क्या है अंत्येष्टि संस्कार

परलोक से जोड़ने वाला संस्कार है अंत्येष्टि, श्मशान में किया जाता है पूरा 


अंत्येष्टि संस्कार हिन्दू धर्म का एक अभिन्न अंग है। जो ना केवल मृतक को मोक्ष प्रदान करता है। बल्कि, परिवार और समाज को भी जीवन और मृत्यु के चक्र के प्रति जागरूक करता है। यह संस्कार आत्मा की अंतिम यात्रा को सम्मान और श्रद्धा के साथ पूरा करता है और मृतक की स्मृति को जीवित रखता है। हिन्दू धर्म में अंत्येष्टि संस्कार का गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। शास्त्रों में इसे मोक्ष प्राप्ति का एक प्रमुख माध्यम भी माना गया है। तो आइए, इस आर्टिकल में अंत्येष्टि संस्कार के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं। 


क्या होता है अंत्येष्टि संस्कार? 


सनातन हिंदू धर्म के अनुसार बिना अंत्येष्टि संस्कार के बिना आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। इसलिए, अंत्येष्टि संस्कार 16 प्रमुख संस्कारों में से सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि, इस संस्कार से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है। और उसे इस लोक से परलोक तक की यात्रा में सहायता मिलती है। 


जानिए क्यों जरूरी है अंत्येष्टि ? 


बौधायन पितृमेधसूत्र में कहा गया है "जातसंस्कारैणेमं लोकमभिजयति मृतसंस्कारैणामुं लोकम्।" जिसका अर्थ है कि जन्म संस्कार व्यक्ति को पृथ्वी लोक पर सफल बनाता है। जबकि, मृत्यु संस्कार उसे परलोक में विजय दिलाता है। विधिवत अंत्येष्टि से मृत आत्मा की अतृप्त इच्छाएं समाप्त होती हैं। एवं वह पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति की ओर बढ़ती है। इसके अलावा यह संस्कार मृतक के परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है। जो उनका धार्मिक और सामाजिक दायित्व है। 


अंत्येष्टि संस्कार की पौराणिक मान्यता


हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों में अंत्येष्टि संस्कार सबसे अंतिम संस्कार है। इसे मृतक की आत्मा को परलोक में मार्गदर्शन और मोक्ष प्रदान करने के उद्देश्य से किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, मृत्यु के बाद माता, पिता, आचार्य, पत्नी, पुत्र, शिष्य, चाचा, मामा और अन्य परिजनों का यह कर्तव्य होता है कि वे मृतक का विधिपूर्वक अंतिम संस्कार करें। एक श्लोक में कहा गया है "तस्यान्मातरं पितरमाचार्य पत्नीं पुत्रं शिष्यं च चाचा मातुलं सगोत्रमसगोत्रं वा दायमुपयच्छेद्दहनं संस्कारेण संस्कृर्वन्ति।" जिसका अर्थ है कि परिवार के सभी प्रमुख सदस्यों को अंतिम संस्कार में अपना योगदान देना चाहिए।


अंत्येष्टि संस्कार की विधि


अंत्येष्टि संस्कार की प्रक्रिया मृतक के घर से शुरू होकर श्मशान में समाप्त होती है। इसमें धार्मिक रीति-रिवाजों और मंत्रोच्चारण के साथ मृतक को अंतिम विदाई दी जाती है।


  • सर्वप्रथम मृतक के शरीर को गंगाजल से स्नान करवाया जाता है। मृतक के सिर के पास दीपक जलाया और धूप जलाया जाता है। 
  • इसके बाद शव को अर्थी पर रखकर श्मशान ले जाया जाता है। दाह संस्कार से पहले परिवार का मुखिया दक्षिण दिशा में मुख कर बैठता है और संकल्प करता है। "नामाऽहं (मृत व्यक्ति का नाम) प्रेतस्य प्रेतत्त्व-निवृत्त्या उत्तम लोक प्राप्त्यर्थं औधर्वदेहिकं करिष्ये।"
  • इसके बाद शमशान में चिता को अग्नि दी जाती है। यह कार्य परिवार के सबसे बड़े पुरुष सदस्य द्वारा किया जाता है। जिसे मुखाग्नि देना कहते हैं। मंत्र: "ॐ यमाय सोमं नुनुत, यामाय जुहुता हविः।"
  • चिता के पूर्ण जलने के बाद अस्थियों को एकत्र किया जाता है। इसे फूल चुगना भी कहते हैं।
  • इसके बाद अस्थियों को किसी पवित्र नदी, जैसे गंगा में विसर्जित किया जाता है।
  • मृत्यु के बाद 10 दिनों तक परिवार शोक मनाता है। इस दौरान, मृतक की आत्मा के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन और दान  दिया जाता है। 

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