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तुम जो कृपा करो तो, मिट जाये विपदा सारी(Tum Jo Kripa Karo To Mit Jaye Vipda Sari)

तुम जो कृपा करो तो, मिट जाये विपदा सारी(Tum Jo Kripa Karo To Mit Jaye Vipda Sari)

तुम जो कृपा करो तो,

मिट जाये विपदा सारी,

ओ गौरी सूत गणराजा,

गणनायक गजमुख धारी,

तुम हो दया के सागर,

क्या बात है तुम्हारी,

ओ गौरी सूत गणराजा,

गणनायक गजमुख धारी ॥


विघ्नौ को हरने वाले,

सुख शांति देने वाले,

मोह पाश काटते हो,

तुम भक्ति देने वाले,

तुमने रचाई श्रष्टि,

तुम ने ही है सवारा,

ओ गौरी सूत गणराजा,

गणनायक गजमुख धारी,

ओ गौरी सूत गणराजा,

गणनायक गजमुख धारी ॥


तुम पहले पूजे जाते,

फ़िर काम बनते जाते,

आये शरण तिहारी,

मन चाहा फल है पाते,

मुझको गले लगा ले,

आया शरण तिहारी,

ओ गौरी सूत गणराजा,

गणनायक गजमुख धारी,

ओ गौरी सूत गणराजा,

गणनायक गजमुख धारी ॥


लम्बे उदर में तुमने,

संसार है छिपाया,

सतगुण से है भरी हुई,

गणराज तेरी काया,

दुर्गुण पे सतगुणो सी,

ये मुस की सवारी,

ओ गौरी सूत गणराजा,

गणनायक गजमुख धारी,

ओ गौरी सूत गणराजा,

गणनायक गजमुख धारी ॥


तुम जो कृपा करो तो,

मिट जाये विपदा सारी,

ओ गौरी सूत गणराजा,

गणनायक गजमुख धारी,

तुम हो दया के सागर,

क्या बात है तुम्हारी,

ओ गौरी सूत गणराजा,

गणनायक गजमुख धारी ॥


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आश्विन मास कृष्ण पक्ष की इन्दिरा नाम एकादशी की कथा (Aashvin Maas Krshn Paksh Kee Indira Naam Ekaadashee Kee Katha)

महाराज युधिष्ठिर ने भगवान् कृष्ण से पुनः प्रश्न किया कि भगवन् ! अब आप कृपा कर आश्विन कृष्ण एकादशी का माहात्म्य सुनाइये।

आश्विन मास शुक्ल पक्ष की पापांकुशा एकादशी (Ashvin Maas Shukla Paksh Ki Paapaankusha Ekaadashi)

युधिष्ठिर ने फिर पूछा-जनार्दन ! अब आप कृपा कर आश्विन शुक्ल एकादशी का नाम और माहात्म्य मुझे सुनाइये। भगवान् कृष्ण बोले राजन् !

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की रमा नाम एकादशी (Kaartik Maas Kee Krshn Paksh Kee Rama Naam Ekaadashee)

इतनी कथा सुनकर महाराज युधिष्ठिर ने भगवान् से कहा-प्रभो ! अब आप कृपा करके कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के माहात्म्य का वर्णन करिये। पाण्डुनन्दन की ऐसी वाणी सुन भगवान् कृष्ण ने कहा-हे राजन् !

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रबोधिनी एकादशी (Kaartik Maas Ke Shukl Paksh Kee Prabodhinee Ekaadashee)

ब्रह्माजी ने कहा कि हे मनिश्रेष्ठ ! गंगाजी तभई तक पाप नाशिनी हैं जब तक प्रबोधिनी एकादशी नहीं आती। तीर्थ और देव स्थान भी तभी तक पुण्यस्थल कहे जाते हैं जब तक प्रबोधिनी का व्रत नहीं किया जाता।

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