तेरी जय हो जय हो,
जय गोरी लाल ॥
दोहा
हे जग दाता विश्व विधाता,
हे गणपति जी महाराज,
हे शिव सूत गौरी के लाला,
मेरे पूरण करियो काज ॥
तेरी जय हो जय हो,
जय गोरी लाल,
पूजू तेरा नाम,
करो सबको निहाल,
तेरी जय हों जय हों,
जय गोरी लाल ॥
पान फूल चढ़े चढ़ता है मेवा,
सारा जगत तेरी करता है सेवा,
भोग लगाऊं,
लेकर लड्डुओं का थाल,
तेरी जय हों जय हों,
जय गोरी लाल ॥
गणपत मेरे काज सवारो,
भरी सभा में आन पधारो,
भक्तों को कर देता तू मालामाल,
तेरी जय हों जय हों,
जय गोरी लाल ॥
राजू भी हरिपुरिया आए,
शुभम तिलकधारी गुण गाये,
सारे ही देता है संकट तू टाल,
तेरी जय हों जय हों,
जय गोरी लाल ॥
तेरी जय हों जय हों,
जय गोरी लाल,
पूजू तेरा नाम,
करो सबको निहाल,
तेरी जय हों जय हों,
जय गोरी लाल ॥
सरस्वती नदी का उल्लेख विशेष रूप से ऋग्वेद, महाभारत, और विष्णु पुराण जैसे ग्रंथों में किया गया है। वेदों में इसे एक दिव्य नदी के रूप में पूजा गया है और यह ज्ञान, कला और संगीत की देवी सरस्वती से जुड़ी हुई मानी जाती है।
राधे जय जय माधव-दयिते
गोकुल-तरुणी-मंडल-महिते
गलियां चारों बंद हुई,
मिलूं कैसे हरी से जाये ।
ऐसा सुंदर स्वभाव कहाँ पाया,
राघवजी तुम्हें ऐसा किसने बनाया ।