गंधर्व विवाह क्या है?

गंधर्व विवाह में नहीं होती परिवार समाज की अनुमति की जरूरत, नहीं देखा जाता जाति धर्म 


सनातन धर्म की परंपराएं और मान्यताएं सदियों से समाज के सभी वर्गों और भावनाओं को आत्मसात करती रही हैं। इसी का एक उदाहरण है गंधर्व विवाह जो मनुस्मृति सहित अन्य धर्म ग्रंथों में वर्णित है। यह विवाह उन पुरुषों और महिलाओं को वैधता प्रदान करता है, जो एक-दूसरे से प्रेम करते हैं और समाज या परिवार की अनुमति के बिना विवाह करना चाहते हैं। प्राचीन समय में इसे प्रेम और स्वतंत्रता का प्रतीक माना गया था। आइए इस लेख में गंधर्व विवाह के बारे में रोचक तथ्यों, इसके इतिहास और महत्व को विस्तार से जानते हैं।  


क्या है गंधर्व विवाह?


गंधर्व विवाह वह विवाह है जिसमें पुरुष और महिला एक-दूसरे से प्रेम करते हैं और बिना परिवार, समाज या जाति की अनुमति के विवाह करते हैं। यह प्राचीन भारत में प्रेम विवाह का एक प्रचलित रूप था। इसे सामाजिक रीति-रिवाजों या जातीय बंधनों से स्वतंत्र माना जाता था।


परिवार की सहमति जरूरी नहीं


इस विवाह के लिए ना तो परिवार की अनुमति ली जाती है और ना ही कोई सामाजिक स्वीकृति जरूरी होती है।


  • प्रेम का आधार: इसमें मुख्य रूप से पुरुष और महिला के बीच प्रेम को प्राथमिकता दी जाती है।
  • अलग रीति-रिवाज: इसमें पारंपरिक रीति-रिवाजों की आवश्यकता नहीं होती। अग्नि को साक्षी मानकर साधारण विधियों से यह विवाह संपन्न हो सकता है।


गंधर्व विवाह का ऐतिहासिक महत्व


गंधर्व विवाह की जड़ें भारतीय इतिहास और धर्मग्रंथों में गहराई से जुड़ी हुई हैं। इसे प्रेम और सच्चाई का प्रतीक माना गया है।


  • शकुंतला और दुष्यंत का विवाह: महाकाव्य महाभारत में वर्णित राजा दुष्यंत और शकुंतला का विवाह गंधर्व विवाह का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है। यह विवाह प्रेम के आधार पर हुआ था और उनके पुत्र भरत के नाम पर ही भारत का नाम पड़ा।
  • उर्वशी और पुरुरवा: पौराणिक कथाओं में वर्णित यह विवाह भी गंधर्व विवाह का उदाहरण है।
  • वासवदत्ता और उदयन: उनकी कहानी भी प्रेम और गंधर्व विवाह की एक मिसाल पेश करती है।



कैसे होता है गंधर्व विवाह?


इस विवाह ने सामाजिक बंधनों और जातिगत भेदभाव से मुक्त होकर प्रेम को मान्यता दी। गंधर्व विवाह सरल और प्रेमपूर्ण प्रक्रिया पर आधारित होता है।


  • प्रेम का स्वीकार: पहले पुरुष और महिला के बीच आपसी प्रेम और विवाह की सहमति बनती है।
  • अग्नि को साक्षी मानना: प्राचीन काल में इस विवाह को वैध बनाने के लिए अग्नि को साक्षी मानकर फेरे लेने की परंपरा थी।
  • विरोध के बावजूद विवाह: यदि परिवार और समाज इस रिश्ते को अस्वीकार कर दें, तो भी इस विवाह को वैध माना जाता था।


क्यों प्रचलित था गंधर्व विवाह?


गंधर्व विवाह की लोकप्रियता उसके लचीलेपन और प्रेम पर आधारित होने के कारण थी। इसमें जाति, वर्ण और सामाजिक मान्यताओं को दरकिनार करते हुए प्रेम को प्राथमिकता दी जाती थी। जब परिवार या समाज इस प्रेम विवाह को अस्वीकार करता था, तब प्रेमी युगल गंधर्व विवाह का सहारा लेते थे। साथ ही इसमें पारंपरिक विवाह के जटिल नियमों की आवश्यकता भी नहीं पड़ती थी।


समाज में गंधर्व विवाह का महत्व 


गंधर्व विवाह ने भारतीय समाज में प्रेम विवाह की अवधारणा को मजबूत किया। यह विवाह सामाजिक बंधनों से मुक्त था और इसे प्रेम, स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय का प्रतीक माना जाता था। हालांकि, समय के साथ यह प्रथा कम प्रचलित हो गई, लेकिन यह आज भी प्राचीन भारतीय संस्कृति में प्रेम और स्वतंत्रता की भावना को बखूबी दर्शाती है।


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