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देवाधिदेव महादेव भगवान शंकर के पुत्र और देवों में प्रथम वंदनीय भगवान गणेश की महिमा अपरंपार है। उनकी महिमा का बखान करने में बड़े-बड़े ऋषि मुनियों ने स्वयं को असमर्थ पाया है। ऐसे में साधारण मानव के लिए उनको समझना और उनकी महिमा गाना बहुत ही मुश्किल है। फिर भी हमारे ऋषि मुनि और तपस्वियों ने हमारे जीवन को सरल करने और गणेश जी की कृपा हम पर बनी रहे, इसके लिए विभिन्न ग्रंथों की रचना की। इन ग्रंथों में भगवान गणेश जी की महिमा बड़े विस्तार से लिखी गई है।
भक्त वत्सल की गणेश चतुर्थी स्पेशल सीरीज ‘गणेश महिमा’ में आज हम आपको गणेश पुराण में वर्णित विघ्नहर्ता गणेश जी के 32 मंगलकारी रूपों के बारे में बताने जा रहे हैं। जिनके दर्शन और सुमिरन से सब मंगल ही मंगल होता है।
1. श्री बाल गणपति: यह गणेश का बाल रूप है जो धरती के संसाधनों और भूमि की उर्वरता का प्रतीक है। इस स्वरूप में भगवान के चारों हाथों में आम, केला, गन्ना और कटहल मौजूद हैं।
2. तरुण गणपति: गणेश जी का किशोर रूप लाल रंग से रंगा है और इसमें भगवान की 8 भुजाएं हैं। हाथों में फल, मोदक और अस्त्र-शस्त्र भी हैं। यह आंतरिक प्रसन्नता, युवावस्था की ऊर्जा का प्रतीक है।
3. भक्त गणपति: श्वेतवर्ण वाले इस रूप में गणेश जी ने चार हाथों में फूल और फल लिए हैं।
4. वीर गणपति: इसमें भगवान योद्धा रूप में है। उनके 16 हाथों में गदा, चक्र, तलवार, अंकुश सहित और भी कई अस्त्र हैं।
5. शक्ति गणपति: चार हाथ वाला यह रूप बड़ा ही सुन्दर है। इसमें एक हाथ से भक्तों को आशीर्वाद देते गणेश जी अन्य हाथों में अस्त्र-शस्त्र लिए हैं।
6. द्विज गणपति: ज्ञान और संपत्ति का प्रतीक यह रूप चार हाथों वाला हैं। इनमें कमंडल, रुद्राक्ष, छड़ी और ताड़पत्र हैं।
7. सिद्धि गणपति: इस रूप में गणेश जी के चार हाथ हैं। बुद्धि और सफलता के प्रतीक इस रूप में वे आराम की मुद्रा में मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धिविनायक मंदिर में विराजमान हैं।
8. उच्छिष्ट गणपति: नीलवर्ण, धन धान्य, मोक्ष और ऐश्वर्य देने वाला यह रूप दिव्य है। इसमें एक हाथ में वे वाद्य यंत्र लिए हैं।
9. विघ्न गणपति: स्वर्ण रंग और आठ हाथों वाला यह रूप सभी बाधाओं को दूर करता है। कई तरह के आभूषणों से सुसज्जित इस रूप में उनके हाथों में शंख और चक्र हैं।
10. क्षिप्र गणपति: इस रूप में गणेश जी रक्तवर्ण और चार हाथों वाले हैं। चार हाथों में से एक में कल्पवृक्ष की शाखा है। अपनी सूंड में वे एक रत्नों से भरा हुआ कलश लिए हैं।
11. हेरम्ब गणपति: इसमें भगवान के पांच सिर हैं। शेर पर सवार दस हाथों में फरसा, फंदा, मनका, माला, फल, छड़ी और मोदक लिए हुए गणेश जी का यह रूप दुर्बलों की रक्षा करने वाला है।
12. लक्ष्मी गणपति: इस रूप में गणेश जी के साथ बुद्धि और सिद्धि भी विराजमान हैं। उनके आठ हाथों में से एक हाथ अभय मुद्रा में है और एक हाथ पर तोता बैठा है।
13. महागणपति: भगवान शिव की तरह तीन नेत्र वाले इस रूप में गणेश जी रक्तवर्ण हैं और उनके दस हाथ हैं।
14. विजय गणपति: मूषक पर सवार, अतिविशाल इस रूप में गणेश जी महाराष्ट्र में पुणे के अष्टविनायक मंदिर में विराजमान हैं।
15. नृत्त गणपति: इस रूप में कल्पवृक्ष के नीचे नृत्य करते प्रसन्न मुद्रा वाले गणेश चार हाथों वाले हैं।
16. उर्ध्व गणपति: तांत्रिक मुद्रा में इस रूप भगवान के आठ हाथ हैं। एक हाथ में टूटा हुआ दांत, बाकी हाथों में कमल पुष्प समेत प्राकृतिक सम्पदाएं हैं।
17. एकाक्षर गणपति: तीन नेत्र और मस्तक पर भगवान शिव के समान चंद्रमा वाले इस रूप में गणपति कनार्टक के हम्पी में विराजित है।
18. वर गणपति: वरदान देने के लिए प्रसिद्ध इस रूप में गणेश जी अपनी सूंड में रत्न कुंभ लिए हुए हैं। कर्नाटक के बेलगाम में रेणुका येलम्मा मंदिर में आप भगवान के इस रूप के दर्शन कर सकते हैं।
19. त्र्यक्षर गणपति: भगवान गणेश का ओम रूप ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समावेश का प्रतीक है। भगवान इस रूप में कर्नाटक के नरसीपुरा या यूं कहें कि तिरुमकूडलु मंदिर में विराजमान हैं।
20. क्षिप्रप्रसाद गणपति: इच्छाओं को पूरा करने और गलतियों की तुरंत सजा देने वाले इस रूप में गजानन पवित्र घास से बने सिंहासन पर बैठे हैं। जो हम तमिलनाडु के कराईकुडी और मैसूर में देख सकते हैं।
21. हरिद्रा गणपति: हल्दी से बने राजसिंहासन पर बैठे गणेश का यह रूप इच्छाएं पूरी करने वाला है। कर्नाटक में श्रृंगेरी में ऋष्यशृंग मंदिर में गणेश जी का यह रूप विराजित है।
22. एकदंत गणपति: इस रूप में गणेश जी का पेट अन्य रूपों के मुकाबले और भी ज्यादा बड़ा है। जो अपने भीतर ब्रह्मांड समाए हुए होने का प्रतीक है। गणेश जी का यह रूप देशभर में सबसे अधिक पूजा जाता है।
23. सृष्टि गणपति: प्रकृति की शक्तियों का प्रतीक यह रूप मूषक सवारी के साथ है। तमिलनाडु के कुंभकोणम में अरुलमिगु स्वामीनाथन मंदिर में गणेश जी इसी स्वरूप में हैं।
24. उद्दंड गणपति: न्याय की स्थापना के लिए यह गणेश जी का बारह हाथों वाला उग्र रूप है।
25. ऋणमोचन गणपति: अपराधबोध और कर्ज से मुक्ति देने वाला यह रूप मोक्ष भी देता है। श्वेतवर्ण, भुजाओं वाले गणेश जी इस रूप में तिरुवनंतपुरम में विराजमान है।
26. ढुण्ढि गणपति: लाल रंग, हाथ में रुद्राक्ष की माला, एक हाथ में लाल रंग का रत्न-पात्र वाला यह रूप शिव का प्रतीक है।
27. द्विमुख गणपति: गणेश जी के दो मुख वाला यह रूप दसों दिशाओं में गणेश जी के आधिपत्य का प्रतीक है। इस रूप में भगवान नीले और हरे के मिश्रण वाले वर्ण के साथ चार हाथ वाले हैं।
28. त्रिमुख गणपति: इस रूप में गणेश जी तीन मुख और छह हाथ के साथ स्वर्ण कमल पर विराजित हैं।
29. सिंह गणपति: यह गणेश जी का शेर वाला रूप हैं। शेरों के समान मुख पर सूंड भी है। इसमें गणेश जी आठ हाथ वाले हैं।
30. योग गणपति: एक योगी की तरह मंत्र जाप करते गणेश जी के पैर इस स्वरूप में योगिक मुद्रा में है।
31. दुर्गा गणपति: अजेय, शक्तिशाली और अंधकार पर विजय प्राप्त करने का प्रतीक यह रूप अदृश्य देवी दुर्गा को समर्पित है। लाल वस्त्र, हाथ में धनुष लिए गणेश जी इस रूप में ऊर्जा के प्रतीक के रूप में पूजे जाते हैं।
32. संकष्टहरण गणपति: डर और दुख को दूर करने वाला यह रूप वरद मुद्रा वाला है।
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