ओ माँ पहाड़ावालिये,
सुन ले मेरा तराना ॥
दोहा – मेरा नहीं है कुछ भी,
सब कुछ तेरा किया है,
किरपा हुई है ऐसी,
बिन मांगे सब दिया है।
जैसा तू चाहे मैया,
वैसा मैं चलता जाऊं,
जिसमे हो तेरी महिमा,
ऐसे ही गीत गाऊं ॥
ओ माँ पहाड़ावालिये,
सुन ले मेरा तराना,
सुन ले मेरा तराना,
सुन ले मेरा तराना,
ओ मां पहाड़ावालिये,
सुन ले मेरा तराना ॥
अपने हुए पराए,
दुश्मन हुआ जमाना,
अपने हुए पराए,
दुश्मन हुआ जमाना,
कष्टों से मेरी मैया,
तू ही मुझे बचाना,
ओ मां पहाड़ावालिये,
सुन ले मेरा तराना ॥
फूलों में तुझको ढूंढा,
कलियों में तुझको ढूंढा,
फूलों में तुझको ढूंढा,
कलियों में तुझको ढूंढा,
तू कहीं नजर ना आई,
ओ मां पहाड़ावालिये,
ओ मां पहाड़ावालिये,
सुन ले मेरा तराना ॥
“ओ मेरी शेरावाली मैया,
मेरी जोतावाली मैया,
मेरे साथ है, सर पे हाथ है,
मेरी दुर्गे मैया काली,
मेरी मेहरावाली मैया,
मेरे साथ है, सर पे हाथ है” ॥
सबकी सुने तू मैया,
राजा हो या फकीरा,
सबकी सुने तू मैया,
राजा हो या फकीरा,
‘बाबा’ की ये तमन्ना,
मेरा भी सुन तराना,
ओ मां पहाड़ावालिये,
सुन ले मेरा तराना ॥
ओ माँ पहाड़ावालियें,
सुन ले मेरा तराना,
सुन ले मेरा तराना,
सुन ले मेरा तराना,
ओ मां पहाड़ावालिये,
सुन ले मेरा तराना ॥
भारतीय सनातन संस्कृति में आरंभ से ही स्त्री को पूज्य व जननी माना गया है। स्त्री धन-धान्य, समृद्धि, विद्या, बुद्धि और शक्ति के स्वरूप में हमारे शास्त्रों में भी विद्यमान हैं।
विश्व के प्राचीन हिंदू मंदिरों में से एक मंदिर कंबोडिया में भी स्थित है। इसका नाम अंकोरवाट मंदिर है। इस मंदिर का पुराना नाम यशोदापुर था।
अशोक वाटिका लंका में स्थित एक उपवन है, जो राक्षस राजा रावण के राज्य में स्थित है। इसका उल्लेख पुराण और वाल्मीकि के हिंदू महाकाव्य रामायण और उसके बाद के सभी संस्करणों में मिलता है।
दिवाली या दीपावली हिंदू धर्म में सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। पांच दिवसीय इस त्योहार को अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञानता पर ज्ञान की जीत के प्रतीक के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।