सखी री बांके बिहारी से हमारी लड़ गयी अंखियाँ (Sakhi Ri Bank Bihaari Se Hamari Ladgayi Akhiyan)

सखी री बांके बिहारी से

हमारी लड़ गयी अंखियाँ ।

बचायी थी बहुत लेकिन

निगोड़ी लड़ गयी अखियाँ ॥


ना जाने क्या किया जादू

यह तकती रह गयी अखियाँ ।

चमकती हाय बरछी सी

कलेजे गड़ गयी आखियाँ ॥


चहू दिश रस भरी चितवन

मेरी आखों में लाते हो ।

कहो कैसे कहाँ जाऊं

यह पीछे पद गयी अखियाँ ॥


भले तन से निकले प्राण

मगर यह छवि ना निकलेगी ।

अँधेरे मन के मंदिर में

मणि सी गड़ गयी अखियाँ ॥


सखी री बांके बिहारी से

हमारी लड़ गयी अंखियाँ ।

बचायी थी बहुत लेकिन

निगोड़ी लड़ गयी अखियाँ ॥


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