जलाशय के बीचों-बीच स्थित है जल्ला हनुमान मंदिर, जानिए इसका इतिहास और महत्व
जल्ला हनुमान मंदिर, बिहार के पटना जिले के बेगमपुर क्षेत्र में स्थित है। इस ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल का इतिहास सदियों पुराना है। इसे लेकर कई किवदंतियां और कहानियां हैं। यहां के स्थानीय लोग बताते हैं कि पहले यह इलाका पानी से भरा रहता था, जिसके कारण इसे "जल्ला" नाम दिया गया। मंदिर के जीर्णोद्धार का निर्णय 26 जनवरी 1997 को आचार्य किशोर कुणाल की उपस्थिति हुआ। और पटना महावीर मंदिर न्यास समिति की देखरेख में इसका निर्माण किया गया। तो आइए, इस आर्टिकल में जल्ला हनुमान मंदिर के इतिहास और महत्व के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं।
मंदिर से जुड़ी है कहानी
प्रचलित कहानी के अनुसार, वर्ष 1705 में इस निर्जन क्षेत्र में गुलालदास महाराज नामक एक संत अचानक ही प्रकट हुए। वे स्थानीय निवासी ठाकुरदीन तिवारी के पास पहुंचे और उनसे कहा, “तुम्हारे बगीचे के नीचे दक्षिण में गंगा बह रही है और उत्तर में विशाल वृक्ष खड़ा है। भविष्य पुराण के कथनानुसार, यहां मंदिर स्थापना का संकेत मिलता है। अतः इस जमीन का एक हिस्सा मंदिर निर्माण के लिए दे दो।” संत की इस बात से प्रभावित होकर ठाकुरदीन तिवारी ने तुरंत अपने आम्रकुंज में से दस कट्ठा जमीन अलग कर दिया। इसके बाद उन्होंने हनुमान जी और शिव जी के लिए दो कोठरी बनवाईं। कहा जाता है कि गुलालदास महाराज ने यहां छह महीने तक निवास किया। इस दौरान एक बड़ा यज्ञ भी आयोजित किया गया। यज्ञ के बाद महाराज अचानक ही कहीं विलीन हो गए।
जानिए इस मंदिर की विशेषता
जल्ला हनुमान मंदिर ना सिर्फ एक धार्मिक स्थल है। बल्कि, यह बिहार के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों में से भी एक है। यह मंदिर धार्मिक आस्था और कला का अद्भुत संगम है। यह मंदिर केवल हनुमान जी को समर्पित नहीं है। बल्कि, यहां भगवान शिव, गणेश जी, माता भगवती, श्री राम दरबार और यज्ञ मंडप भी स्थित हैं। मंदिर की सुंदरता और भव्यता देखते ही बनती है। शीशे की अनूठी कारीगरी इस मंदिर को और भी आकर्षक बनाती है। कोलकाता और पटना सिटी के दर्जनों कारीगरों ने इसे भव्य स्वरूप प्रदान किया है। लगभग 15 करोड़ की लागत से बना यह मंदिर आस्था के साथ-साथ एक पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध हो चुका है।
क्यों पड़ा जल्ला नाम?
स्थानीय इतिहास के अनुसार, यह इलाका पहले जलमग्न रहता था। इस कारण, बेगमपुर क्षेत्र के इस हिस्से को जलाशय या “जल्ला” के नाम से जाना जाता था। पानी कम होने के बाद इस क्षेत्र में लोगों ने बसना शुरू किया और इसे धार्मिक केंद्र में बदल दिया। बता दें कि यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। हर मंगलवार और शनिवार को यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है। रामनवमी जैसे त्योहारों पर यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं। रामनवमी के अवसर पर दो लाख से अधिक भक्त पवनसुत हनुमान के दर्शन के लिए आते हैं।
1997 में किया गया था जीर्णोद्धार
समय के साथ मंदिर का स्वरूप क्षीण हो गया था। परंतु, 26 जनवरी 1997 को आचार्य किशोर कुणाल की उपस्थिति में ग्रामीणों ने मंदिर के जीर्णोद्धार का निर्णय लिया। पंडित ठाकुरदीन तिवारी के वंशजों में से पंडित राम अवतार तिवारी ने 22 अगस्त 1999 को ग्रामीणों की सभा में अपनी संपत्ति मंदिर समिति को सौंप दी। इसके बाद मंदिर के निर्माण कार्य को तीव्र गति दी गई।
आकर्षक है मंदिर का भव्य स्वरूप
भव्य जल्ला हनुमान मंदिर को बनाने में लगभग 17 वर्षों का समय लगा। यह पटना ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार का सबसे बड़ा हनुमान मंदिर है। मंदिर की दीवारों और छत पर की गई शीशे की कारीगरी इसे और भी मनमोहक बनाती है। बता दें कि कोलकाता और पटना के कारीगरों ने इस मंदिर को सुंदर और भव्य स्वरूप प्रदान किया है।
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