तुम शरणाई आया ठाकुर
तुम शरणाई आया ठाकुर ॥
उतरि गइओ मेरे मन का संसा,
जब ते दरसनु पाइआ ॥
तुम शरणाई आया ठाकुर
अनबोलत मेरी बिरथा जानी
अपना नामु जपाइआ ॥
तुम शरणाई आया ठाकुर
दुख नाठे सुख सहजि समाए,
अनद अनद गुण गाइआ ॥
तुम शरणाई आया ठाकुर
बाह पकरि कढि लीने अपुने,
ग्रिह अंध कूप ते माइआ ॥
तुम शरणाई आया ठाकुर
कहु नानक गुरि बंधन काटे,
बिछुरत आनि मिलाइआ ॥
तुम शरणाई आया ठाकुर
सुनलो बाबा बजरंगी,
मैं कैसे तुझे रिझाऊं,
निगुरे नहीं रहना
सुन लो चतुर सुजान निगुरे नहीं रहना...
तेरे मन में राम,
तन में राम ॥
तेरे नाम का दीवाना,
तेरे द्वार पे आ गया है,