प्रभु सोच लो जग तुम्हे क्या कहेगा (Prabhu Soch Lo Jag Tumhe Kya Kahega)

प्रभु सोच लो जग तुम्हे क्या कहेगा,

अगर तेरा प्रेमी दुखड़े सहेगा,

प्रभु सोचलों जग तुम्हे क्या कहेगा ॥


चर्चे तुम्हारी दातारी के ऐसे,

सदा मौज में हैं प्रभु मेरे जैसे,

मुझको मिला गर उन्हें ना मिलेगा,

प्रभु सोचलों जग तुम्हे क्या कहेगा ॥


देते हो सबको बाबा जो भी आये दर पर,

है ऐसा भरोसा सदा श्याम तुम पर,

दानी सदा ही दानी रहेगा,

प्रभु सोचलों जग तुम्हे क्या कहेगा ॥


सदा हमने सबको ये ही बताया,

तुमने किसी को ना खाली लौटाया,

भक्तों का दाता गर भरोसा डिगेगा,

प्रभु सोचलों जग तुम्हे क्या कहेगा ॥


‘संजय’ पे बरसी जैसे कृपा सब पे बरसे,

कोई ना तेरी कृपा को है तरसे,

‘रोमी’ की अर्ज़ी जो तू ना सुनेगा,

प्रभु सोचलों जग तुम्हे क्या कहेगा ॥


प्रभु सोच लो जग तुम्हे क्या कहेगा,

अगर तेरा प्रेमी दुखड़े सहेगा,

प्रभु सोचलों जग तुम्हे क्या कहेगा ॥


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वैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा (Vaikunth Chaturdashi Ki Katha)

वैकुण्ठ चतुर्दशी को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक बार श्रीहरि विष्णु देवाधिदेव शंकर जी का पूजन करने के लिए काशी आए थे।

माँ दुर्गे आशीष दो (Maa Durge Ashish Do)

माँ दुर्गे आशीष दो माँ दुर्गे आशीष दो
मन मे मेरे वास हो तेरा चरणो संग प्रीत हो ॥

शिव मृत्युञ्जय स्तोत्रम् (Shiv Mrityunjaya Stotram)

रत्नसानुशरासनं रजताद्रिश्रृंगनिकेतनं
शिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्।

महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् - अयि गिरिनन्दिनि , Mahishasuramardini Stotram - Aayi Girinandini

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।

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