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सनातन धर्म को मानने वाले लोग यह अच्छी तरह जानते हैं कि किसी भी मंगल कार्य को प्रारंभ करने से पहले देवताओं को मनाया जाता है। उनकी पूजा-अर्चना और आह्वान किया जाता है। हम यह भी भली-भांति जानते हैं कि देवताओं में भी सबसे पहले गजानन गणपति महाराज को पूजा जाता है। हम जब भी गणेश जी का पूजन करते हैं उनके वाहन मूषक जी को तिलक लगाना नहीं भूलते।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर इतने भारी भरकम और विशाल स्वरूप के स्वामी गणेश जी ने मूषक जी को अपना वाहन क्यों बनाया। हालांकि गणेश जी ने हर युग में अपना वाहन बदला है। फिर भी उनकी मुख्य सवारी मूषक ही है।
भक्त वत्सल की गणेश चतुर्थी स्पेशल सीरीज ‘गणेश महिमा’ में आज हम आपको बताएंगे कि आखिर गणेश जी को मूषक की सवारी ही क्यों मिली…
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार सुमेरु पर्वत पर सौभरि ऋषि का पवित्र आश्रम था। जहां वे अपनी परम रूपवती और पतिव्रता पत्नी के साथ मानव कल्याण हेतु साधना और तपश्चर्या किया करते थे। ऋषि पत्नी का नाम मनोमयी था। एक दिन ऋषि हवन के लिए लकड़ियां लेने वन में गए हुए थे और मनोमयी आश्रम में गृहकार्य कर रही थी।
उसी समय एक गंधर्व वहां आया। उसका नाम कौंच था। उसने जब मनोमयी को देखा तो वो उसके रूप सौन्दर्य पर मोहित हो गया। उसे मर्यादा का भी ध्यान नहीं रहा और उसने व्याकुलता वंश ऋषि पत्नी का हाथ पकड़ लिया। उसके इस बर्ताव से ऋषि पत्नी बहुत क्रोधित हुई लेकिन गन्धर्व उससे दुर्व्यवहार करने की कोशिश करता रहा। वो जोर-जोर से चिल्लाने लगी और उसकी आवाज सुनकर सौभरि ऋषि आ गए। उन्होंने पत्नी से सारा वृतांत सुनकर गंधर्व को श्राप दिया कि तूने चोरों की तरह मेरी भार्या का हाथ पकड़ने का पाप किया है। अब तू मूषक बनकर धरती के नीचे ही जीवन गुजारेगा और चोरी करके ही अपना पेट भरेगा।
श्राप मिलने के बाद गंधर्व ने ऋषि से क्षमा प्रार्थना की। उसने अपनी भूल के लिए माफी मांगी। तब ऋषि ने कहा मेरा श्राप तो खाली नहीं जा सकता लेकिन द्वापर युग में गणेश अवतार होगा। इसमें गणपति गजमुख रूप में प्रकट होंगे। उस समय तू उनका वाहन बनेगा और संसार में पूजनीय हो जाएगा। कालांतर में मुनि की वाणी के अनुसार, द्वापर युग में गणेश जी का अवतार हुआ और मूषक उनके वाहन बने।
गणेश चतुर्थी: श्री गणेश की पूजन
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