हे भक्तवृंदों के प्राण प्यारे,
नमामी राधे नमामी कृष्णम,
हे भक्तवृंदों के प्राण प्यारे,
नमामी राधें नमामी कृष्णम,
तुम्ही हो माता पिता हमारे,
तुम्ही हो माता पिता हमारे,
नमामी राधें नमामी कृष्णम,
हे भक्तवृंदों के प्राण प्यारे,
नमामी राधें नमामी कृष्णम ॥
आदि शक्ति श्री राधे रानी,
जय जगजननी जय कल्याणी,
युगल मूर्ति श्री राधे कृष्णा,
दर्शन करत मिटे नही तृष्णा,
दर्शन करत मिटे नही तृष्णा,
दोनो हैं दोनो के नैन-तारे,
दोनो हैं दोनो के नैन-तारे,
नमामी राधें नमामी कृष्णम,
हे भक्तवृंदों के प्राण प्यारे,
नमामी राधें नमामी कृष्णम ॥
सुर मुनि कितने स्वप्न संजोते,
योगी जप तप कर युग खोते,
तब जाकर इस युगल मूर्ति के,
बाल रूप में दर्शन होते;
बाल रूप में दर्शन होते,
ये सृष्टि सारी यही पुकारे,
ये सृष्टि सारी यही पुकारे,
नमामी राधें नमामी कृष्णम,
हे भक्तवृंदों के प्राण प्यारे,
नमामी राधें नमामी कृष्णम ॥
हे भक्तवृंदों के प्राण प्यारे,
नमामी राधे नमामी कृष्णम,
हे भक्तवृंदों के प्राण प्यारे,
नमामी राधें नमामी कृष्णम,
तुम्ही हो माता पिता हमारे,
तुम्ही हो माता पिता हमारे,
नमामी राधें नमामी कृष्णम,
हे भक्तवृंदों के प्राण प्यारे,
नमामी राधें नमामी कृष्णम ॥
बगलामुखी जयंती वैशाख शुक्ल अष्टमी को मनाई जाती है, जो देवी बगलामुखी को समर्पित है। वह दस महाविद्याओं में से आठवीं देवी हैं और श्री कुल से संबंधित हैं। देवी बगलामुखी को पीताम्बरा और ब्रह्मास्त्र भी कहा जाता है। उनकी साधना से स्तंभन की सिद्धि प्राप्त होती है और शत्रुओं को नियंत्रित किया जा सकता है।
देवी बगलामुखी 10 महाविद्याओं में से एक आठवीं महाविद्या हैं, जो पूर्ण जगत की निर्माता, नियंत्रक और संहारकर्ता हैं। उनकी पूजा करने से भक्तों को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन की अनेकों बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, परशुराम द्वादशी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार, भगवान परशुराम को समर्पित हैI
परशुराम द्वादशी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार, भगवान परशुराम की पूजा को समर्पित है। परशुराम द्वादशी विशेष रूप से संतान प्राप्ति के लिए मनाया जाता है।