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इतने विशाल शरीर वाले श्री गणेश का वाहन आखिर इतना छोटा कैसे! जानिए श्री गणेश से जुड़े कुछ रोचक किस्से

7 सितंबर 2024 से पूरे भारत वर्ष को हर्षोल्लास से भर देने वाले श्री गणेश उत्सव की शुरुआत हो रही है। यानी 7 सितंबर से अगले 10 दिनों तक विघ्नहर्ता बप्पा श्री गणेश की हर घर में स्थापना होगी और उनका विधि विधान से पूजा पाठ किया जाएगा। भगवान गणेश की पूजा भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन की जाती है, जिसे श्री गणेश के जन्मदिन यानी गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। भगवान गणेश का स्वरूप और उनका जीवन बहुत ही निराला और सीख प्रदान करने वाला है। गणपति के स्वरूप में सफल, सुखी और शांति से जीवन जीने के कई सूत्र छिपे हुए हैं। भगवान गणेश की पूजा हर शुभ कार्य से पहले की जाती है, हिंदू धर्म में उन्हें प्रथम पूज्य देवता माना गया है,  लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि सभी शुभ कार्यों से पहले हम भगवान गणेश पूजन ही क्यों करते हैं, या फिर भगवान गणेश को सिद्धिदाता क्यों कहा जाता है? और गणेश जी को दूर्वा और मोदक क्यों प्रिय है? भक्तवत्सल के इस लेख में जानेंगे इन सभी सवालों के जवाब और पार्वती पुत्र श्री गणेश से जुड़ी कुछ रोचक बातें विस्तार से...


भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता क्यों माना गया है?


भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता मानने के पीछे महत्वपूर्ण कारण है, भगवान शिव द्वारा प्रदान किया गया एक वरदान। इसके अलावा श्री गणेश जल तत्व के देवता हैं, जो सभी देवी-देवताओं का निवास स्थल माना जाता है। जल तत्व के अधिपति होने की वजह से वे प्रथम पूज्य हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब श्री गणेश माता पार्वती के द्वारपाल की भूमिका में थे, तब भगवान शिव ने क्रोध में आकर उनका सिर काट दिया था। जिसके बाद माता पार्वती को क्रोध आ गया और फिर भगवान शिव ने श्री गणेश के शरीर में हाथी के बच्चे का सिर जोड़ दिया।


हाथी का सिर जोड़ने के बाद जब पार्वती ने भगवान शिव से ये सवाल पूछा कि इस रूप में उनकी कैसे पूजा होगी? तब भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि श्री गणेश की पूजा देवी-देवताओं में सबसे पहले की जाएगी, और गजानन की आराधना किए बिना किसी भी देवी देवता की पूजा पूरी नहीं होगी। इस प्रकार भगवान गणेश का यह रूप एक अनोखा और विशेष रूप बन गया और उनकी पूजा प्रथम पूज्य के रूप में होने लगी।।

 

भगवान गणेश की पूजा विधि करते समय उनके इस रूप को ध्यान में रखा जाता है। उनकी पूजा में जल, फूल और मोदक जैसे प्रसाद का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार भगवान गणेश की पूजा एक विशेष और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो उनके प्रथम पूज्य देवता होने के दर्जे को प्रदर्शित करती है।


जानिए भगवान गणेश के प्रमुख नामों का महत्व:


1. विघ्नहर्ता: भगवान गणेश को विघ्नहर्ता के नाम से भी पूजा जाता है। मान्यताओं के अनुसार श्री गणेश को सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त है कि वे अपने भक्तों के सभी विघ्नों को दूर करेंगे और इसलिए उन्हें सभी देवी-देवताओं की पूजा करने से पहले मनाया भी जाता है ताकि अनुष्ठान में किसी प्रकार की कोई बाधा न आए।


2. सिद्धिदाता: भगवान गणेश का एक दूसरा नाम सिद्धिदाता भी है। इस नाम का अर्थ होता है सिद्धि यानी कि परफेक्शन देने वाले देवता। मान्यता के अनुसार जो भी भक्त श्री गणेश की सच्चे मन से आराधना करता है भगवान उसे सिद्धि और सफलता प्रदान करते हैं।


3. भालचंद्र: गणेश जी का एक नाम भालचंद्र है। श्री गणेश अपने ललाट यानी भाल पर चंद्र को धारण कर के उस की शीतल और निर्मल तेज प्रभा द्वारा दुनिया के सभी जीवों को प्रदान करते हैं। इसके अलावा इस नाम का ऐसा अर्थ भी निकाला जाता है कि भाल पर चंद्र होने से मस्तक पर शीतलता बनी रहती है और जिस व्यक्ति का मस्तक जितना शांत होता है उतनी कुशलता से वह अपना कर्तव्य निभा सकता है।


शुभ कार्य में सबसे पहले ‘श्री गणेशाय नम:’ क्यों लिखा जाता है? 


भगवान श्री गणेश को गणों के स्वामी या प्रमुख के रूप में जाने जाते हैं, यही कारण है कि उनको गणेश या फिर गणनायक नाम से संबोधित किया जाता है। व्याकरण में गण शब्द का अर्थ होता है अक्षर और इसका उपयोग गणेश के महत्व को दर्शाता है। इसलिए जब भी किसी कार्य की शुरुआत की जाती है तो सबसे पहले श्री गणेशाय नमः लिखा जाता है क्योंकि ये व्याकरण प्रमुख होने के साथ साथ गण प्रमुख भी माना जाता है।


कहा जाता है कि विद्यारंभ, गृह प्रवेश, विवाह, धार्मिक अनुष्ठान या लेखन के पहले श्री गणेश के नाम का लिखकर और उनका स्मरण कर के भगवान गणेश से कार्य में सफलता और सिद्धि की कामना की जाती है।


कलाओं के देवता हैं श्री गणेश…


गणेश जी की बुद्धि और विवेक की महिमा के कारण उन्हें कलाओं का देवता माना जाता है।  कहा जाता है कि भगवान गणेश और माता सरस्वती संयुक्त रूप से सभी कलाओं में दक्ष और निपुण हैं। गणेश जी नृत्य, वादन, लेखन, वाणी, तर्क, विचार और बुद्धि के देवता हैं और वे अपने याचक को बहुत ही सरलता से इन कलाओं को प्रदान कर देते हैं। इसलिए जब हम किसी कला की शुरुआत करते हैं तो सबसे पहले गणेश वंदना या फिर गणेश जी के स्मरण के साथ करते हैं।


27 नक्षत्रों के स्वामी हैं श्री गणेश


भगवान गणेश को मंगलमूर्ति कहा जाता है क्योंकि वे विघ्नहर्ता, सिद्धिदाता, वैभव दाता, मुहूर्त और शुभ लाभ के देवता हैं। वे लोक मंगल के देवता हैं और अमंगल को दूर करने के लिए अग्रणी रहते हैं। उनकी कृपा और आशीर्वाद से वैभव, संपदा और समृद्धि का कभी अभाव नहीं होता। गणेश जी की दोनों पत्नियां रिद्धि और सिद्धि, सुख और समृद्धि की देवी हैं और उनके पुत्र शुभ और लाभ हैं जो समृद्धि प्रदान करते हैं। स्वयं भगवान गणेश विघ्नहर्ता और मंगलमूर्ति हैं जो संपन्नता और बाधाओं को दूर करते हैं। ज्योतिष में भगवान गणेश को सभी 27 नक्षत्रों का स्वामी माना गया है जो उनकी महिमा को दर्शाता है। इसलिए कोई भी मांगलिक कार्य शुभ मुहूर्त और गणपति की सर्वप्रथम पूजन के साथ ही किए जाते हैं, ताकि कार्य में सफलता और सिद्धि प्राप्त हो। भगवान गणेश की उपस्थिति से संपन्नता आती है और बाधाएं दूर होती हैं।


गणेश प्रतिमाओं में कुछ की सूंड बाईं ओर तो कुछ की दाईं ओर ऐसा क्यों? 


गणेश प्रतिमाओं में सूंड की दिशा का विशेष महत्व है, सूंड की दिशा उनके स्वरूप और शक्तियों को दर्शाती है। दाईं ओर सूंड वाली मूर्ति सिद्धि विनायक का प्रतीक है जो सफलता और सिद्धि प्रदान करती है। जबकि बाईं ओर सूंड वाली मूर्ति विघ्न विनाशक का प्रतीक है जो बाधाओं और नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करती है। गणेश पुराण के अनुसार सिद्धि विनायक मूर्ति को घर के अंदर स्थापित किया जाता है, जबकि विघ्न विनाशक मूर्ति को घर के बाहर स्थापित किया जाता है जिससे नकारात्मक ऊर्जाएं घर के अंदर प्रवेश नहीं कर पातीं। इसके अलावा दाईं सूंड वाली मूर्ति सूर्य का प्रतीक है जो ऊर्जा और ज्ञान प्रदान करती है। जबकि बाईं सूंड वाली मूर्ति चंद्रमा का प्रतीक है जो शांति और सौम्यता प्रदान करती है। इस प्रकार गणेश प्रतिमाओं में सूंड की दिशा का महत्व होता है जो उनके स्वरूप और शक्तियों को दर्शाता है ।


इतने विशाल वाले गजानन इतना छोटा सा चूहा कैसे?


भगवान गणेश का विशालकाय गज रूप और वाहन चूहा होने के पीछे एक गहरा अर्थ है। गणेश जी बुद्धि, विद्या, वाणी, तर्क-वितर्क के अधिपति देवता हैं जो सुबुद्धि का प्रतीक है। वहीं चूहा कुबुद्धि का प्रतीक है जो कुतर्क और अविवेक का प्रतिनिधित्व करता है। कहा जाता है कि हाथी सबसे बुद्धिमान और तेज दिमाग वाला प्राणी होता है और यही वजह है कि भगवान शिव ने बाल गणेश के सिर के लिए हाथी के बच्चे का सिर चुना था। दूसरी तरफ चूहे में कुतर्क बुद्धि का गुण होता है, जो अच्छे-बुरे और काम की चीजों में अंतर नहीं समझ पाता है। इसलिए गणेश जी का चूहा वाहन कुबुद्धि पर सुबद्धि की विजय का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि बुद्धि और विवेक कुबुद्धि और कुतर्क पर हमेशा भारी रहते हैं।


घर के मुख्य दरवाजे और वाहनों में गणेश जी प्रतिमा क्यों लगाई जाती है।


भगवान गणेश को घर के मुख्य दरवाजे और वाहनों में स्थापित करने का महत्व है, क्योंकि वे सभी प्रकार की विपत्तियों से रक्षा करते हैं। गणेश जी शुभंकर, दिशाओं के देवता, विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता हैं, जो अमंगल को दूर करते हैं। गणेश जी की मूर्ति लगाने से घर और वाहन में शुभता और सुरक्षा आती है, क्योंकि वे सभी दिशाओं के स्वामी हैं और उनका नियंत्रण हर दिशा में होता है। स्वास्तिक और ॐ की तरह, गणेश की प्रतिमा भी शुभंकर, विघ्नहर्ता और रक्षा का प्रतीक है। सनातन धर्म में ओम, स्वास्तिक और गणेश जी शुभ का प्रतीक हैं और वे हमेशा आने वाले संकटों से भक्तों की रक्षा करते हैं। गणेश जी की कृपा से घर और वाहन के साथ संपूर्ण जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है।


गणेश उत्सव के चलते भक्तवत्सल ने आप सभी पाठकों के लिए श्री गणेश से जुड़ी रोचक कहानियों और गणेश महिमा के साथ पूजा विधि को लेकर भी कई लेख पब्लिश किए हैं। आप नीचे दी हुई लिंक पर क्लिक कर श्री गणेश के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल कर सकते हैं।


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