नवीनतम लेख
राम को देख कर के जनक नंदिनी,
बाग में वो खड़ी की खड़ी रह गयी ।
राम देखे सिया को सिया राम को,
चारो अँखिआ लड़ी की लड़ी रह गयी ॥
थे जनक पुर गये देखने के लिए,
सारी सखियाँ झरोखो से झाँकन लगे ।
देखते ही नजर मिल गयी प्रेम की,
जो जहाँ थी खड़ी की खड़ी रह गयी ॥
राम को देख कर के जनक नंदिनी...॥
बोली एक सखी राम को देखकर,
रच गयी है विधाता ने जोड़ी सुघर ।
फिर धनुष कैसे तोड़ेंगे वारे कुंवर,
मन में शंका बनी की बनी रह गयी ॥
राम को देख कर के जनक नंदिनी...॥
बोली दूसरी सखी छोटन देखन में है,
फिर चमत्कार इनका नहीं जानती ।
एक ही बाण में ताड़िका राक्षसी,
उठ सकी ना पड़ी की पड़ी रह गयी ॥
राम को देख कर के जनक नंदिनी...॥
राम को देख कर के जनक नंदिनी,
बाग में वो खड़ी की खड़ी रह गयी ।
राम देखे सिया को सिया राम को,
चारो अँखिआ लड़ी की लड़ी रह गयी ॥
........................................................................................................'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।