि यह सब कान्हा का किया धरा है। माता यशोदा ने कान्हा को ढूंढा और उन्हें पकड़ लिया। लेकिन भगवान मैया के हाथों से छूटकर उन्हें पूरे घर में दौड़ाने लगे। जब माता यशोदा ने कृष्ण को पकड़ा और कान मरोड़ा तो डर के मारे कृष्ण ने गलती कुबूल ली। गुस्से में माता यशोदा उन्हें रस्सी से ओखली से बांधने लगी। जब माता यशोदा भगवान को बांधने का प्रयास कर रही थी तो उन्होंने देखा कि रस्सी छोटी है। वो बड़ी रस्सी लाई वो भी छोटी पड़ गई।
ऐसा कई बार हुआ। हर बार मैया की रस्सी दो अंगुल छोटी रह जाती थी। ये सब कान्हा की माया थी। कान्हा को बांधने की कोशिश में माता यशोदा पसीने से लथपथ हो गई। यह देखकर भगवान को मैया पर दया आ गई और वो खुद ही बंध गए। कन्हैया को बंधे-बंधे पूरा दिन हो गया था। मैया अपने कामों में व्यस्त थीं।
तब भगवान कृष्ण ने आंगन के बाहर खड़े यमला-अर्जुन नामक जुड़वां वृक्षों की तरफ आगे बढ़ना शुरू किया। ये पेड़ पूर्व जन्म में कुबेर के पुत्र थे। इनका नाम नलकूबर और मणिग्रीव था। अपने अहंकार और झूठी प्रतिष्ठा के कारण उनको नारद मुनि ने वृक्ष बन जाने का श्राप दिया था और भगवान के हाथों मुक्ति होने की बात कही थी। आज भगवान ओखली सहित उन दोनों के बीच से निकलने लगे तो ओखली उनमें अटक गई। भगवान श्रीकृष्ण ने एक ही झटके में दोनों को जमीन पर ला पटका और ओखली भी तोड़ दी। इस तरह उन्हें मुक्ति मिल गई।
इधर पेड़ों के गिरने की आवाज सुनकर यशोदा मैया दौड़ी आई और बाहर का नजारा देखकर घबरा गई। तभी उन पेड़ों के बीच मुस्कुराते हुए कन्हैया मैया को दिखाई दिए। मैया ने दौड़ लगाई और कान्हा को उठा कर गले लगा लिया।
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।