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गणेश चतुर्थी के दिन हम सभी बड़ी धूमधाम से गणेश जी का जन्मोत्सव मनाते हैं। इस दिन देवों में प्रथम वंदनीय भगवान गणेश जी की प्रतिमा घर में स्थापित की जाती है। गांव-गांव और शहर-शहर में अनेकों जगह पर बड़े बड़े पांडाल सजाए जाते हैं और उत्सव मनाया जाता है। दस दिन के इस उत्सव में हर कोई शामिल होता है और आनंद लेता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणेश चतुर्थी की रात में चंद्रमा का दर्शन करना निषेध माना जाता है? और इस चतुर्थी को कलंक चतुर्थी का नाम भी दिया गया है। जी हां। कलंक चतुर्थी की कथा हमारे पौराणिक ग्रंथों में मिलती है और ये कथा एकदम सत्य है। लेकिन ऐसा क्यों है और चतुर्थी का चांद देखने से क्या नुकसान होता है, आईए जानते हैं गणेश महिमा के इस विशेष लेख में….
पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि एक बार भगवान गणेश प्रसन्न मन से अपना मनपसंद भोग खा रहे थे। तभी वहां चंद्रदेव का आना हुआ। चन्द्र देव ने भोग खाते गणेश जी को देख कर उनका मजाक उड़ाया। चंद्रदेव गणेश जी की सूंड व पेट को लेकर अपमानजनक टिप्पणी करने लगे। चंद्रदेव के इस व्यवहार से गुस्सा होकर गणेश जी ने उन्हें श्राप दिया। गणेश जी ने कहा कि जिस रुप और सौंदर्य पर तुम्हें इतना घमंड है, आज से तुम अपना वही रूप सदा के लिए खो दोगे। साथ ही गणपति महाराज ने कहा कि तुम्हारी कलाएं भी अब तुम्हारे पास नहीं रहेगी।
तुम्हारी तरफ एक नजर देखने वाला इंसान कलंकित हो जाएगा। जो कोई व्यक्ति तुम्हारे दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा। यह घटना भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुई थी। तभी से इस तिथि को कलंक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।
उस समय गणेश जी कुबेर का अभिमान नष्ट कर कैलाश की ओर लौट रहे थे। तभी रास्ते में एक सर्प के दिखाई देने से मूषक डर गया। जिससे उस पर विराजमान गणेश जी संतुलन खो कर गिर गए और चन्द्रमा उनका परिहास करने लगा। चंद्रमा के इस व्यवहार से क्रोधित होकर भगवान श्री गणेश ने उन्हें श्राप दे दिया और तभी से गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा देखना निषेध माना जाने लगा।
एक और पौराणिक कथा के अनुसार जब गणेश जी को गज मुख लगाया गया तो उनका नाम गजानन हुआ। फिर माता-पिता की परिक्रमा कर वे देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय हुए। इस समय देवताओं ने उनकी स्तुति की। लेकिन चंद्रमा ने उनकी शारीरिक बनावट का मजाक उड़ाया। गणेशजी ने चंद्रमा के अभिमान का अंदाजा लगा लिया और क्रोध में आकर उन्हें श्राप दे दिया।
श्राप मिलने के बाद जब चंद्रमा ने हाथ जोड़कर श्री गणेश से क्षमा-याचना की तो गणेश जी महाराज को उस पर दया आ गई। इस पर गणेश जी ने कहा कि मेरा श्राप तो वापस नहीं होगा लेकिन मैं तुम्हें वरदान स्वरूप यह आशीर्वाद देता हूं कि तुम अपनी रोशनी से माह में एक दिन ही विहीन रहोगे। हर दिन तुम्हारा तेज बढ़ते और घटते क्रम में रहेगा। साथ ही खास त्योहारों पर तुम्हारी पूजा का विधान होगा। इसके अलावा जो भी व्यक्ति गणेश चतुर्थी के दिन तुम्हारे दर्शन करेगी सिर्फ वो ही कलंकित होगा जबकि बाकी सभी दिनों में तुम्हारे दर्शन से व्यक्ति को शांति मिलेगी।
अगर गलती से आप गणेश चतुर्थी को चंद्रमा के दर्शन कर लेते हैं तो इससे घबराने वाली बात नहीं है, क्योंकि ऐसा होने पर कृष्ण-स्यमंतक की कथा पढ़ने और सुनने से इसके प्रभाव से बचा जा सकता है। इसके अलावा कलंक के दोष से बचने के लिए दूज का चाँद भी देखने का विधान है।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को कलंक चतुर्थी के रूप में भी मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चतुर्थी तिथि की शुरुआत से लेकर खत्म होने तक चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए।
मान्यता है कि इस तिथि को ही भगवान कृष्ण ने चंद्रमा को देखा था और उन पर स्यमन्तक मणि की चोरी का इल्जाम लगा था।
कहा जाता है कि चतुर्थी तिथि पर चंद्रमा के दर्शन करने से इंसान कलंक का भागी बनता है। इसलिए इस तिथि का नाम कलंक चतुर्थी पड़ा।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुछ विशेष मंत्रों के साथ इस तिथि पर चंद्र दर्शन बहुत शुभ और लाभकारी भी है।
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